क्या दशहरा पूजा में गैर-आस्थावान मुख्य अतिथि? कर्नाटक सरकार के फैसले पर विवाद
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मैसूर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा महोत्सव के उद्घाटन के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा मुस्लिम लेखिका बानू मुश्ताक को आमंत्रित करने पर विवाद खड़ा हो गया है। बीजेपी ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है।

दशहरा, जो सदियों से एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता रहा है, इस बार राजनीति के घेरे में आ गया है। सरकार के इस फैसले ने राज्य में सियासी तूफान ला दिया है।

विवाद का मूल कारण यह है कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति, जिसकी हिंदू देवी-देवताओं में आस्था नहीं है, दशहरे जैसे गंभीर धार्मिक अनुष्ठान का नेतृत्व कर सकता है? बीजेपी का कहना है कि दशहरा कोई सरकारी समारोह नहीं, बल्कि एक गहरी धार्मिक परंपरा है।

हर वर्ष देवी चामुंडेश्वरी की पूजा के साथ इसकी शुरुआत होती है और इसे शुरू करने वाले को पूरे मन से भक्त होना जरूरी माना जाता है। बीजेपी का मानना है कि बानू मुश्ताक को इस आयोजन की शुरुआत करने देना हिंदू आस्था का अपमान है।

दशहरा हिंदुओं का प्रमुख पर्व है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। मैसूर में इसका विशेष महत्व है, जहाँ चामुंडी पहाड़ियों पर देवी चामुंडेश्वरी की पूजा के साथ उत्सव की शुरुआत होती है।

बीजेपी नेताओं का आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने धर्म का अपमान करके बानू मुश्ताक को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया है। उनका कहना है कि यह परंपरा मैसूर के राजाओं ने शुरू की थी और यह पूरी तरह से देवी चामुंडेश्वरी के प्रति भक्ति से जुड़ी है।

केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने कहा कि यह एक पवित्र त्योहार है, न कि कोई सांस्कृतिक उत्सव और इसे तुष्टिकरण की राजनीति का मंच नहीं बनाया जा सकता।

पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा ने सवाल उठाया कि क्या बानू मुश्ताक देवी चामुंडी में विश्वास करती हैं? क्या उन्होंने कभी हिंदू रीति-रिवाजों का पालन किया है?

कर्नाटक सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि मैसूर दशहरा एक राजकीय उत्सव है और इसे सिर्फ धर्म के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। गृह मंत्री परमेश्वर ने कहा कि अतीत में भी अन्य धर्मों के लोगों ने इस उत्सव में भाग लिया है।

सरकार का तर्क है कि यह सभी के लिए एक उत्सव है और इसमें धर्म को मिलाना सही नहीं है। मंत्री एचके पाटिल ने कहा कि दशहरा सभी के लिए है, इसमें किसी को राजनीति नहीं करनी चाहिए।

लेकिन सवाल यह है कि क्या पूजा करने का हक भी उस व्यक्ति को दिया जा सकता है, जो उस पूजा में विश्वास ही नहीं रखता?

अगर ऐसा है, तो क्या मुस्लिम मस्जिदों के उद्घाटन में किसी हिंदू संन्यासी को बुलाया जाएगा? क्या कोई नास्तिक हज का नेतृत्व करेगा?

मैसूर का दशहरा उत्सव सदियों से चली आ रही एक धार्मिक परंपरा है। यह विजयादशमी के दिन चामुंडी पहाड़ियों में देवी चामुंडेश्वरी की पूजा के साथ शुरू होता है।

बीजेपी का मूल सवाल यही है कि क्या एक धार्मिक कार्यक्रम का उद्घाटन ऐसा व्यक्ति कर सकता है, जिसकी उस धर्म में आस्था न हो? यह सवाल करोड़ों भक्तों की भावनाओं से जुड़ा है जो इस उत्सव को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक पवित्र अनुष्ठान मानते हैं।

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