सावन में शिव मंदिर को लेकर दो देशों में छिड़ी जंग!
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थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा पर तनाव एक बार फिर बढ़ गया है. रॉकेट हमलों और हवाई हमलों में नागरिकों की मौत से हालात और गंभीर हो गए हैं.

थाईलैंड का आरोप है कि कंबोडिया ने जानबूझकर उसके नागरिक इलाकों को निशाना बनाया. वहीं, कंबोडिया का कहना है कि थाई सेना ने उसकी सांस्कृतिक धरोहर के पास हमला किया. थाईलैंड ने F-16 फाइटर जेट तैनात कर दिए हैं.

इस विवाद की जड़ें काफी पुरानी हैं, खासकर सीमा पर स्थित 11वीं सदी के प्राचीन मंदिरों को लेकर. फ्रांसीसी उपनिवेश काल से चले आ रहे नक्शों की व्याख्या को लेकर दोनों देशों में मतभेद हैं. अब यह संघर्ष सिर्फ झड़पें नहीं, बल्कि एक बड़े सैन्य संघर्ष का खतरा है.

यह विवाद तब सामने आया है जब भारत में सावन का महीना चल रहा है. इसी बीच, दो एशियाई देशों, थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर स्थित प्राचीन हिंदू मंदिर प्रसात ता मुएन थॉम को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है.

भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में खमेर सम्राट उदयादित्यवर्मन द्वितीय ने करवाया था. यहां शिवलिंग प्राकृतिक चट्टान से बना है और संस्कृत शिलालेख भी हैं, जो भारत की सांस्कृतिक पहुंच को दर्शाते हैं.

यह मंदिर कंबोडिया के ओडर मींचे प्रांत और थाईलैंड के सुरिन प्रांत के बीच डांगरेक पर्वत पर स्थित है. यह स्थान ऐतिहासिक खमेर राजमार्ग पर आता है, जो अंगकोर (कंबोडिया) को फिमाई (थाईलैंड) से जोड़ता था.

ता मुएन मंदिर समूह के तीन प्रमुख मंदिर हैं: प्रासात ता मुएन थॉम (मुख्य मंदिर), प्रासात ता मुएन तोच (छोटा मंदिर) और प्रासात ता मुएन (विश्रामगृह मंदिर). ये मंदिर खमेर साम्राज्य के काल में बने थे. पहले ये शिव मंदिर थे, बाद में खमेर साम्राज्य के बौद्ध बनने पर महायान बौद्ध धर्म के केंद्र बन गए.

कंबोडिया का दावा है कि यह इलाका खमेर साम्राज्य की सीमा में आता था, जबकि थाईलैंड इसे अपनी भूमि मानता है. फ्रांसीसी उपनिवेश काल के अधूरे नक्शों और अस्पष्ट सीमा रेखाओं के कारण यह विवाद बार-बार उभरता रहा है.

इन मंदिरों में पाई गई हिंदू देवी-देवताओं की नक्काशी, संस्कृत लेख और मंदिरों की वास्तुकला भारतीय गुप्तकालीन कला और दक्षिण भारत की पल्लव शैली से प्रभावित हैं. खमेर साम्राज्य ने शैव और वैष्णव परंपराओं को अपनाया था.

देवराज अवधारणा, जहां राजा को भगवान शिव या विष्णु का अवतार माना जाता था, भारतीय राजनीतिक दर्शन से मेल खाती है. वर्षों से खंडहर हो चुके ये मंदिर अब फिर से अंतरराष्ट्रीय चर्चा में हैं.

इस टकराव से सिर्फ ये दो देश ही नहीं, पूरा दक्षिण-पूर्व एशिया प्रभावित हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि जल्द बातचीत और मध्यस्थता के जरिए हालात को संभाला जाए, वरना क्षेत्रीय शांति को गहरी चोट पहुंच सकती है.

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