दिल्ली से अरब तक: हिंदूफोबिया का झूठा नैरेटिव कौन फैला रहा है? योगी पर बैन की मांग क्यों?
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर बनी फिल्म अजेय: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ ए योगी को कतर और सऊदी अरब में प्रतिबंधित कर दिया गया है. इस फिल्म को लेकर अरब देशों की असहिष्णुता कई सवाल खड़े करती है.

यह सिर्फ एक फिल्म पर बैन का साधारण मुद्दा नहीं है. यह अरब देशों की कट्टरपंथी सोच का प्रमाण है. यह भारत और सनातन विरोधी सोच का प्रतिबिंब है. दुख की बात है कि यही अतिवादी सोच भारत के एक वर्ग में भी मौजूद है.

भारत उदार, सहिष्णु और सद्भाव वाले सनातनी विचारों की भूमि है. लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो कट्टरपंथ पर अरब की सोच का अनुसरण करता है. जरूरी नहीं कि ये लोग अरब देशों में गए हों. लेकिन इनकी वैचारिक एकता देखिए, कतर और सऊदी अरब ने भारतीय फिल्म को बैन किया तो इन्होंने बिना सोचे-समझे अपने वैचारिक आका के फैसले को सही ठहरा दिया और भारत में इस फिल्म को बैन करने की मांग कर दी.

कतर और सऊदी अरब ने फिल्म को धार्मिक तौर पर संवेदनशील बताकर बैन किया है, उनका कहना है कि फिल्म से लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं. यह फिल्म एक ऐसे व्यक्ति के जीवन पर आधारित है जिसने घर त्याग कर सन्यास लिया. फिर सत्य से कोई कैसे आहत हो सकता है?

असली सवाल यह है कि फिल्म से कट्टरपंथी भावना और सनातन विरोधी सोच आहत हो रही है, इसलिए इसे बैन किया जा रहा है. और इस फिल्म के खिलाफ हिंदूफोबिया वाले नैरेटिव का प्रचारित किया जा रहा है. यही वो नैरेटिव है जो अरब की कट्टरता को भारत में बैठे कट्टरपंथियों से जोड़ता है.

इससे पहले भी सिंघम अगेन, भूल भुलैया-3, द केरल स्टोरी, द कश्मीर फाइल्स जैसी कई फिल्मों को अरब देशों में बैन किया गया है, कथित तौर पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के कारण. यह हिंदूफोबिया यानी हिंदुओं के खिलाफ दुष्प्रचार, घृणा और नकारात्मक सोच का प्रमाण है. द केरल स्टोरी की कहानी में दिखाया गया है कि कैसे मजहब के नाम पर हिंदू लड़कियों को बरगलाया गया, उनका ब्रेनवॉश किया गया और धर्मांतरण कराया गया. लेकिन यह सच्चाई अरब देशों को पसंद नहीं आई.

अरब की कट्टरपंथी सोच के भारतीय अनुयायियों ने भी द केरल स्टोरी को बैन करने के लिए भारत में हंगामा किया था. कतर और कुवैत ने भी इस फिल्म को बैन कर दिया था.

हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलानेवाले और हिंदूफोबिया वाले नैरेटिव का प्रचार करनेवाले इस इंटरनेशनल गठबंधन को ऐसे समझिए की चार्ली हेब्दो कार्टून विवाद में भी कट्टरपंथी संगठनों ने OIC और अरब देशों को चिट्ठी लिखी थी.

भारत में बैठे कट्टरपंथियों ने हर बार अरब देशों के साथ मिलकर हिंदूफोबिया वाले नैरेटिव को आगे बढ़ाया है. उन्हें हिंदुओं के खिलाफ होनेवाली हिंसा नहीं दिखती. अमेरिका में हिंदू मंदिर पर हुए हमले को, कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमला और रथयात्रा पर अंडे फेंके जाने की हिंदू विरोधी घटनाओं को ये अनदेखा कर देते हैं.

2022 में इंग्लैंड के लेस्टर में हिंदू मंदिरों पर हमला हो या बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों को तोड़ने और उन्हें जलाने की घटनाएं हों, हिंदूफोबिया का फर्जी नैरेटिव तैयार करनेवाला इंटनेशनल कट्टरपंथी गैंग इन घटनाओं को छिपाने की भरपूर साजिश करता है.

कट्टरपंथियों के प्रोपेगैंडा तंत्र ने हिंदुओं को ही नफरती और हिंसक साबित करने की साजिश रची है. सोशल मीडिया पर इस हिंदू विरोधी अभियान का नतीजा यह है कि कनाडा में हिंदू विरोधी हिंसा 150% तक बढ़ी, अमेरिका में एंटी हिंदू घटनाएं 62% तक बढ़ी.

दुनिया के किसी भी देश में किसी भी हिंसक घटना में हिंदुओं के शामिल होने की खबर आपने नहीं सुनी होगी. फिर यह हिंदूफोबिया वाला नैरेटिव क्यों प्रचारित किया जा रहा है? वजह साफ है, कट्टरपंथियों की हिंसा से दुनिया का ध्यान भटकाना.

कट्टरपंथियों के पाप को छिपाने के लिए उनके वैचारिक अग्रज हिंदूफोबिया वाला नैरेटिव का दुष्प्रचार कर रहे हैं. लेकिन दुनिया सच जानती है.

यूरोप के देशों में कट्टरपंथियों के खिलाफ लोग सड़क पर उतरने लगे हैं. ट्रम्प की समर्थक वैलेंटीना गोमेज ने ब्रिटेन में अप्रवासी विरोधी रैली में अमेरिका और यूरोप के लिए इस्लाम को खतरा बताया, हिंदुत्व को नहीं.

यूरोप में 2024 में कट्टरपंथियों से जुड़ी हिंसक घटनाएं 150 प्रतिशत तक बढ़ी हैं. इन देशों में इस्लामोफोबिया बड़ा मुद्दा बना रहा है, हिंदूफोबिया नहीं.

इस इस्लामोफोबिया वाले नैरेटिव को काउंटर करने के लिए, कट्टरपंथियों की हिंसा को छिपाने के लिए शातिर कट्टरपंथी गैंग एक्टिव है. यह गैंग सनातन की छवि को बट्टा लगाने के लिए हिंदूफोबिया वाला फर्जी नैरेटिव गढ़ रहा है और उसे प्रचारित कर रहा है.

जरूरी है कि कट्टरपंथियों की साजिश को उजागर किया जाए, और यह दोहराया जाए की सनातन का जीवन मंत्र शांति और सह-अस्तित्व है.

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