नीतीश कुमार का टोपी पहनने से इनकार, बिहार की राजनीति में भूचाल!
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पटना के बापू सभागार में बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के शताब्दी समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को टोपी पहनने के लिए दी गई, जिसे उन्होंने इनकार कर दिया। मंत्री ज़मा ख़ान ने फिर कोशिश की, लेकिन नीतीश ने वही टोपी उन्हें पहना दी, जिससे कार्यक्रम में हंगामा हो गया।

उपस्थित लोगों ने नीतीश और बिहार सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और उन पर मुसलमानों को ठगने का आरोप लगाया। विपक्ष ने भी इस मुद्दे को भुनाते हुए नीतीश पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाया है।

हालाँकि, नीतीश ने हंगामे से पहले खुद को मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा हितैषी बताया और दावा किया कि उनकी सरकार ने मुसलमानों के लिए जितना काम किया है, उतना किसी ने नहीं किया।

यह वही नीतीश हैं जो पहले मुस्लिम समुदाय के कार्यक्रमों और इफ़्तार पार्टी में मुस्लिम टोपी पहनते थे। विधानसभा चुनाव से पहले टोपी पहनने से इनकार करने पर अटकलें लगने लगी हैं कि क्या उन्होंने कोई राजनीतिक संकेत दिया है या BJP को नाराज़ न करने के लिए ऐसा किया।

टोपी सिर्फ़ सिर ढकने के लिए नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक प्रतीक, सांस्कृतिक संकेत और वैचारिक छवि भी बन चुकी है। इसने धर्म से निकलकर विरोध, राष्ट्रवाद और राजनीति तक की यात्रा तय की है।

मुस्लिम टोपी इस्लामिक समाज में शुरू से प्रचलित है, जहाँ रेगिस्तानी मौसम में सिर ढकना एक ज़रूरत थी, जो धीरे-धीरे धार्मिक रूप लेती गई। विभिन्न इस्लामिक मुल्कों में अलग-अलग प्रकार की टोपी पहनी जाती है।

आज़ादी के आंदोलन में गांधीजी ने खादी की टोपी पहनकर इसे स्वदेशी, आत्मनिर्भरता और भारतीय संस्कृति का प्रतीक बनाया। कांग्रेस के नेता आज भी यही गांधी टोपी पहनते हैं। 2011 में अन्ना आंदोलन के दौरान भी यह टोपी छा गई। समाजवादी नेताओं की लाल टोपी जेपी आंदोलन से जुड़ी है, जबकि जनसंघ और RSS ने काली टोपी को अपनाया। BJP की टोपी भगवा है।

इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही बिहार का दौरा करेंगे और लगभग 13 हज़ार करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन करेंगे।

बिहार में एनडीए के खिलाफ राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव एक साथ मोर्चे पर होंगे। अखिलेश यादव राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा में शामिल होने के लिए बिहार जायेंगे और तेजस्वी यादव के साथ रैली करेंगे। कांग्रेस का मानना है कि इससे कथित वोट चोरी के खिलाफ उनका आंदोलन और मजबूत होगा। अखिलेश को सीतामढ़ी में बुलाने का मकसद बीजेपी की मंदिर पॉलिटिक्स का जवाब देना है।

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