ऑपरेशन सिंदूर भारत की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का प्रतीक है, जिसकी सैन्य और कूटनीतिक सफलता की चौतरफा प्रशंसा हो रही है. लेकिन देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी इस ऑपरेशन की सफलता को लेकर परेशान दिख रही है.
लोकतंत्र में लड़ाई सत्ता हासिल करने पर केंद्रित रहती है. सैनिक शासन वाले देशों में भी सैन्य शासक को जनता के बीच अपनी जीत साबित करनी पड़ती है. पाकिस्तान में सेना प्रमुख आसिम मुनीर अपने पोस्टर लगवाकर बता रहे हैं कि पाकिस्तान ने भारत को धूल चटा दी.
लोकतांत्रिक देशों में विपक्ष के कॉन्फिडेंस पर निर्भर करता है कि वो युद्ध के समय सरकार को कितना समर्थन दे पाती है. भारत में विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस ने भाजपा को सिंदूर का सौदागर बताया है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारतीय सेना द्वारा मारे गए पाकिस्तानी फाइटर प्लेन के बजाय भारत के कितने फाइटर प्लेन गिरे, इसका हिसाब मांग रहे हैं. यहां तक कि विदेश मंत्री जयशंकर को मुखबिर बताया जा रहा है.
सवाल उठता है कि कांग्रेस का युद्ध के मौके पर सरकार को समर्थन देने का ऐलान कहां गया? ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच जबर्दस्त जुबानी जंग शुरू हो गई है.
कांग्रेस ने शुरू में युद्ध को पूर्ण समर्थन दिया था, लेकिन बाद में सरकार की कथित खामियों और राजनीतिकरण पर सवाल उठाए, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर बहस छिड़ गई. यह विवाद भारत की राजनीति में राष्ट्रवाद और विपक्ष की भूमिका पर गहरे सवाल उठाता है.
क्या विपक्ष को युद्ध काल में हर मुद्दे पर सरकार का समर्थन करना चाहिए, या आलोचना उनकी जिम्मेदारी है? ऑपरेशन सिंदूर बिहार और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनने वाला है.
युद्ध या सुरक्षा संकट में विपक्ष की भूमिका लोकतंत्र में महत्वपूर्ण होती है. विपक्ष को सरकार को जवाबदेह बनाना, गलतियों की ओर ध्यान दिलाना और जनता को पारदर्शी जानकारी देना जरूरी है.
लेकिन जब देश युद्ध की कगार पर हो या राष्ट्रीय सुरक्षा संकट में हो, तो राष्ट्रीय एकता की भावना अपेक्षित होती है. ऐसे में आमतौर पर विपक्ष से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वो लड़ाई में खर्च, हताहतों और विमानों के नुकसान जैसे सवाल उठाए.
2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक के समय, कांग्रेस समेत अधिकांश विपक्षी दलों ने आरंभिक रूप से सरकार का समर्थन किया था. लेकिन बाद में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो गई थी.
भारत में शांति काल में भी फाइटर प्लेन गिरते रहते हैं, जिसके पीछे तकनीकी खराबी, मेंटेनेंस की कमी, पायलट की त्रुटि या अन्य कारण हो सकते हैं.
लेकिन जब कोई वरिष्ठ विपक्षी नेता युद्ध काल में सरकार से विमान गिरने का हिसाब मांगते हैं, तो प्रश्न उठता है कि क्या यह जायज़ आलोचना है या राजनीतिक लाभ के लिए सेना से जुड़ी संवेदनशील घटनाओं का उपयोग?
राहुल गांधी की यह मांग कि सरकार जवाब दे कि प्लेन क्यों गिर रहे हैं, तकनीकी दृष्टिकोण से उचित हो सकती है, लेकिन इसे जिस तरीके से सार्वजनिक मंचों पर उठाया जा रहा है, उसमें राजनीतिक रंग स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.
एयर मार्शल एके भारती ने कहा था कि युद्ध में नुकसान इसका हिस्सा है और सवाल यह है कि क्या हमने अपने लक्ष्य हासिल किए. उन्होंने विमान खोने की खबरों पर टिप्पणी करने से इनकार किया, यह कहते हुए कि इससे दुश्मन को फायदा होगा.
कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और पवन खेड़ा ने दावा किया कि विदेश मंत्री जयशंकर ने ऑपरेशन से पहले पाकिस्तान को सूचना दी, जिससे मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे आतंकी भाग गए.
यह आरोप जयशंकर के उस बयान से उपजा जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत ने पाकिस्तान को आतंकी ठिकानों पर हमले की जानकारी दी ताकि यह स्पष्ट हो कि हमला पाकिस्तानी सेना पर नहीं, बल्कि आतंकियों पर है.
भाजपा ने इसे जिम्मेदार कूटनीति बताया, जबकि कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करार दिया. पाकिस्तानी संसद में बिलावल भुट्टो ने भारत पर छुपकर वार करने का आरोप लगाया था.
कांग्रेस द्वारा भाजपा को सिंदूर का सौदागर कहना राजनीतिक भाषा की गिरावट को दर्शाता है. इसका आशय यह है कि भाजपा देशभक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर भावनात्मक शोषण कर रही है.
कांग्रेस पार्टी ने कुछ समय पहले ही सर्वदलीय बैठक में युद्ध या संघर्ष की स्थिति में सरकार का पूरा समर्थन देने का वादा किया था. लेकिन अब कांग्रेसी नेताओं के बयानों से यह संदेश जाता है कि विपक्ष की समर्थन की बात केवल एक राजनीतिक औपचारिकता थी.
It is not surprising that Rahul Gandhi is speaking the language of Pakistan and its benefactors. He hasn’t congratulated the Prime Minister on the flawless #OperationSindoor, which unmistakably showcases India’s dominance. Instead, he repeatedly asks how many jets we lost—a… pic.twitter.com/BT47CNpddj
— Amit Malviya (@amitmalviya) May 20, 2025
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