पूर्व सांसद का दावा: राहुल गांधी साबित होंगे OBC के दूसरे आंबेडकर
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कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद उदित राज ने शनिवार को एक विवादास्पद बयान में राहुल गांधी की तुलना संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर से कर दी। उन्होंने कहा कि अगर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) राहुल गांधी के भागीदारी न्याय सम्मेलन में दिए भाषण को गंभीरता से लेता है, तो राहुल गांधी स्वयं को ओबीसी समुदाय के लिए दूसरे आंबेडकर साबित कर देंगे।

उदित राज ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि तेलंगाना में हुई जाति जनगणना समाज का एक्स-रे है। राहुल गांधी का लक्ष्य इसे पूरे देश में लागू करना है। उनके विचार दूरदर्शी हैं। उन्होंने आगे कहा कि दलित और पिछड़ा वर्ग के लोग एकजुट हों तो हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और समाज में व्याप्त असमानता कम होगी।

उदित राज ने ओबीसी समुदाय से अपील करते हुए कहा कि उन्हें यह समझना होगा कि इतिहास उन्हें विकास का अवसर बार-बार नहीं देगा। उन्हें राहुल गांधी के तालकटोरा स्टेडियम में हुए सम्मेलन में दिए गए भाषण को मानना चाहिए और उसका समर्थन करना चाहिए। ऐसा करने पर राहुल गांधी उनके लिए दूसरे आंबेडकर साबित होंगे।

कांग्रेस ने हाल ही में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में ओबीसी नेतृत्व भागीदारी न्याय सम्मेलन का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में राहुल गांधी ने कहा था कि उन्हें राजनीति में 21 साल हो गए हैं और आत्मनिरीक्षण करने पर उन्हें अपनी कुछ गलतियाँ दिखाई देती हैं।

राहुल गांधी ने ओबीसी समुदाय के मुद्दे पर अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा कि उन्होंने ओबीसी वर्ग की उस तरह से रक्षा नहीं की जैसी उन्हें करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि 10-15 साल पहले दलितों की दिक्कतें उन्हें समझ आ गई थीं, आदिवासियों के मुद्दे भी आसानी से समझ आ जाते हैं, लेकिन ओबीसी के मुद्दे छिपे रहते हैं और आसानी से दिखाई नहीं देते।

उन्होंने यह भी कहा कि अगर उन्हें ओबीसी समुदाय की दिक्कतों के बारे में थोड़ा सा भी पता होता तो वे उसी समय जाति जनगणना करवा देते। इसे उन्होंने कांग्रेस की नहीं, बल्कि अपनी व्यक्तिगत गलती बताया और कहा कि अब वे इसे ठीक करने जा रहे हैं।

राहुल गांधी ने आगे कहा कि देश में दलित, पिछड़ा, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्ग की आबादी कुल मिलाकर लगभग 90 प्रतिशत है। लेकिन जब बजट बनने के बाद हलवा बांटा जा रहा था, तो वहां इस 90 प्रतिशत आबादी का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था। उन्होंने कहा कि हलवा बनाने वाले लोग यही 90 प्रतिशत आबादी है, लेकिन हलवा कोई और खा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे यह नहीं कह रहे कि वे लोग हलवा न खाएं, लेकिन कम से कम इस 90 प्रतिशत आबादी को भी तो मिलना चाहिए।

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