क्या चीन, पाकिस्तान और तालिबान की दोस्ती बढ़ाएगी भारत की चिंता?
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चीन, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रियों ने बीजिंग में एक महत्वपूर्ण बैठक की है. इस दौरान चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को अफ़ग़ानिस्तान तक विस्तारित करने पर सहमति बनी है.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने चीन यात्रा के दौरान अफ़ग़ानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी और चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि चीन और पाकिस्तान ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत सीपीईसी को अफ़ग़ानिस्तान तक बढ़ाने का समर्थन किया है. चीन ने पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने का भी आश्वासन दिया.

भारत सीपीईसी का विरोध करता रहा है क्योंकि यह पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से होकर गुजरता है. यह चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना का भी हिस्सा है, जिसका भारत विरोध करता है.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में अमीर ख़ान मुत्तक़ी से बातचीत की थी, लेकिन भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्होंने कुछ रिपोर्ट्स देखी हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना है.

विशेषज्ञों का मानना है कि चीन, पाकिस्तान और तालिबान के बीच बेहतर संबंध भारत के लिए चिंता का विषय हो सकते हैं. नई दिल्ली स्थित शोधकर्ता रुशाली साहा ने कहा कि यह बीजिंग-इस्लामाबाद-तालिबान के बढ़ते गठजोड़ का संकेत है.

प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत और शिवम शेखावत ने लिखा है कि भारत को अब सावधान रहने की ज़रूरत है क्योंकि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को अपने क्षेत्र में फिर से शामिल करने की चीन की कोशिश नई दिल्ली के लिए परेशानी खड़ी कर सकती है.

अफ़ग़ानिस्तान ने जो बयान जारी किया है उसमें आतंकवाद जैसे शब्द का उल्लेख नहीं है, बल्कि राजनीतिक और आर्थिक संबंध बढ़ाने पर जोर दिया गया है.

तालिबान के 2021 में सत्ता में लौटने के बाद से पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्ते और तनावपूर्ण हुए हैं. पाकिस्तान का कहना है कि चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करता है, जिसे रोकने में तालिबान सरकार नाकाम रही है.

पिछले कुछ समय से पाकिस्तान ने अफ़ग़ान शरणार्थियों को वापस भेजने की कोशिश की है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में शरणार्थियों को वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से 9 लाख से अधिक अफ़ग़ान नागरिक पाकिस्तान छोड़कर स्वदेश लौट चुके हैं.

अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ स्वस्ति राव कहती हैं कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच का यह गठजोड़ चीन के नेतृत्व में हो रहा है. चीन अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित रखना चाहता है.

भारत ने तालिबान से बातचीत जारी रखी है और उसे मानवीय सहायता भी उपलब्ध कराई है. लेकिन चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का अफ़ग़ानिस्तान तक विस्तार भारत के लिए एक जटिल चुनौती पेश कर सकता है.

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