नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने मंगलवार को एक यादगार यात्रा की। उन्होंने श्रीनगर से कटरा तक नई शुरू हुई वंदे भारत ट्रेन में पहली बार सफर किया।
उन्होंने कहा कि कश्मीर को आखिरकार देश के रेल नेटवर्क से जुड़ते देखकर वे बहुत भावुक हो गए। जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने उम्मीद जताई कि अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री इस ट्रेन का उपयोग करेंगे।
हर साल होने वाली अमरनाथ यात्रा 3 जुलाई को कश्मीर हिमालय में शुरू होने वाली है। 6 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कटरा से श्रीनगर और श्रीनगर से कटरा के लिए दो वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई थी। इससे 272 किलोमीटर लंबी उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक परियोजना पूरी हो गई। अब कश्मीर देश के बाकी हिस्सों से रेल मार्ग से जुड़ गया है।
ऊधमपुर -श्रीनगर-बारामूला रेलवे लाइन के रणनीतिक महत्व को देखते हुए इसे 2002 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था। मोदी सरकार के कार्यकाल में 272 किलोमीटर लंबी इस परियोजना का अंतिम खंड फरवरी 2024 में पूरा हुआ। इस परियोजना में 38 सुरंगें और 927 पुल शामिल हैं।
अब्दुल्ला ने सिर पर गोल टोपी पहनी हुई थी। वे सुबह श्रीनगर के नौगाम रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में चढ़े। कटरा में उप मुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी और जम्मू NC के अध्यक्ष रतन लाल गुप्ता ने उनका स्वागत किया। कटरा, माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आने वाले तीर्थयात्रियों का बेस कैंप है।
ट्रेन से उतरने के बाद अब्दुल्ला ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा- मेरा दिल खुशियों से भर गया और कश्मीर को आखिरकार देश के रेल नेटवर्क से जुड़ते देखकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं इसे संभव बनाने के लिए इंजीनियरों और मजदूरों को बधाई देता हूं। उन्होंने इस ट्रेन को लोगों के लिए सबसे बड़ी जीत बताया। उन्होंने कहा कि इससे यात्रा आसान होगी, व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और दोनों क्षेत्रों के बीच प्यार और दोस्ती भी मजबूत होगी।
19वीं शताब्दी में डोगरा महाराजाओं की एक परिकल्पना अब साकार रूप ले रही है। महाराजा हरि सिंह के पोते और पूर्व सदर-ए-रियासत कर्ण सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि उन्हें गर्व है कि 130 साल पहले डोगरा शासक की योजना आखिरकार साकार हो गई है। यह एक परियोजना थी, जो एक सदी से भी अधिक समय तक अधूरी रही।
पूर्व एमएलसी विक्रमादित्य सिंह के अनुसार, कश्मीर घाटी तक रेलवे लाइन परियोजना की परिकल्पना और रूपरेखा महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में तैयार की गई थी। प्रताप सिंह ने ब्रिटिश इंजीनियरों को कश्मीर तक रेलवे मार्ग के लिए पर्वतीय और बीहड़ इलाकों का सर्वे का जिम्मा सौंपा था। उन्होंने रिपोर्ट तैयार करने और उसे लागू करने के लिए तीन ब्रिटिश इंजीनियरों को नियुक्त किया और 1898 से 1909 के बीच 11 वर्षों में तैयार की गई तीन में से दो रिपोर्ट रद कर दी गई थीं।
अभिलेखागार विभाग के विशेष दस्तावेजों के अनुसार, कश्मीर तक रेल संपर्क का आइडिया पहली बार मार्च, 1892 में प्रस्ताव दिया गया था। जून 1898 में ब्रिटिश इंजीनियरिंग फर्म एसआर स्काट स्ट्रैटन एंड कंपनी को सर्वे व परियोजना को कार्यान्वित करने के लिए नियुक्त किया गया। डीए एडम की ओर से पेश अपनी पहली रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर के बीच एक नैरोगेज लाइन पर भाप इंजन रेलगाड़ी की सिफारिश गई थी। रेललाइन को जिस क्षेत्र से ले जाना था, वह ऊंचाई वाला इलाका था। हालांकि, यह प्रस्ताव नामंजूर हो गया। वर्ष 1902 में डब्ल्यू जे वेटमैन की ओर से पेश एक अन्य प्रस्ताव में एबटाबाद (अब गुलाम जम्मू-कश्मीर में) से कश्मीर को जोड़ने वाली एक रेलवे लाइन का सुझाव दिया गया था।
उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक, वाइल्ड ब्लड द्वारा प्रस्तुत तीसरे प्रस्ताव में रियासी क्षेत्र से होकर चिनाब नदी के किनारे रेलवे लाइन बिछाने की सिफारिश की गई थी और इसे मंजूरी दी गई थी। बाद में ऊधमपुर, रामसू और बनिहाल के पास इलेक्ट्रिक ट्रेनों को चलाने और बिजली स्टेशन स्थापित करने की योजनाओं की भी जांच की गई, लेकिन अंततः इसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल डी ई बोरेल को स्थानीय कोयला भंडारों पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौंपा गया। लेकिन 1925 में महाराजा प्रताप सिंह की मृत्यु के कारण परियोजना को स्थगित कर दिया गया।
लगभग छह दशक बाद कश्मीर तक रेल संपर्क बहाल करने का विचार फिर आया और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1983 में जम्मू-उधमपुर-श्रीनगर रेलवे लाइन की आधारशिला रखी। उस समय इस परियोजना की अनुमानित लागत 50 करोड़ रुपये थी और इसे पांच साल में पूरा होने की उम्मीद थी, लेकिन अगले 13 वर्ष में 300 करोड़ की लागत से केवल 11 किलोमीटर लाइन का निर्माण किया जा सका, जिसमें 19 सुरंगें और 11 पुल शामिल थे।
इसके बाद 2,500 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के आधार पर उधमपुर-कटरा-बारामूला रेलवे परियोजना शुरू हुई, जिसकी आधारशिला 1996 और 1997 में क्रमश: तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और आईके गुजराल ने उधमपुर, काजीगुंड और बारामुला में रखी थी। निर्माण कार्य 1997 में शुरू हुआ, लेकिन चुनौतीपूर्ण भूगर्भीय व अन्य परिस्थितियों के कारण बार-बार देरी का सामना करना पड़ा, जिससे अब इसकी लागत 43,800 करोड़ रुपये से अधिक हो गई।
*National Conference chief and former Minister of Jammu and Kashmir, Shri Farooq Abdullah, travelled on the recently inaugurated Srinagar-Shri Mata Vaishno Devi Katra Vande Bharat Express, along with other leaders and MLAs.
— Northern Railway (@RailwayNorthern) June 10, 2025
He expressed his admiration for the train and also… pic.twitter.com/p8NmDJhQde
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