पहलगाम हमले के बाद राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के हर फैसले में साथ खड़े रहने का वादा किया था. ऑपरेशन सिंदूर पर भी कांग्रेस सरकार के साथ खड़ी रही, लेकिन सीजफायर होते ही राजनीति शुरू हो गई.
राहुल गांधी ने अब ऐसे सवाल खड़े किए हैं, जिस पर उन्हें अपनी पार्टी से भी पूरा समर्थन नहीं मिल रहा है. कांग्रेस और भाजपा के बीच जंग अब तू-तू मैं-मैं तक पहुंच गई है, और पोस्टर वार भी चल रहा है.
आईटी सेल के मैदान में उतरने से मामला पॉलिटिकल हो गया है, जिसका इस्तेमाल चुनाव में भी हो सकता है. सीजफायर को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार बुरी तरह घिर गई थी.
देश भर में लोग नाराज थे, लेकिन धीरे-धीरे स्थिति संभल गई - और इसके संभलने में बीजेपी के प्रयासों से ज़्यादा कांग्रेस की कमजोरी लगती है. 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी ऐसा ही हुआ था.
शुरू में सब ठीक रहा, लेकिन धीरे-धीरे राजनीति हावी हो गई और बीजेपी नेता राहुल गांधी सहित विपक्ष के नेताओं को कठघरे में खड़ा करने लगे - बिल्कुल वैसे ही जैसे पहलगाम अटैक और सीजफायर के बाद हो रहा है.
बीजेपी नेता तब भी विपक्षी नेताओं के बयान पर पाकिस्तान में हेडलाइन चलने की बात करते हुए धावा बोल देते थे, अब भी वही सब देखने को मिल रहा है.
पहलगाम हमले के बाद लोगों में गुस्सा था, और पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई में हो रही देर से ये गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था. कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल सरकार को घेरने लगे थे.
लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के बाद तो सेना और सरकार की वाहवाही होने लगी. हर तरफ जोश हाई दिखाई दे रहा था. तभी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर हो गया है.
कांग्रेस ने इसका जमकर फायदा उठाया. इंदिरा गांधी का हवाला देकर प्रधानमंत्री मोदी पर खूब तंज कसे.
बीजेपी सरकार के समर्थकों को भी सीजफायर के लिए सरकार का तैयार हो जाना ठीक नहीं लगा. कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए सरकार को घेरने का अच्छा मौका था.
राहुल गांधी केंद्र की बीजेपी सरकार पर अमेरिकी दबाव में फैसले लेने का आरोप लगाने लगे - और चर्चा के लिए संसद का स्पेशल सेशन बुलाये जाने की मांग करने लगे.
लेकिन राहुल गांधी की राजनीति ने ऐसी राह पकड़ी की बीजेपी के लिए सब कुछ आसान हो गया. कहां बीजेपी खुद घिरी हुई थी, और कहां कुछ ही दिन में बीजेपी नेता फिर से राहुल गांधी को घेरने लगे.
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पहलगाम हमले से लेकर सीजफायर तक पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने की मांग की.
इस मामले में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और सीपीआई तो साथ नजर आये, लेकिन बाकी विपक्षी दलों ने हाथ पीछे खींच लिये. शरद पवार ने तो राष्ट्रहित से जुड़े ऐसे मामलों पर संसद में चर्चा की मांग को ही गलत बताया.
शरद पवार की ही तरह अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने भी खुद को इस डिमांड से अलग कर लिया.
केंद्र सरकार पर दबाव बनाने में कांग्रेस को कमजोर पड़ते राहुल गांधी नये मुद्दे उठाने लगे, और फिर स्वाभाविक रूप से बीजेपी की तरफ से भी जवाबी हमले किये जाने लगे.
सोशल मीडिया पर बीजेपी ने एक और पोस्टर जारी किया है, जिसमें राहुल गांधी को हरे रंग की टाई पहले एक शख्स के ऊपर खड़े दिखाया गया है. पोस्टर में राहुल गांधी का सवाल है, भारत ने कितने विमान खोये हैं?
ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि, ऑपरेशन की शुरुआत में, हमने पाकिस्तान को संदेश भेजा था कि हम आतंकवादियों के बुनियादी ढांचे पर हमला कर रहे हैं... हम सेना पर हमला नहीं कर रहे हैं...
राहुल गांधी ने जयशंकर के बयान का वीडियो शेयर करते हुए आरोप लगाया कि, हमारे ऑपरेशन के बारे में पाकिस्तान को पहले से जानकारी दिया जाना अपराध था. विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि भारत सरकार ने ऐसा किया.
और विदेश मंत्री के खिलाफ कांग्रेस के अभियान में जयशंकर को मुखबिर तक करार दिया गया - और फिर राहुल गांधी सवाल पूछने लगे, ऐसा करने के लिए किसने कहा? और इसकी वजह से हमारी वायुसेना ने कितने एयरक्राफ्ट खो दिये?
राहुल के सवालों पर विदेश मंत्रालय ने बताया कि विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि हमने पाकिस्तान को शुरुआत में ही चेतावनी दे दी थी, जिसका मतलब है कि ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के बाद का शुरुआती फेज.
केंद्र सरकार ने प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले नेताओं में कांग्रेस सांसद शशि थरूर को शामिल कर लिया. कांग्रेस ने कहा कि जिन नामों की पार्टी की तरफ से सिफारिश की गई थी, सरकार ने उनको नजरअंदाज किया.
शशि थरूर ने प्रतिनिधिमंडल में शामिल किये जाने अपने लिए गर्व की बात बता डाली. कांग्रेस के पास कहने के लिए कुछ था ही नहीं.
जयशंकर के बयान पर भी शशि थरूर सेै लेकर सलमान खुर्शीद और पी. चिदंबरम जैसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जगह सरकार के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं.
राष्ट्रवाद बीजेपी का राजनीतिक एजेंडा है, और बीजेपी चुनावों में राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाने की कोशिश करती है. 2019 के आम चुनाव में तो इस बात का फायदा भी समझा जा चुका है.
बिहार चुनाव से पहले ये मुद्दा हावी होने लगा है, लेकिन ऐसा माहौल बनने में बीजेपी की कोशिशों से कहीं ज्यादा राहुल गांधी और कांग्रेस का योगदान लगता है.
अरे नरेंदर, झुकना नहीं था! pic.twitter.com/nIpFGIl3sb
— Congress (@INCIndia) May 20, 2025
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