कृष्ण और राधा का प्यार...परे है इस दुनिया से
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हम इस जगत के प्राणी हैं जहां सब कुछ समाप्त हो जाना है, हमने हर विषय का एक आखिरी छोर देखा है , तो हम प्रेम का भी आखिरी छोर ढूंढते हैं , जो हमें नहीं मिलता, मगर यदि उद्भव खोजने निकलें तो तलाश बस राधा और कृष्ण पर समाप्त होती है | राधा और कृष्ण , कृष्ण और राधा इन दोनों पर कितना कुछ लिखा जा चुका है, कहा जा चुका है , गाया जा चुका है, पर न तो इनके प्रेम का वर्णन संतृप्त हो पाया और ना ही अभिव्यक्ति ही छोर तक पहुंची | कृष्ण और राधा जब भौतिक रूप से साथ थे , वह अवधि आठ वर्ष की बताई जाती है, किन्तु वे आठ वर्ष अब इतने व्यापक हो चुके हैं, कि अनन्तानन्त शताब्दियाँ भी उन्हें समेट पाने में अक्षम हैं | कृष्ण और राधा विस्तार पाते ही गए हैं | कभी हरिदास जी ने गाया तो अभी सूरदास जी ने रचा , कभी रसखान ने गढ़ा तो कभी चैतन्य महाप्रभु ने सुनाया, मगर कृष्ण और राधा का प्रेम विस्तार पाता ही गया |

भक्तों की नज़र से राधे कृष्ण :

संसार के लोग राधा और कृष्ण को दो अलग अलग नाम से जानते होंगे, मगर वे बिरले ही भक्त हैं जो एक संयुक्त तत्व को समझ पाते हैं , ये बिरले लोग आपको बृज में ही मिलेंगे, वहां जाइए तो जानेंगे कि कृष्ण शब्द तो है ही नहीं वहां , वहां तो बस राधेय -राधेय है | ` राधेय ` अर्थात जो राधा का हो , मतलब कृष्ण | इतना ही नहीं उज्जवल वर्ण वाली राधा रानी को वहां श्यामा जु पुकारा जाता है, `श्यामा` अर्थात जो श्याम की हो | प्रेमी ही समझ सकते हैं इस गूढ़ता को कि एक के नाम से दुसरे को पुकार जाए |

राधेय का प्रेम :-

दुनिया भर में कृष्ण और राधा के प्रेम को अपने अपने दृष्टिकोण से देखा जाता है, कोई उन्हें प्रेमी युगल बताता है तो कोई बचपन का प्रेम | लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट है लोगों ने अपनी बुद्धि और सीमित विवेक के कारण राधा कृष्ण के प्रेम को कुछ और ही समझा है और समझा दिया है | यूं तो जहां प्रेम होता है वहां तर्क नहीं होता, इसी कारण कृष्ण प्रेमी इन विवादों में कभी नहीं उलझते, किन्तु सत्य का अनावरण भी आवश्यक है | राधा कृष्ण का प्रेम वह भौतिक और काम पूर्ण प्रेम नहीं था जिसपर आकर सांसारिक प्राणियों की सोच ठहर जाती है | राधेय का प्रेम को संसार के लिए वह ज्ञान रुपी अमृत था जो किसी विचारधारा में जकड़ ही नहीं सकता , जहां कृष्ण होता है वहां काम नहीं होता , वहां भौतिकता नही होती वहां अलौकितकता होती है | जब कृष्ण राधा से मिले थे तब वे मात्र छह वर्ष के थे , और जब वे मथुरा गए तब पंद्रह वर्ष के | राधा रानी , कृष्ण के उस बाल्यकाल की सबसे प्रिय साथी भी थीं और प्रियतम भी , वे कृष्ण से आयु में बड़ी थीं और कृष्ण की गुरु थीं | वास्तव में कृष्ण की तरह राधा भी दिव्य थीं , उन्होंने जगदगुरु को प्रेम और अनुराग की वह दीक्षा दी जो संसार के लिए स्मरणीय है | आधुनिक काल के महान कवि श्री देवल आशीष जी राधा जी के विषय में कहते हैं कि

त्यागियों में, अनुरागियों में, बड़भागी थी; नाम लिखा गई राधा

रंग में कान्हा के ऐसी रंगी, रंग कान्हा के रंग नहा गई राधा

विश्व को नाच नाचता है जो, उस श्याम को नाच नचा गई राधा

संत-महंत तो ध्याया किए और माखन चोर को पा गई राधा

हार के श्याम को जीत गई, अनुराग का अर्थ बता गई राधा

पीर पे पीर सही पर प्रेम को शाश्वत कीर्ति दिला गई राधा

कान्हा को पा सकती थी प्रिया पर प्रीत की रीत निभा गई राधा

कृष्ण ने लाख कहा पर संग में ना गई, तो फिर ना गई राधा

वहीं कृष्ण के प्रेम पर महाकवि रसखान जी कहते हैं कि

संकर से सुर जाहिं जपैं चतुरानन ध्यानन धर्म बढ़ावैं।

नेक हिये में जो आवत ही जड़ मूढ़ महा रसखान कहावै।।

जा पर देव अदेव भुअंगन वारत प्रानन प्रानन पावैं।

ताहिं अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचावैं।।

अर्थात जो कृष्ण संसार का स्वामी है , वह अहीर (गोपियों) के प्रेम में इतना बंध गया है कि थोड़ी सी छाछ और माखन के बदले में नाचने को भी तैयार हो जाता है | इस राधाकृष्ण के प्रेम में तो समर्पण और अधिकार दोनों का वह सागर है जिसे कोई ज्ञात ही नहीं कर सकता |

सचमुच जिसने काम खोजा उसे तो कृष्ण मिल ही नहीं सकता, और जिसने कृष्ण में भी काम खोजा उससे बड़ा मूर्ख कोई हो नहीं सकता |

कृष्ण की बांसुरी और राधा :-

कृष्ण एक ग्वाल परिवार में पले थे , और ग्वाल बाल गायें चराते हुए बांसुरी बजा कर गायों को नियंत्रित किया करते थे | किन्तु कृष्ण की बांसुरी कला असाधारण थीं, उनकी बांसुरी के स्वर मोहित कर लेने वाले थे, यहां तक कि स्वयं अपनी बांसुरी में इतने खो जाते कि उन्हें अपनी भी सुधि ना रहती , इस पर राधा जी को बड़ी नाराज़गी होती | क्यों कि इस समय वे राधा जी की बातें अनसुनी करते रहते थे | राधा रानी ने कई बार बांसुरी को बुरा भला कहा मगर ना तो कृष्ण की बांसुरी को तोडा और ना ही फेंका | क्यों कि उनका प्रेम कृष्ण को पाने या खोने की बाध्यताओं से कहीं ऊपर था |

जब मथुरा गए कृष्ण :-

कृष्ण अपने बाल्यकाल के समाप्त होते ही मथुरा चले गए थे, जिसके बाद वे गुरुकुल गए और फिर द्वारिका | मगर शायद ये बात बहुत काम लोगों ने समझी होगी कि राधा के बाद कृष्ण का मोह किसी के लिए नहीं हुआ , कृष्ण की प्रेम प्रणेता वाली छवि फिर कभी सामने नहीं आई, वे शिष्य बने ,योद्धा बने, गुरु बने , मित्र बने , योगी बने, किन्तु प्रेमी फिर कभी नहीं बने |

राधा का अदभुत कृष्ण ज्ञान :-

एक बार कृष्ण के सखा उद्धव जी जो ज्ञान और योग सीख कर उसकी महत्ता बताने में लगे थे तब ,कृष्ण ने उन्हें एक चिट्ठी लिख कर दी जिस पर कृष्ण ने लिखा था कि " मैं अब वापस नहीं आऊंगा तुम सभी मुझे भूल जाओ और योग में ध्यान लगाओ " और कहा कि इसे ले जाकर ब्रज के लोगों को दिखाना और योग के महत्व से उन्हें परिचित करवाना | उद्धव जी के लिए परमब्रह्म का लिखा लेख वेद समान था वे उसे संभाले संभाले ब्रज में गए और कृष्ण विरह में व्याकुल राधा जी को वह पाती दिखाई , राधा रानी ने उसे पढ़े बिना गोपियों को दे दी और गोपियों ने उसे पढ़े बिना उसके कई टुकड़े कर आपस में बाँट लिया | उद्धव जी बबौखला गए , चिल्लाने लगे अरे मूर्खो इस पर जगदगुरु ने योग का ज्ञान लिखा है , क्या तुम कृष्ण विरह में नहीं हो जो उनका लिखा पढ़ा तक नहीं |

तब राधा जी ने उद्धव को समझाया

" उधौ तुम हुए बौरे, पाती लेके आये दौड़े...हम योग कहाँ राखें ? यहां रोम रोम श्याम है "

अर्थात हे उधौ कृष्ण तो यहां से गए ही नहीं ? कृष्ण होंगे दुनिया के लिए योगेश्वर यहां पर तो अब भी वो धूल में सने हर घाट वृक्ष पर बंसी बजा रहे हैं | बताओ कहाँ है विरह ? यह ज्ञान आज के युग के लिए एक मार्ग दर्शन है , जब कि हम कृष्ण को आडम्बरों में खोजते हैं |

क्यों नहीं हो पाया राधा कृष्ण का भौतिक मिलन :-

मथुरा जाते समय राधा रानी ने कृष्ण का रास्ता रोका था , मगर कृष्ण ने उन्हें समझाया था कि यदि मैं तुमसे बंध गया तो मेरे जन्म का प्रायोजन व्यर्थ चला जाएगा, जगत में पाप और अधर्म का साम्राज्य फैलता ही जाएगा | मैं प्रेमी बनकर संहार नहीं साध सकता , मैं ब्रज में रहकर युद्ध नहीं रचा सकता , मैं बांसुरी बजाते हुए चक्र धारण नहीं कर सकता | और यह सत्य भी है कि राधा से विरह के बाद कृष्ण ने कभी बांसुरी को हाथ नहीं लगाया | कृष्ण ने मथुरा जाते समय राधा से साथ चलने को कहा था , किन्तु राधा भी कृष्ण की गुरु थीं , वे समझ सकती थीं कि जिसे संसार को मोह से मुक्ति का पथ सिखाना है , उसे मोह में बाँध कर मैं समय चक्र को नहीं रोकूंगी | और उन्होंने कृष्ण से वचन लिया कि वे जब अपने जन्म -अवतार के सभी उद्देश्यों को पूर्ण कर लें तब लौट आएं , और ऐसा हुआ भी कृष्ण अपने जन्म के सभी प्रायोजनों को पूर्ण कर , और अपने अवतार के कर्तव्य से मुक्त हो सदैव राधा के हो गए | वे अब ना द्वारिका में मिलते हैं, और ना ही कुरुक्षेत्र में , वे तो आज भी ब्रज की भूमि पर राधा रानी के साथ धूल उड़ाते दौड़ते जाते हैं...दूर तक |

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