पाकिस्तान में गेहूं पर जंग: पंजाब की नाकेबंदी से सिंध-केपी में भूख का खतरा
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इस्लामाबाद से पेशावर तक पाकिस्तान में गेहूं को लेकर घमासान मचा है, जिसे मीडिया इंटर-प्रोविंशियल व्हीट वार यानी प्रांतीय गेहूं युद्ध कह रही है. रोटी की कमी, आटे के दाम में उछाल और प्रांतीय सरकारों के बीच अविश्वास ने देश को बांट दिया है.

गेंहू उत्पादक पंजाब प्रांत की दादागिरी है, तो दूसरी ओर खैबर पख्तूनख्वा (केपी), सिंध और बलूचिस्तान में असंतोष है. पाकिस्तान की राजनीति में पंजाब को अन्य सूबों से ऊपर माना जाता है, क्योंकि राजनीति और सेना दोनों पर पंजाबियों का वर्चस्व है. बाकी राज्यों को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया गया है, जिससे आम जनता पिसती रही है.

पंजाब सबसे उपजाऊ इलाका है और देश का लगभग 70% गेहूं यहीं पैदा होता है. लेकिन अब यही पंजाब दूसरे सूबों को गेहूं भेजने में आनाकानी कर रहा है.

खैबर पख्तूनख्वा के गवर्नर फैसल करीम कुंडी ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से पंजाब सरकार द्वारा अन्य प्रांतों को गेहूं की आवाजाही पर लगाए गए प्रतिबंधों को अवैधानिक बताया है. कुंडी के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 151 में देश के भीतर प्रांतों के बीच माल, व्यापार और वाणिज्य पर रोक नहीं लगाई जा सकती.

पंजाब प्रशासन का तर्क है कि राज्य में गेहूं की कमी है और पहले अपनी जनता के लिए भंडारण करना होगा. बाकी राज्य इसे नामंजूर करते हैं, जिससे गेहूं की जंग शुरू हो गई है.

केपी, सिंध और बलूचिस्तान का आरोप है कि पंजाब भूख का पहरेदार बन गया है.

डॉन अखबार के अनुसार, केपी सरकार का कहना है कि स्थानीय गेहूं उत्पादन से केवल 25% जरूरत पूरी हो पाती है, बाकी पंजाब से खरीदना पड़ता है. पंजाब सरकार ने ट्रकों पर परमिट की पाबंदी लगा दी है और बिना मंजूरी गेहूं ले जाने पर जब्ती का आदेश जारी किया है, जिससे केपी के बाजारों में आटे की कीमतें बढ़ रही हैं.

गवर्नर कुंडी ने कहा कि यह नागरिकों की रोटी पर राजनीति करने जैसा है. पंजाब अपनी ताकत का दुरुपयोग कर रहा है और देश को संकट में धकेल रहा है. केपी को प्रतिदिन 14,500 टन गेहूं की जरूरत होती है, लेकिन आपूर्ति का आधा हिस्सा भी नहीं मिल पा रहा है.

सिंध और बलूचिस्तान के अधिकारियों का भी कहना है कि पंजाब की नीति ने सप्लाई चेन को बिगाड़ दिया है. सिंध के मंत्री ने कहा कि जब पंजाब को गेहूं चाहिए होता है तो फेडरलिज्म की बात करता है, लेकिन दूसरों को चाहिए तो दीवार खड़ी कर देता है.

बलूचिस्तान में भंडारण क्षमता कम है. गेहूं ट्रकों की जब्ती और परिवहन परमिट की नई नीति से भय फैल गया है. व्यापारी अब गैर-कानूनी रास्तों से गेहूं ले जा रहे हैं, जिससे कीमतें बढ़ गई हैं.

गेहूं को लेकर खींचतान ने पाकिस्तान के सूबों के बीच की खाई को उजागर कर दिया है. पंजाब सरकार का तर्क है कि फेडरल फूड सिक्योरिटी की जिम्मेदारी सिर्फ उसकी नहीं है. केपी सरकार इसे संघीय ढांचे के पतन के रूप में देख रही है.

पेशावर, डेरा इस्माइल खान और बन्नू में आटे के दाम आसमान छू रहे हैं. पंजाब में 20 किलो का आटा बैग 1200 रुपये का है, जबकि केपी में 2800 रुपये का. कई जगह राशन दुकानों पर लंबी कतारें लग रही हैं. गरीब सब्सिडी वाले आटे के लिए सरकारी डिपो पर निर्भर हैं, जो अब लगभग खाली हैं.

पंजाब में गेहूं किसानों को समर्थन मूल्य न मिलने की शिकायतें हैं. इस हंगामे ने पाकिस्तान में खाद्य-सुरक्षा को राजनीतिक हथियार में बदल दिया है. अब प्रांतों के बीच विश्वास की जगह प्रतिस्पर्धा है.

जब एक प्रांत दूसरे को अनाज नहीं देता, तो काला बाजार पनपता है और महंगाई बढ़ती है, जो पाकिस्तान जैसे आर्थिक रूप से बदहाल देश में आपदा है.

पंजाब की जबरदस्ती के खिलाफ बलूचिस्तान पहले से ही जल रहा है. पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के बीच भी तनाव है. गेहूं जैसे बुनियादी जरूरत के लिए विवाद पूरे मुल्क के लिए खतरनाक है.

विपक्षी दल इसे पंजाब की राजनीतिक वर्चस्व वाली नीति बता रहे हैं, जबकि सत्ताधारी दल इसे प्रशासनिक मजबूरी कह रहा है. गरीब जनता के लिए यह भूख और अस्तित्व का सवाल है.

कभी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था कहे जाने वाले देश में अब आटे की थैली पर लड़ाई हो रही है. पंजाब, जो कभी अन्न भंडार था, अब सीमाएं बंद कर रहा है. केपी, सिंध और बलूचिस्तान के लोग इसे भूख की नाकेबंदी बता रहे हैं.

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