अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के विदेशी छात्रों के दाखिले पर रोक के बाद अन्य विश्वविद्यालयों पर भी ऐसी ही कार्रवाई की संभावना जताई है।
व्हाइट हाउस में पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए ट्रंप ने कहा, हम इस पर गौर करेंगे। हार्वर्ड को अरबों डॉलर दिए गए हैं, उनके पास 52 अरब डॉलर का संपत्ति कोष है। हमारा देश अरबों डॉलर खर्च करता है, स्टूडेंट लोन देता है। हार्वर्ड को अपने तौर-तरीके बदलने होंगे।
गुरुवार को ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम (SEVP) की मान्यता रद्द कर दी थी।
हार्वर्ड पर रोक की वजह SEVP की मान्यता रद्द करने का फैसला हार्वर्ड और ट्रंप प्रशासन के बीच लंबे समय से चल रहे टकराव का नतीजा है।
होमलैंड सिक्योरिटी सेक्रेटरी क्रिस्टी नोएम ने हार्वर्ड पर यहूदी-विरोधी माहौल, हिंसा को बढ़ावा देने और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर काम करने की इजाजत देने का आरोप लगाया था।
नोएम ने यह भी कहा कि हार्वर्ड, सरकार की मांगों, जैसे विदेशी छात्रों के अनुशासन और विरोध प्रदर्शनों से जुड़े रिकॉर्ड जमा करने में नाकाम रहा। ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड के डाइवर्सिटी, इक्विटी और इंक्लूजन (DEI) प्रोग्राम्स को भी भेदभावपूर्ण बताया है।
पिछले महीने, ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड की 2.3 अरब डॉलर की फेडरल फंडिंग रोक दी थी, यूनिवर्सिटी के सरकार की शर्तों, जैसे पाठ्यक्रम, दाखिला नीतियों और भर्ती प्रक्रियाओं में बदलाव करने से इनकार करने पर। हार्वर्ड ने इन मांगों को असंवैधानिक और अपनी आजादी पर हमला बताया था।
इस फैसले का सबसे बड़ा असर हार्वर्ड के लगभग 6,800 विदेशी छात्रों पर पड़ेगा, जो यूनिवर्सिटी के कुल छात्रों का 27% हैं। ये छात्र 140 से ज्यादा देशों, खासकर चीन, कनाडा, भारत, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन से आते हैं।
SEVP मान्यता रद्द होने के कारण हार्वर्ड अब 2025-26 सत्र के लिए नए विदेशी छात्रों को दाखिला नहीं दे सकेगा। जो छात्र पहले से F-1 या J-1 वीजा पर पढ़ रहे हैं, उन्हें दूसरी यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर करना होगा, वरना उनका वीजा रद्द हो सकता है और उन्हें अमेरिका छोड़ना पड़ सकता है।
अगले हफ्ते हार्वर्ड से ग्रेजुएट होने वाले हजारों विदेशी छात्रों के लिए यह खबर परेशानी का सबब बन गई है। उन्हें डिग्री पूरी करने के बाद अमेरिका में रहने या नौकरी करने में मुश्किल हो सकती है।
हार्वर्ड ने इस कार्रवाई को गैरकानूनी और बदले की भावना से की गई कार्रवाई बताया है।
यूनिवर्सिटी ने बोस्टन की फेडरल कोर्ट में मुकदमा दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि यह फैसला अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन और ड्यू प्रोसेस क्लॉज का उल्लंघन है।
जज एलिसन बरोज ने ट्रंप प्रशासन के आदेश पर तुरंत एक अस्थायी रोक (टेम्परेरी रेस्ट्रेनिंग ऑर्डर) जारी कर दिया, जिसके तहत हार्वर्ड के विदेशी छात्र फिलहाल अपनी पढ़ाई जारी रख सकते हैं। इस मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को होगी।
हार्वर्ड के प्रेसिडेंट एलन गार्बर ने कहा, हम अपने विदेशी छात्रों और स्कॉलर्स को सपोर्ट करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ये छात्र 140 से ज्यादा देशों से आते हैं और हमारे यूनिवर्सिटी व देश को समृद्ध करते हैं।’
ट्रंप के बयान से साफ है कि उनकी सरकार अन्य विश्वविद्यालयों पर भी ऐसी कार्रवाई पर विचार कर रही है, खासकर उन विश्वविद्यालयों को निशाना बनाया जा सकता है, जो ट्रंप प्रशासन की नीतियों, जैसे प्रो-पैलेस्टाइन प्रदर्शनों पर रोक या DEI प्रोग्राम्स खत्म करने की मांगों का पालन नहीं करेंगी।
आर्थिक नुकसान: विदेशी छात्र हार्वर्ड को अच्छी-खासी ट्यूशन फीस देते हैं, जो यूनिवर्सिटी की आय का बड़ा हिस्सा है। इस रोक से हार्वर्ड को आर्थिक नुकसान हो सकता है।
शैक्षणिक प्रभाव: विदेशी छात्र हार्वर्ड की रिसर्च और अकादमिक मिशन का अहम हिस्सा हैं। इनके बिना यूनिवर्सिटी की वैश्विक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंच सकती है।
छात्रों का भविष्य: विदेशी छात्रों को दूसरी यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर करना मुश्किल होगा, खासकर सत्र शुरू होने से पहले। कई छात्रों को अमेरिका छोड़ना पड़ सकता है, जिससे उनकी पढ़ाई और करियर पर असर पड़ेगा।
हार्वर्ड ने साफ कर दिया है कि वह कानूनी लड़ाई लड़ेगा और अपने विदेशी छात्रों के हक की रक्षा करेगा। दूसरी तरफ, ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि वह कानून और सामान्य समझ के साथ अपनी नीतियों को लागू करेगा। यह मामला न सिर्फ हार्वर्ड, बल्कि अमेरिका की पूरी हायर एजुकेशन सिस्टम के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।
#WATCH | Washington, DC: When asked if US govt will stop other universities also from enrolling international students, like Harvard University, US President Donald Trump says, We will take a look at it. Billions of dollars have been paid to Harvard...they have $52 billion as… pic.twitter.com/R6awxAieRc
— ANI (@ANI) May 24, 2025
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