बैंड पार्टी का हिंदू नाम, मालिक मुसलमान: क्या ये अधर्म है?
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मुरादाबाद के एक वकील ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में कहा गया है कि मुरादाबाद में कई बैंड मुस्लिम चला रहे हैं, लेकिन बैंड का नाम हिंदू देवी-देवताओं या हिंदू नामों पर है। शिकायतकर्ता का तर्क है कि इससे धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं।

शिकायत के बाद, एक टीम मुरादाबाद की उन गलियों में पहुंची जिसे बैंड वालों का बाजार कहा जाता है। एक दुकान पर ‘अशोक बैंड’ का बोर्ड लगा था, जिसके नीचे छोटे अक्षरों में मालिक का नाम हाजी अनीस लिखा था। अगली दुकान ‘रवि बैंड’ की थी, जिसके मालिक हनीफ थे। तीसरी दुकान ‘मिलन’ की थी, जिसके मालिक मोनू उर्फ इरफान थे।

शिकायत में कहा गया है कि मालिक मुस्लिम हैं, लेकिन बैंड के नाम से इसका कोई संकेत नहीं मिलता। इससे हिंदू समुदाय के एक तबके में सवाल उठ रहे हैं। क्या बैंड वाले अपनी पहचान छिपाने के लिए हिंदू नाम का इस्तेमाल करते हैं? अगर ऐसा है, तो इसके पीछे मकसद क्या है? और क्या कोई मुसलमान हिंदू नाम से व्यापार कर सकता है?

भारत में बैंड बाजे की परंपरा ब्रिटिश काल से शुरू हुई। 18वीं और 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश सेना के बैंड आधिकारिक आयोजनों में बजते थे। महाराजा रणजीत सिंह पहले भारतीय शासक थे जिनके दरबार में बैंड बजाया गया था। 1880 से 1900 के बीच स्थानीय बैंड बनाए जाने लगे, जो लोकगीत और धुन बजाते थे। 20वीं सदी के आरंभ में बैंड शादियों का हिस्सा बन गए।

पिछले 100 वर्षों से बैंड बाजा भारतीय समाज का हिस्सा है। लेकिन अब मुरादाबाद में बैंड के नाम और मालिक की पहचान को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। बैंड मालिकों से इस सवाल का जवाब पूछा गया है। हिन्दू नाम पर बैंड और मुस्लिम मालिक इस विवाद पर बैंड वालों का भी पक्ष सामने आया है।

कांवड़ यात्रा के दौरान भी दुकानों पर मालिकों का नाम लिखने के निर्देश दिए गए थे। इसी तरह, मुरादाबाद में भी मांग उठ रही है कि व्यवसायी अपनी पहचान साफ-साफ बताएं।

कानून में सीधे तौर पर किसी व्यवसायी को दूसरे धर्म के नाम का इस्तेमाल करने से मना नहीं किया गया है। लेकिन ट्रेड मार्क्स एक्ट 1999 में कहा गया है कि अगर कोई नाम उपभोक्ता को धोखा देता है या भ्रमित करता है, तो उसे ट्रेड मार्क नहीं माना जाएगा। अगर किसी नाम से धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं तो ट्रेड मार्क रद्द किया जा सकता है।

धार्मिक भावनाएं आहत होने के आधार पर ही मुरादाबाद में शिकायत दर्ज की गई है। कुछ हिंदुत्ववादी संगठन इसे व्यवसाय पर कब्जा करने से जोड़ रहे हैं।

ईस्ट इंडिया कंपनी के आने से पहले, ढोल नगाड़ा बजाने का काम ढोली, लंगा, मिरासी, कलंदर, नट और बेडिया वर्ग करते थे। 16वीं से 17वीं शताब्दी के बीच इन वर्गों में शामिल आबादी के एक हिस्से ने इस्लाम भी अपनाया।

वर्ष 2024 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष औसतन 1 करोड़ शादियां होती हैं। शादी के इस पूरे कारोबार का दायरा तकरीबन 7 लाख करोड़ रुपए का है, जिसमें बैंड बाजे का हिस्सा तकरीबन 8 प्रतिशत यानी 50 हजार करोड़ रुपए तक का माना जाता है। भारत में पूरे देश के अंदर 7 हजार से ज्यादा बैंड हैं।

बैंड बाजा भले ही असंगठित क्षेत्र हो, लेकिन ये एक बड़ा व्यवसाय है जिससे लाखों लोगों का रोजगार जुड़ा है।

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