कतर के बाद क्या तुर्किए होगा इजरायल का अगला निशाना? एर्दोआन के बयान से नेतन्याहू हुए नाराज़!
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कतर पर इजरायल के हमले के बाद अटकलें तेज हैं कि इजरायल का अगला निशाना पाकिस्तान का दोस्त और भारत का विरोधी तुर्किए हो सकता है। यह महज कल्पना नहीं, बल्कि एक अमेरिकी थिंक टैंक का आकलन है।

अमेरिकी थिंक टैंक AEI की रिपोर्ट के अनुसार, हमास के खिलाफ इजरायल की रणनीति को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि इजरायली कार्रवाई अब गाजा या उसके आसपास तक सीमित नहीं रहेगी। ईरान और कतर में हमास के आतंकियों को खत्म करके इजरायल ने यह साबित कर दिया है। वर्तमान में, हमास को सबसे ज्यादा नैतिक समर्थन तुर्किए से मिल रहा है। इसलिए यह संभव है कि इजरायल अब तुर्किए में हमास के आतंकियों को खत्म करे या फिर तुर्किए से सामरिक टकराव की तरफ कदम बढ़ाए।

गाजा युद्ध के दौरान हमास को ईरान और तुर्किए से लगातार समर्थन मिला। ईरान से इजरायल टकरा चुका है। कतर पर हमले पर एर्दोआन की प्रतिक्रिया इजरायल को उकसाने के लिए पर्याप्त है।

कतर पर इजरायली हमले को लेकर एर्दोआन ने कहा कि यह कतर की स्वतंत्रता का हनन है और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है। उन्होंने बेंजामिन नेतन्याहू पर आतंकवाद को राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बनाने का आरोप लगाया। एर्दोआन ने इजरायल को आतंकी देश घोषित कर दिया, क्योंकि वह खुद को इस्लामिक जगत का खलीफा साबित करना चाहते हैं और हमास को अपने प्रोपेगेंडा का हथियार बना रहे हैं।

गाजा में हमास और इजरायल के युद्ध को तुर्किए ने इजरायली आक्रमण बताया है। एर्दोआन ने हमास के आतंकियों को मुजाहिदीन कहा और ईरान में हमास नेता इस्माइल हानियेह की मौत पर तुर्किए में राष्ट्रीय शोक घोषित किया।

तुर्किए लंबे समय से हमास का समर्थन कर रहा है। वर्ष 2010 में, जब एर्दोआन प्रधानमंत्री थे, तब तुर्किए के अंदर हमास के आतंकियों को सरकारी समर्थन मिलना शुरू हुआ। इजरायली जांच एजेंसी शिन बेत की रिपोर्ट में कहा गया था कि तुर्किए के शहरों में हमास के कमांड सेंटर हैं, जो आतंकियों के लिए फंडिंग जुटाते हैं। 2020 में, इजरायल ने कुछ हमास आतंकियों को पकड़ा था, जिनके पास तुर्किए में बने फर्जी पासपोर्ट और नागरिक पहचान पत्र थे।

एर्दोआन NATO के सदस्य होने और आर्टिकल 5 (किसी सदस्य देश पर हमला पूरे गठबंधन पर हमला माना जाएगा) को अपना कवच मानते हैं। हालांकि, NATO का संविधान हर सदस्य देश को यह स्वतंत्रता देता है कि वह आर्टिकल 5 के मुद्दे पर असहमत हो सकता है और टकराव से अलग हो सकता है। यदि कुछ सदस्य देश टकराव में शामिल देश को आक्रमणकारी मानते हैं, तो वे सैन्य सहायता देने के लिए बाध्य नहीं हैं।

1974 में, तुर्किए ने साइप्रस पर हमला करके उसका एक हिस्सा कब्जा लिया था, जिससे तुर्किए और ग्रीस के बीच रिश्तों में तनाव है। स्वीडन और फिनलैंड ने NATO की सदस्यता के लिए आवेदन दिया था, लेकिन तुर्किए ने शर्त रखी थी कि तुर्किए के विद्रोहियों का प्रत्यर्पण करने पर ही वह согласи जताएगा।

कुछ सामरिक हलकों में माना जाता है कि हमास का समर्थन करके तुर्किए खुद को आक्रमणकारी देश साबित कर चुका है। अगर इजरायल ने तुर्किए पर सीधा हमला किया या मोसाद ने कोई ऑपरेशन किया, तो NATO सदस्य देश तुर्किए की मदद के लिए नहीं आएंगे। इजरायल का हमला एर्दोआन से इस्लामिक जगत के खलीफा का ओहदा भी छीन सकता है।

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