जीतनराम मांझी खुद केंद्रीय मंत्री हैं, और बेटा बिहार सरकार में मंत्री. फिर भी, एनडीए में अपमानित महसूस कर रहे हैं. कैमरे पर बोलते हैं कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेला हैं, और सोशल साइट X पर रामधारी सिंह दिनकर की कविता शेयर करके बताने की कोशिश करते हैं जैसे बीजेपी कौरव है.
पांच साल में मोदी की डिमांड डबल हो गई है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मांझी की पार्टी को जितनी सीटें मिली थीं, अब उसका डबल चाहते हैं. अपनी दलील मजबूत करने के लिए चिराग पासवान की तरफ इशारा करते हैं, और जीतनराम मांझी तत्काल प्रभाव से डिस्क्लेमर भी लगा देते हैं कि उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.
अपने मुंह से ही अपने योगदानों की फेहरिस्त सुनाते हैं, और कहते हैं कि ये सब करने का उनको क्या मिला? जीतनराम मांझी भूल जाते हैं कि एनडीए के लिए चिराग पासवान ने जो किया है, वो नहीं कर पाए जब उनको मौका मिला था. चिराग पासवान अगर खुद को मोदी का हनुमान बताते हैं, तो साबित भी कर चुके हैं. लेकिन, मोदी का चेला बताने के बावजूद बीजेपी की जो अपेक्षा थी, उस पर खरे नहीं उतरे.
जैसे 2020 में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार को डैमेज करने का बीड़ा उठाया था, ठीक वैसे ही 2015 के चुनाव के पहले से ही बीजेपी ने जीतनराम मांझी को उसी काम पर लगाया था. 2014 के आम चुनाव के नतीजे आने के बाद जब नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को अपनी कुर्सी सौंपी थी, उसके बाद वो छोड़ने को तैयार नहीं हो रहे थे. जैसे ही नीतीश कुमार ने सख्ती दिखाई, मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए.
जब नीतीश कुमार और लालू यादव ने महागठबंधन बनाया था, दूसरी छोर से जीतनराम मांझी हमला बोल रहे थे - लेकिन उससे बीजेपी को कोई मदद नहीं मिल पाई. बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था.
क्या हैं मांझी की पॉलिटिक्स? जीतनराम मांझी बिहार के बड़े दलित नेता बन चुके हैं. कभी वो जेडीयू का दलित चेहरा हुआ करते थे, जो नीतीश कुमार के भरोसेमंद और मददगार साबित हुआ करते थे. नीतीश कुमार की बदौलत ही वो बिहार के मुख्यमंत्री बन पाए, राजनीतिक समीकरण ऐसे बने कि अपनी बिरादरी के बड़े नेता बन गए. जैसे चिराग पासवान अपनी बिरादरी के नेता हैं.
सीट बंटवारे के लिए दबाव बनाने के लिए जीतनराम मांझी चाहे जो पैंतरा अपनाए, लेकिन उनकी नाराजगी के कई और भी कारण हैं. चिराग पासवान तो उनको खटक ही रहे हैं, सबसे ज्यादा आहत वो चुनाव आयोग के व्यवहार से हैं - और उसी बात को अपमान बताते हुए सीटों की अपनी डिमांड पूरी कराकर भरपाई करना चाहते हैं.
दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर जीतनराम मांझी अपनी पीड़ा सुनाते हैं, एसआईआर में हमारे लोगों को मतदाता सूची नहीं मिली... इसलिए कि हम मान्यता प्राप्त पार्टी अभी तक नहीं बने हैं... आप समझिये, दूसरी बार इलेक्शन कमीशन के लोग गए... कमीशन के लोगों ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को बुलाया तो हमें नहीं बुलाया गया. अगर उनकी मांग मान ली जाए, तो वो हमेशा के लिए एनडीए के साथ बने रहने के लिए तैयार हैं.
कहते हैं, ये अपमान का घूंट कितना दिन सह के रहेंगे? जिसका एक विधायक नहीं है, वो अपने को बड़ा समझता है... जिसके एक-दो विधायक हैं, वो अपने को बड़ा समझ रहा है और क्या क्या मांगता है... हम सिर्फ यही आरजू करते हैं... प्रार्थना करते हैं कि हमको अगर आप बल दीजिएगा तो हम आपके लिए सदा हैं.
आंकड़ों के साथ भी दुहाई देते हैं, प्रार्थना इसलिए कर रहे हैं कि हम अपने को अपमानित समझ रहे हैं... 2015 में हमारी पार्टी बनी है... आज हम के विधानसभा में चार सदस्य हैं, और एक विधान परिषद के सदस्य हैं... बिहार में एक मंत्री भी है, लेकिन हमको इतना अपमानित होना पड़ा है कि कि हम कह नहीं सकते हैं.
जैसे चिराग पासवान पिछले चुनाव में खुद को मोदी के हनुमान के तौर पर पेश कर रहे थे, जीतनराम मांझी अपनी निष्ठा की दुहाई दे रहे हैं, हम नरेंद्र मोदी जी के चहेते हैं... उनके चेला हैं... जो नरेंद्र मोदी जी का इशारा होगा, वो एनडीए का होगा.
सीट शेयरिंग को लेकर क्या है अदावत? खुलकर भले न कहें, लेकिन जीतनराम मांझी को ये बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि बिहार में बगैर विधायक वाले चिराग पासवान को उनके बराबर या उनसे ज्यादा सीटें दी जाएं. कहने को तो वो यहां तक कह रहे हैं कि अगर उनको 15 सीटें नहीं दी जाती हैं, तो वो एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन एनडीए में ही रहेंगे.
अपने मन की बात समझाने के लिए जीतनराम मांझी ने रश्मिरथी से एक लंबी कविता की कुछ पंक्तियां सोशल साइट एक्स पर शेयर किया है. हो न्याय अगर तो आधा दो, यदि उसमें भी कोई बाधा हो, तो दे दो केवल 15 ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम, HAM वही खुशी से खाएंगे, परिजन पे असी ना उठाएंगे .
राष्ट्रकवि कहे जाने वाले रामधारी सिंह दिनकर की कविता में जीतनराम मांझी ने ज्यों की त्यों नहीं पेश की है. मांझी ने मनमाफिक दो बदलाव करके पैरोडी बनाई है. दिनकर ने अपनी कविता में हम लिखा है, और जीतनराम मांझी ने उसे अपने मतलब के हिसाब से HAM कर दिया है. ये उनकी पार्टी के नाम का संक्षिप्त रूप है - हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा.
मूल कविता में 5 ग्राम यानी गांव की बात है, मांझी ने उसे बदलकर 15 ग्राम कर दिया है. मांझी के लिए ग्राम से आशय विधानसभा सीटों से है. प्रसंग महाभारत में कौरवों के पांडवों से पांच गांव मांगने की बात है. महाभारत का प्रसंग उठाकर जीतनराम मांझी ने बीजेपी को कौरव करार दिया है, और खुद पांडव बन गए हैं. कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत उसी कविता की आगे की लाइनें सुनाने लगती हैं, दुर्योधन वह भी दे ना सका... - और ऐसा करके जीतनराम मांझी ने यहां गलती से बड़ा मिस्टेक भी कर दिया है. और, कांग्रेस प्रवक्ता को मौका मिल गया है.
विकल्प क्या हैं? कहने को तो जीतनराम मांझी यही कह रहे हैं कि 15 सीटें नहीं भी मिलीं तो वो एनडीए छोड़कर कहीं नहीं जाने वाले हैं. और, इसका एक मतलब तो यही होता है कि मजबूरन वो पिछली बार की तरह इस बार भी 7 सीटों पर भी संतोष कर सकते हैं.
और, दूसरा रास्ता ये है कि पाला बदल लें. ऐसा करके वो महागठबंधन में जा सकते हैं. लेकिन, ज्यादा सीटें तो वहां भी नहीं मिलने वाली. बस बदला पूरा करने का मौका जरूर मिल सकता है. शायद इसीलिए जीतनराम मांझी बीजेपी को किसी गफलत में भी रखना नहीं चाहते, हम एनडीए की मदद करेंगे... एक विकल्प हम यह सोचते हैं कि विधानसभा चुनाव में 6 फीसदी वोट लाना चाहिए... बिहार में 70-80 सीटें ऐसी हैं जहां हम 20-25 हजार वोट ला सकते हैं.
अंत में कहां तक जा सकते हैं? घाट घाट का पानी तो पी ही चुके हैं. जेडीयू से निकल कर जीतनराम मांझी ने अपनी पार्टी बनाई. बीजेपी के शह पर नीतीश कुमार को डैमेज करने की जीतोड़ कोशिश की. लेकिन, फिर लौटकर नीतीश कुमार के पास ही चले गए. अब जब देख रहे हैं कि नीतीश कुमार में पहले वाली बात नहीं रही, तो खुद को मोदी का चेला बता रहे हैं. एनडीए के सत्ता में नहीं लौटने की सूरत में बेटा का मंत्री पद तो चला जाएगा, लेकिन केंद्र में खुद तो मंत्री बने ही रहेंगे. कहीं भी जाना मुश्किल है - बस जितना हवा बना लें. ये बहुत है.
75 साल के मोदी के 81 साल के चेले जीतन राम मांझी 🤣🤣😂😂 pic.twitter.com/Vx15BLehUB
— Vishal JyotiDev Agarwal 🇮🇳 (@JyotiDevSpeaks) October 8, 2025
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