गणपति विसर्जन: घुड़सवार पुलिस तैनात, जानिए क्या है भूमिका और कैसे करती है काम?
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कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है. अपराध रोकने के साथ-साथ भीड़ को नियंत्रित करना भी पुलिस का एक महत्वपूर्ण कार्य है. त्योहारों और प्रदर्शनों के दौरान भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस बल को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें घुड़सवार पुलिस की अहम भूमिका होती है.

गणपति विसर्जन के दौरान हैदराबाद पुलिस ने अपने घुड़सवार दस्ते को तैनात किया है. आइए जानते हैं कि घुड़सवार पुलिस क्या होती है और कैसे काम करती है.

अंग्रेजों के शासनकाल से ही घोड़े कानून व्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, जमैका और मध्य पूर्व में भी घुड़सवार पुलिस दिखाई देती है.

हाल ही में हैदराबाद की घुड़सवार पुलिस शाखा में शामिल हुई 10 महिला अधिकारियों ने प्रशिक्षण पूरा करने के बाद अपने कौशल का प्रदर्शन किया. हैदराबाद पुलिस कमिश्नर सीवी आनंद ने कहा कि उनके पास 50 घोड़ों वाली एक विशाल घुड़सवार पलटन है और उन्होंने महिला अधिकारियों को भी घुड़सवारी की भूमिका निभाने का अवसर दिया है.

गुजरात, केरल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता जैसे शहरों की पुलिस में घुड़सवार इकाइयां हैं. हैदराबाद के निवर्तमान पुलिस आयुक्त सीवी आनंद का कहना है कि तकनीक के विकास के बावजूद घुड़सवार प्लाटून हैदराबाद पुलिस का अभिन्न अंग हैं.

कोलकाता घुड़सवार पुलिस की शुरुआत 1840 में हुई थी. वर्तमान में, यह इकाई खेल आयोजनों और मेलों के दौरान भीड़ को नियंत्रित करती है और वीआईपी के आगमन के दौरान औपचारिक परेड में भाग लेती है.

मुंबई पुलिस का घुड़सवार दस्ता अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान 1845 के आसपास तैनात हुआ था, लेकिन इसे आजादी से पहले ही हटा दिया गया था. हालांकि, साल 2020 में गणतंत्र दिवस की परेड पर इस दस्ते की वापसी हुई. 2020 में क्राउड कंट्रोल के लिए घुड़सवार दस्ते को बेहतर मानते हुए, खासकर मुंबई के समुद्र तटों और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में पुलिसकर्मियों की मदद के लिए घोड़ों को प्रशिक्षित किया गया.

कर्नाटक में मैसूरु में मुख्यालय वाले राज्य रिजर्व पुलिस बल (केएसआरपीएफ) का एक हिस्सा, सशस्त्र रिजर्व घुड़सवार पुलिस (KARPF) है. इसकी घुड़सवार इकाई का गठन 1952 में तत्कालीन रियासत के शासक कृष्णराज वोडेयार ने किया था.

केरल की घुड़सवार पुलिस इकाई की शुरुआत 1880 में त्रावणकोर के महाराजा ने की थी. यह तिरुवनंतपुरम शहर पुलिस के अधीन तैनात है.

उत्तर प्रदेश पुलिस में घुड़सवार पुलिस कर्मियों के कुल 324 पद हैं. यूपी में 2020 में पुलिस विभाग में घुड़सवार पुलिस के 105 पदों के लिए भर्ती निकाली गई थी.

उत्तराखंड की घुड़सवार टुकड़ी 2016 में तब चर्चा में आई थी जब एक पुलिस घोड़े की चोटों के कारण मौत हो गई थी.

बिहार पुलिस का घुड़सवार दस्ता फसल की निगरानी और चुनाव ड्यूटी में भी अपनी भूमिका निभाता है.

घुड़सवार पुलिस वह पुलिस होती है, जिसमें पुलिस के जवान घोड़े की पीठ पर सवार होकर गश्त करते हैं. जरूरत पड़ने पर घोड़ों पर सवार पुलिस के जवान ऊंचाई का लाभ उठाते हुए भीड़ की गतिविधियों को दूर से देख सकते हैं. घुड़सवार पुलिस जंगली इलाकों में भी गश्त करती है और दंगा नियंत्रण में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.

भारत के पुलिस रेग्यूलेशन एक्ट में बिंदु 79 से 83 तक घुड़सवार पुलिस के बारे में बताया गया है, जिसके मुताबिक घुड़सवार पुलिस उत्सवों या अन्य आयोजनों में भीड़ नियंत्रण का काम करती है. हालांकि, इस बात का भी जोखिम रहता है कि घुड़सवार पुलिस के एक्शन के दौरान किसी को चोट लग सकती है.

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