कश्मीर के हजरतबल दरगाह में शुक्रवार को अशोक चिह्न को ईंट और पत्थरों से तोड़ा गया. यह कट्टरपंथी सोच का प्रमाण है. इस सोच को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न पर ऐतराज है.
जिन लोगों की आंखों में भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न चुभता है, उनके दिल में चांद-सितारा वाला प्रतीक क्यों बसा हुआ है? अशोक चिह्न पर प्रहार करनेवाले गद्दार गैंग के खिलाफ अब तक अज्ञात लोगों के खिलाफ ओपन FIR तो दर्ज कर ली गई, करीब 50 लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में भी लिया गया. लेकिन पूछताछ के बाद हिरासत में लिए गए लोगों को छोड़ दिया गया. यानी अशोक चिह्न विवाद पर अपडेट ये है कि 72 घंटे बाद भी कोई औपचारिक गिरफ्तारी नहीं हुई है. पत्थर से राष्ट्र चिह्न तोड़ने वाले अब भी आजाद घूम रहे हैं.
तोड़फोड़ करनेवालों के खिलाफ BNS की धारा 300 (धार्मिक पूजा कर रहे समूह में विघ्न डालना), धारा 352 (शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान करना), धारा 191(2) (दंगा करना), धारा 324 (गलत तरीके से नुकसान या क्षति पहुँचाना), धारा 61(4) (आपराधिक षडयंत्र) के साथ ही राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम के प्रावधान भी लगाए गए हैं. लेकिन गिरफ्तारी शून्य है.
पूरा देश हजरतबल दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के अपमान से आक्रोशित है. दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग हो रही है.
अलगाववादियों और कट्टरपंथियों के लिए दिल में ममता रखनेवाली महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड के अधिकारियों के खिलाफ ही FIR दर्ज कराने की मांग कर रही हैं. महबूबा ने कहा कि लोगों ने राष्ट्रीय प्रतीक के साथ छेड़छाड़ नहीं की है, लेकिन वे मूर्ति पूजा के खिलाफ थे. यह हमारे लिए ईशनिंदा है. वक्फ बोर्ड से जुड़े लोगों पर ईशनिंदा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए.
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न लगाना ईशनिंदा लगता है. हजरतबल में राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के अपमान के पीछे यही ईशनिंदा वाली कट्टरपंथी सोच है.
महबूबा मुफ्ती के सीएम रहते भी हजरतबल दरगाह में एक बोर्ड लगा था. इस बोर्ड पर अशोक चिह्न अंकित था. लेकिन तब सीएम के सिंहसान पर बैठीं महबूबा मुफ्ती को ये ईशनिंदा नहीं दिखता था.
ईशनिंदा पैगंबर, पवित्र वस्तु या धार्मिक विश्वास का अनादर है. पाकिस्तान-सऊदी अरब जैसे देशों में ईशनिंदा के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान है. क्या यही ईशनिंदा वाला कानून महबूबा मुफ्ती और उनके जैसे लोग भारत में लागू कराना चाहते हैं.
इस चालाकी भरी कट्टरपंथी सोच से सतर्क रहने की जरूरत है. क्योंकि ये सोच भारत के धर्मनिरपेक्ष और उदार समाज को अपने कट्टरपंथी विचारों में रंगना चाहती है. इन्हें राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न का अपमान करनेवाले मासूम और निर्दोष लगते हैं और इस अपराध का विरोध करनेवाले दोषी.
संविधान का अनुच्छेद 51A कहता है कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीक को सम्मान देना हर नागरिक का मौलिक कर्तव्य है.
दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक देश इंडोनेशिया का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ है. मिस्र के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न बाज है. इराक का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह बाज है. यमन का राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न भी बाज है. सीरिया का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह भी बाज है.
अशोक चिन्ह में चार सिंह की आकृति को इस्लाम विरोधी बतानेवालों की सोच छोटी, मौकापरस्त और कट्टरपंथी है.
चांद सितारा इस्लामिक प्रतीक चिह्न नहीं है. 14वीं सदी में ओटोमन साम्राज्य के झंडे पर पहली बार आधा चांद और सितारा लगाया गया था. कट्टरपंथियों ने इसे इस्लामिक पहचान से जोड़ दिया. यही सोच भारत के कट्टरपंथियों को पाकिस्तान से जोड़ती है.
अशोक चिह्न देखते ही इन कट्टरपंथियों के दिल में दर्द उठने लगता है क्योंकि इनके मन में चांद-सितारा बसा हुआ है. शायद ये कट्टरपंथी भारत में भी चांद-सितारा वाला झंडा देखना चाहते हैं.
भारत सनातन जीवन मूल्य वाला धर्मनिरपेक्ष देश है जो सह अस्तित्व की भावना में विश्वास रखता है. यहां भारतीय परंपरा से जुड़े सांस्कृतिक चिह्न भी राष्ट्रीय प्रतीक हैं.
राष्ट्र धर्म किसी भी धर्म से पहले होता है. राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध है और ऐसा करनेवालों पर कानून के मुताबिक कार्रवाई जरूर होगी.
*#DNAWithRahulSinha | अशोक चिह्न तोड़ने वालों का क्या हुआ? भारत का राष्ट्रीय चिह्न.. इस्लाम के खिलाफ?
— Zee News (@ZeeNews) September 8, 2025
#DNA #JammuKashmir #AshokaEmblem #Srinagar | @RahulSinhaTV pic.twitter.com/f7oVPpgqbP
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