बायकॉट इंडिया से वेलकम मोदी तक: मुइज्जू की वो 5 मजबूरियां जो भारत-मालदीव को फिर करीब ले आईं
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मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू, जिन्होंने कभी इंडिया आउट का नारा दिया था, अब प्रधानमंत्री मोदी का गर्मजोशी से स्वागत कर रहे हैं। दो साल से भी कम समय में मुइज्जू का यह बदलाव कई कारणों से हुआ है।

कोरोना महामारी के बाद मालदीव की अर्थव्यवस्था संकट में है। सितंबर 2024 में विदेशी मुद्रा भंडार केवल 440 मिलियन डॉलर था, जो डेढ़ महीने के आयात के लिए पर्याप्त था। इस मुश्किल समय में भारत ने 750 मिलियन डॉलर की करेंसी स्वैप सुविधा और 100 मिलियन डॉलर के ट्रेजरी बिल रोलओवर के साथ मदद की।

मालदीव में भारत अरबों रुपये की परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जो बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। हनीमाधू हवाई अड्डा परियोजना और 4,000 घरों के अगस्त 2025 से पूरी तरह से चालू होने की उम्मीद है। ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (जीएमसीपी) के तहत एक पुल बनाया जा रहा है, जो सितंबर 2026 तक पूरा हो जाएगा।

मालदीव की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान 28% है, और भारतीय पर्यटक सबसे बड़े समूह हैं। 2024 में बायकॉट मालदीव अभियान के बाद पर्यटकों की संख्या में 50,000 की कमी आई, जिससे $150 मिलियन का नुकसान हुआ। राष्ट्रपति मुइज्जू ने भारतीय पर्यटकों से मालदीव घूमने की अपील की।

मुइज्जू की चीन समर्थक नीति और भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग ने तनाव बढ़ाया, लेकिन भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति और विदेश मंत्री जयशंकर की अगस्त 2024 की यात्रा ने संबंधों को नया आयाम दिया। लगातार उच्च-स्तरीय कूटनीतिक प्रयासों से दोनों देशों की गलतफहमियां दूर हुईं।

मालदीव पर चीन का $1.37 बिलियन का कर्ज है, जो भारत की तुलना में अधिक जोखिम भरा है। राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज्जू ने महसूस किया कि भारत की आर्थिक सहायता अधिक विश्वसनीय है। चीन की उच्च ब्याज दरें और कठोर शर्तें मालदीव को जाल में फंसाती हैं, जबकि भारत की सहायता अधिक लचीली और विश्वसनीय रही।

भारत मालदीव के लिए फर्स्ट रिस्पॉन्डर रहा है, जैसे 1988 के तख्तापलट और 2004 की सुनामी में भारत ने मानवीय आधार पर मालदीव की मदद की। मालदीव की समुद्री सुरक्षा के लिए भारत की भूमिका अपरिहार्य है। यही वजह है कि मुइज्जू ने पीएम मोदी को मालदीव की 60वीं स्वतंत्रता वर्षगांठ के मौके पर बतौर गेस्ट ऑफ ऑनर आमंत्रित किया।

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