धैर्य और एकाग्रता: चेतेश्वर पुजारा का क्रिकेट सफर
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चेतेश्वर पुजारा, विराट कोहली की तरह दिलकश कवर ड्राइव या रोहित शर्मा की तरह पुल शॉट नहीं लगाते थे। ऋषभ पंत की तरह सांसें रोक देने वाले हुक शॉट खेलने की क्षमता भी उनमें नहीं थी। लेकिन टी20 के युग में उन्होंने अपनी बेहतरीन तकनीक, मजबूत मानसिकता और अदम्य धैर्य के साथ टेस्ट क्रिकेट के हर पैमाने पर खुद को साबित किया।

सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली जैसे दिग्गजों के बाद पुजारा 2013-14 से 2023 तक 100 से ज्यादा टेस्ट मैचों में भारतीय बल्लेबाजी की धुरी बने रहे। उनका योगदान छक्कों या स्ट्राइक रेट से नहीं, बल्कि क्रीज पर बिताए समय, धैर्य और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ आक्रमणों का दिलेरी से सामना करने से मापा जाता है।

अगर भारतीय बल्लेबाजी की तुलना एक भव्य इमारत से करें तो कोहली उसके वास्तुकार थे, लेकिन इसकी नींव चेतेश्वर पुजारा थे। पुजारा उन लोगों के लिए पुरानी यादों की तरह थे जो टेस्ट क्रिकेट को पसंद करते हैं, उस दौर की याद दिलाते हैं जब टी20 क्रिकेट का कोई अस्तित्व ही नहीं था।

पुजारा के पिता अरविंद ने प्रथम श्रेणी के कुछ मैच खेले थे और सीमित संसाधनों के बावजूद चेतेश्वर के लिए उनके सपने बड़े थे।

टी20 की लोकप्रियता के बाद मौजूदा दौर के प्रशंसकों ने पुजारा की बल्लेबाजी को अपरंपरागत करार दिया, लेकिन उनके पिता ने बचपन में उनके दिमाग में यह बात बैठा दी थी कि टेस्ट क्रिकेट ही असली क्रिकेट है।

उनकी पत्नी पूजा ने अपनी किताब में लिखा है कि चेतेश्वर पुजारा कम बोलने वाले और भावनाओं का कम इजहार करने वाले व्यक्ति हैं। अगर एक मुस्कान से काम चल सकता है तो वह बोलना पसंद नहीं करते। अगर एक वाक्य तीन शब्दों में खत्म हो सकता है, तो वह एक और शब्द जोड़ने की कोशिश नहीं करेंगे।

वह टीम के ऐसे भरोसेमंद योद्धा थे जिसे आप युद्ध में जाते समय अपने साथ रखना चाहेंगे। गाबा में जब पंत ने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों की बखिया उधेड़ी तो दूसरी ओर पुजारा ना सिर्फ क्रीज पर डटे रहे बल्कि तेज गेंदों की 11 गेंदें अपने शरीर पर झेली। उनकी 211 गेंद में 56 रन की पारी ने उनके व्यक्तित्व को दर्शाया।

ऐतिहासिक जीत के बाद जब टीम में हर कोई अपनी चमक दिखा रहा था तो वहीं पुजारा के शरीर के घाव ही उनके सम्मान का प्रतीक बन गए। गाबा में पंत की आक्रामक और असाधारण पारी की सफलता का श्रेय भी काफी हद तक पुजारा की उत्कृष्ट और साहसिक बल्लेबाजी को जाता है।

सौराष्ट्र क्रिकेट के राजकोट स्थित मैदान 80 और 90 के दशक में एकदिवसीय क्रिकेट की मेजबानी करता था जहां सपाट पिच के कारण बड़े स्कोर वाले मैच होते थे। अरविंद पुजारा का सपना था एक ऐसा टेस्ट क्रिकेटर बनाना, जो न केवल खेले बल्कि विशिष्टता के साथ अपनी पहचान भी बनाए।

सीमित संसाधनों के साथ वह मुंबई गये और भारत के पूर्व क्रिकेटर करसन घावरी से मिलकर बेटे को क्रिकेटर बनाने को लेकर राय मांगी। घावरी ने पुजारा को बल्लेबाजी करते देखा और अरविंद को हरी झंडी दे दी। इसके बाद सीनियर पुजारा ने अपने बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।

यह सफर आसान नहीं था और जब पुजारा के वयस्क होने से पहले ही उनकी मां रीना कैंसर से जंग हार गईं तो यह और भी मुश्किल हो गया। कल्पना कीजिए कि एक 17 साल के लड़के पर क्या बीती होगी, जब उसने एक जिला मैच खेलने के बाद अपनी मां से बात की और उन्हें बताया कि वह शाम तक घर पहुंच जाएगा। लेकिन जब वह घर पहुंचा तो उसकी सबसे बड़ी प्रेरणा हमेशा के लिए दुनिया छोड़कर जा चुकी थी।

अरविंद ने कहा कि उनकी पत्नी के निधन के बाद उनके बेटे की आंखे कई दिनों तक नम नहीं हुई थी और यह उनके लिए काफी चिंता का सबब था। उन्होंने कहा कि उनके बेटे ने अपने दर्द को पूरी तरह से अंदर दबा लिया था।

शायद व्यक्तिगत जीवन में दर्द सहने से पुजारा के लिए क्रिकेट के मैदान पर मुसीबतों का सामना करना आसान हो गया था।

वह एक आध्यात्मिक व्यक्ति हैं और अति उत्साह के साथ जश्न मनाने में विश्वास नहीं करते। वह खुशी मिलने और अच्छे समय पर अपने गुरुजी के आश्रम में जाकर उनका आशीर्वाद लेना पसंद करते हैं।

उन्होंने 2018-19 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर 1258 गेंदों का सामना कर 521 रन बनाये। उन्होंने एक छोर संभालते हुए अपने करियर के चरम पर चल रहे जोश हेजलवुड, पैट कमिंस और मिचेल स्टार्क जैसे गेंदबाजों को खूब थकाया।

उन्होंने इस दौरे पर तीन शतक जड़े जिसमें से एक शतक मेलबर्न के मैदान पर आया था। इस मैच के दौरान उनके पिता का मुंबई में ऑपरेशन हुआ था और मैच खत्म होने तक पुजारा को इसके बारे में बताया नहीं गया था।

यह वह सीरीज थी जिसने पुजारा को भारत के आधुनिक टेस्ट मैच के महान खिलाड़ियों में से एक बनाया। वह एक अडिग चट्टान बन कर गेंदबाजों के दिमाग में बस गये।

7000 से अधिक रन और 19 शतकों के बावजूद उन्हें वैसी सराहना नहीं मिली जिसके वह हकदार रहे हैं। ऐसे दौर में जहां हर कोई स्ट्राइक रेट, आईपीएल करार और जश्न को लेकर जुनूनी है, पुजारा की सोच पुरानी लगने लगी थी।

वह कभी आधुनिक भारतीय क्रिकेटर की छवि में फिट नहीं बैठे। न कोई ड्रामा, न टीवी पर विज्ञापन, न सोशल मीडिया पर दिखावा। वह तो बस भारत के लिए बल्लेबाजी करते थे और बल्लेबाजी करते थे और बल्लेबाजी करते थे।

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