दिल्ली यूनिवर्सिटी से इकबाल का पन्ना हटेगा! क्या इकबाल जिन्ना से भी ज्यादा खतरनाक थे?
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भारत विभाजन के इतिहास में जिन्ना के साथ-साथ अल्लामा इकबाल का जिक्र भी होगा. वही इकबाल, जिनके लिखे सारे जहां से अच्छा को हम आज भी गाते हैं. सच्चाई यह है कि जिस पाकिस्तान को जिन्ना ने बनवाया, उसके वैचारिक जनक अल्लामा इकबाल ही थे.

इकबाल ने ही पाकिस्तान की परिकल्पना की थी. उनके दूषित विचारों ने जिन्ना को विभाजन का रास्ता दिखाया. इकबाल की खींची लकीर को जिन्ना ने इतना गहरा कर दिया कि भारत दो हिस्सों में बंट गया.

दिल्ली यूनिवर्सिटी ने इकबाल पर एक बड़ा फैसला लिया है. अब दिल्ली यूनिवर्सिटी की किताबों में इकबाल का पन्ना नहीं रहेगा, उसे हटाया जाएगा. यानी इकबाल अब आउट ऑफ सिलेबस हो गए हैं.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने कहा कि भारत विरोधी सोच के कारण अल्लामा इकबाल के बारे में अब नहीं पढ़ाया जाएगा. उन्होंने इकबाल के तराना-ए-मिल्ली का जिक्र किया, जिसे 1910 में लिखा गया था.

इकबाल ने तराना-ए-मिल्ली में लिखा, चीन-ओ-अरब हमारा हिन्दोस्तां हमारा। मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहां हमारा . इसका मतलब है कि चीन और अरब हमारे हैं, हिंदुस्तान भी हमारा है, हम मुसलमान हैं और पूरी दुनिया हमारी मातृभूमि है.

इकबाल के इन तरानों ने टू नेशनल थ्योरी को और मजबूत किया. तराना-ए-मिल्ली लिखने से पहले 1904 में उन्होंने तराना-ए-हिंदी लिखा था, जिसे आज भी गाया जाता है.

लेकिन तराना-ए-हिंदी में भी ऐसी पंक्तियां हैं, जिन पर मजहबी सवाल उठते रहे हैं. क्योंकि इन पंक्तियों के लिखने के छह साल बाद इकबाल तराना-ए-मिल्ली लिखते हैं, जिसमें उनकी कट्टर मजहबी सोच दिखाई देती है.

अल्लामा इकबाल के दो चेहरे थे: एक क्रांतिकारी का और दूसरा मजहबी कट्टरपंथी का. 1930 में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिमी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को एक अलग स्वायत्त मुस्लिम राज्य के रूप में घोषित करने की पैरवी की.

इकबाल का यही विचार पाकिस्तानी मांग का आधार बना. मुस्लिम लीग ने 1940 में एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग की, जिसे जिन्ना ने आगे बढ़ाया.

हालांकि, दिल्ली यूनिवर्सिटी के पुस्तकों से इकबाल के विचारों की विदाई बहुत पहले ही शुरू हो चुकी थी. डीयू के राजनीतिक विज्ञान के स्नातक के सिलेबस से इकबाल से संबंधित सामग्री को 2023 में हटा दिया गया था.

इसी साल जून में दर्शनशास्त्र के सिलेबस से भी इकबाल के विचार हटा दिए गए. हालांकि, NCERT की किताबों में उनके तराने अभी भी पढ़ाए जाते हैं.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी इकबाल को लेकर विवाद हुआ था, लेकिन वहां आज भी दर्शनशास्त्र और इतिहास की किताबों में उन्हें पढ़ाया जाता है.

हाल ही में अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों पर फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाने के आरोप लगे हैं. इससे पहले भी वहां मजहबी नारे लगते रहे हैं.

बिहार के सीवान में जिन्ना जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे थे, तो यूपी के अलीगढ़ में फिलिस्तीन जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं. ऐसा ही कुछ अल्लामा इकबाल की सोच में भी था, जिसके चलते उन्हें दिल्ली यूनिवर्सिटी से बाहर कर दिया गया है.

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