अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों का बड़ा प्रहार: 27 नक्सलियों के शव एयरलिफ्ट कर जिला मुख्यालय लाए गए, जवान मना रहे जश्न
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नारायणपुर। अबूझमाड़ के जंगल में हुई मुठभेड़ में मारे गए बसव राजू समेत 27 नक्सलियों के शवों को हेलीकॉप्टर से नारायणपुर जिला मुख्यालय लाया गया है। इस समय नक्सल ऑपरेशन से जुड़े सभी बड़े अधिकारी जिला मुख्यालय में मौजूद हैं। अधिकारियों द्वारा मीडिया को ऑपरेशन से संबंधित जानकारी दी जाएगी।

ग्राउंड जीरो से एक और वीडियो सामने आया है, जिसमें जवान नक्सलियों के शव बरामद करने के बाद जीत का जश्न मना रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा के सीमावर्ती क्षेत्र अबूझमाड़ में नक्सलियों के खिलाफ एक बड़ा अभियान चल रहा था। 19 मई, 2025 को अबूझमाड़ क्षेत्र में माओवादी नेताओं की मौजूदगी की पुख्ता जानकारी के आधार पर अलग-अलग जिलों की डीआरजी (District Reserve Guard) टीमें तलाशी अभियान में निकली थीं।

21 मई की सुबह, माओवादी दस्ते ने सुरक्षा बलों पर अचानक फायरिंग शुरू कर दी, जिसके जवाब में सुरक्षाबलों ने बहादुरी और रणनीतिक तरीके से कार्रवाई करते हुए माओवादी महासचिव और शीर्ष नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजु, बीआर दादा, गगन्ना सहित 27 नक्सलियों को मार गिराया।

बसवराजु पिछले दो दशकों से माओवादी संगठन का सैन्य और वैचारिक नेतृत्व कर रहा था। उसे पूरे देश में नक्सली नेटवर्क चलाने वाला मास्टरमाइंड माना जाता था।

मुठभेड़ के दूसरे दिन भी सुरक्षाबलों का अभियान जारी है। गंगालूर थाना क्षेत्र के अंतर्गत पीडिया के जंगलों में चल रही मुठभेड़ में डीआरजी ने पांच और नक्सलियों को मार गिराया है। इस दौरान दो जवानों के घायल होने की खबर है।

अबूझमाड़ ऑपरेशन के दौरान कल 21 मई को शाम लगभग 7 बजे आईईडी (Improvised Explosive Device) की चपेट में आने से डीआरजी बीजापुर के जवान रमेश हेमला शहीद हो गए। इससे पहले, 21 मई को सुबह नक्सली हमले का बहादुरी से सामना करते हुए नारायणपुर जिले के ओरछा थाना क्षेत्र के ग्राम भटबेडा के निवासी डीआरजी टीम के सदस्य खोटलूराम कोर्राम शहीद हो गए थे।

दोनों शहीद जवानों के पार्थिव शरीर को नारायणपुर जिला मुख्यालय लाया जा रहा है, जहां उन्हें सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी। कुछ अन्य जवान घायल हुए हैं, जिनका तत्काल इलाज किया जा रहा है और सभी खतरे से बाहर हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण और स्थायी समाधान के लिए जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) का गठन किया है। यह एक विशेष बल है, जिसमें स्थानीय युवाओं को शामिल कर उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि वे अपने क्षेत्र की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए माओवादियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई कर सकें।

डीआरजी में छत्तीसगढ़ के स्थानीय लोगों को भर्ती किया जाता है। प्रदेश के नक्सल इलाके ज्यादातर आदिवासी क्षेत्र में ही आते हैं। ऐसे में सुरक्षाबलों के जवानों को उनकी बोली और भाषा समझने में दिक्कत होती है। स्थानीय लोगों को यहां की भाषा, बोली और जंगल के बारे में जानकारी होती है। डीआरजी के जवान तीन से चार दिन तक जंगलों में नक्सलियों की तलाशी कर सकते हैं। डीआरजी में उन नक्सलियों को भी शामिल किया जाता है जो आत्मसमर्पण करने के बाद मुख्यधारा में आते हैं। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली जब जवान बनते हैं तो वे नक्सलियों की रणनीति को जानते हैं, जिससे जवानों को फायदा मिलता है। यही कारण है कि ये जवान नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं।

डीआरजी के जवान नक्सलियों के खिलाफ कई अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुके हैं। डीआरजी के जवान नक्सलियों की गुरिल्ला लड़ाई का जवाब उन्हीं की भाषा में देते हैं। उन्हें जंगल के रास्तों का पता होता है। उन्हें नक्सलियों की आवाजाही, आदतें और काम करने के तरीकों की भी जानकारी होती है। इलाके में नक्सलियों की मदद करने वालों के बारे में भी उन्हें पता होता है। इसकी मदद से वे नक्सलियों के खिलाफ अभियान की योजना बनाते हैं जो अक्सर सफल होते हैं।

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