नेपाल में जेन जेड का बवाल: हिंसा के बीच फंसे भारतीय लौटे, बताई आपबीती
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नेपाल में जेन जेड (Gen Z) के विरोध प्रदर्शनों के चलते स्थिति गंभीर बनी हुई है। हिंसक प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद, कई भारतीय नागरिक वहां फंस गए थे। अब कुछ भारतीय अलग-अलग रास्तों से वापस भारत आ चुके हैं और उन्होंने राहत की सांस ली है।

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में पानीटंकी के भारत-नेपाल बॉर्डर पार कर कई भारतीय नागरिक स्वदेश लौटे हैं। असम से लौटे एक यात्री ने बताया कि नेपाल में स्थिति नियंत्रण से बाहर है और हड़ताल 10-15 दिनों तक जारी रहने की आशंका है। असम के एक व्यक्ति ने नेपाल से लौटने के बाद कहा कि वह बहुत खुश है और उसे ऐसा लग रहा है कि उसकी जान बच गई।

उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में भारत-नेपाल बॉर्डर पर फंसे भारतीयों को सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) की मदद से वापस लाया जा रहा है। नेपाली नागरिकों को मेडिकल इमरजेंसी या अन्य किसी भी आपातकालीन स्थिति में पूरी जांच के बाद ही भारत में प्रवेश करने की अनुमति दी जा रही है।

नेपाल में हिंसा का मुख्य कारण सरकार द्वारा फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और यूट्यूब समेत 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाने का फैसला था। सरकार ने गलत जानकारी के प्रसार को लेकर चिंता जताई थी। लोगों ने इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमला माना। जनता का गुस्सा तब और बढ़ गया, जब सोशल मीडिया पर नेपो बेबीज ट्रेंड ने राजनेताओं के बच्चों की जीवनशैली को उजागर किया और आम लोगों के बीच आर्थिक असमानता को दर्शाया।

सोशल मीडिया पर मेजर पवन कुमार ने सूर्यकुमार यादव की मोहसिन नकवी के साथ हाथ मिलाने की तस्वीर साझा करते हुए टिप्पणी की, हमारे क्रिकेट खिलाड़ियों का असली चरित्र। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने आज हमारे दो बहादुरों को मार डाला और बीसीसीआई कप्तान के चेहरे पर मुस्कान है जब वे पीसीबी अध्यक्ष मोहसिन नकवी से मिल रहे थे, जो भारत माता पर परमाणु हमला चाहते थे।

14 सितंबर को एशिया कप 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण मुकाबला होने वाला है। हालांकि, इस मैच को लेकर भारत में अभी भी आक्रोश है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से दोनों देशों के रिश्ते और खराब हो गए हैं। कई भारतीय नागरिक चाहते हैं कि हमारे खिलाड़ी पाकिस्तान के साथ कोई भी खेल न खेलें। बीसीसीआई ने इस मैच को हरी झंडी दे दी है, जिससे कई प्रशंसक नाराज हैं।

नेपाल चीन के कर्ज तले दबा हुआ है और अमेरिका भी उसे बड़ी मात्रा में मदद कर रहा है। ऐसे में, नेपाल सिर्फ एक मोहरा बनकर रह गया है। चीन और अमेरिका के नेपाल में निवेश को लेकर भारत सतर्क हो गया है और इस पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है। अब सवाल यह है कि क्या नेपाल में हुए इतने उग्र प्रदर्शनों के पीछे किसी विदेशी ताकत का हाथ है?

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