अब होश ठिकाने: सीजफायर के बाद दुनिया के चौधरियों को पाकिस्तान बुला रहे शहबाज!
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भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और सीमावर्ती इलाकों में जारी झड़पों के बीच, जब हालात नियंत्रण से बाहर होने लगे, तब पाकिस्तान को अचानक शांति की अहमियत समझ आई.

जिस पाकिस्तान ने अब तक भारत विरोध को अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना रखा था, वह अब कूटनीति की राह पर लौटता दिख रहा है. पाकिस्तान के डिप्टी प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार की ब्रिटेन के विदेश सचिव डेविड लैमी से मुलाकात इसका ताजा उदाहरण है.

इस मुलाकात में भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर को लेकर बातचीत हुई. इस मुलाकात के जरिए पाकिस्तान ने न सिर्फ ब्रिटेन को अपने पक्ष में करने की कोशिश की, बल्कि वैश्विक मंच पर यह संदेश देने की भी कोशिश की कि वह अब गंभीरता से क्षेत्रीय शांति चाहता है.

लेकिन सवाल ये उठता है कि अचानक पाकिस्तान को यह बदलाव क्यों सूझा? क्या यह भारत की सख्त सैन्य कार्रवाई का असर है या अंतरराष्ट्रीय दबाव का परिणाम? दरअसल, भारत द्वारा की गई जवाबी कार्रवाइयों और सीमाओं पर तैनात उन्नत हथियारों के कारण पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति कमजोर होती जा रही है. ऐसे में पाकिस्तान को अब दुनिया के चौधरियों की याद आने लगी है.

18 मई तक सीजफायर का ऐलान गुरुवार को एएफपी न्यूज़ एजेंसी ने बताया कि पाकिस्तान ने 18 मई तक के सीजफायर का ऐलान किया है. ऐसे में इतनी जल्द शहबाज का दुनिया के चौधरियों के सामने गिड़गिड़ाना बताता है कि वो भारत से कितना कांप रहा है.

ट्रंप के सीजफायर पर मध्यस्थता की बात मना करने के बाद कहीं न कहीं पाक के मन में ये डर बना था कि कहीं भारत कोई जवाबी कार्रवाई करके उसकी धज्जियां न उड़ा दे. इसीलिए अब वो दुनिया के कई देशों के नेताओं के आगे नतमस्तक हो रहा है. पाक जानता है कि वो अंदर से खोखला है.

यह वही पाकिस्तान है, जो कुछ हफ्तों पहले तक कश्मीर मुद्दे पर भड़काऊ बयान दे रहा था और अपने आतंकी नेटवर्क के जरिए एलओसी पर माहौल बिगाड़ने में लगा था. अब जब भारत ने उसकी पोल खोलनी शुरू कर दी तो पाक दुबक कर सीजफायर की आंड़ में बैठ गया.

पाकिस्तान समझ चुका है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसकी छवि और आर्थिक हालत दोनों बिगड़ चुकी हैं, तो ऐसे में उसे शांति के रास्ते के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं दिख रहा है.

इस बैठक में भारत-पाकिस्तान सीजफायर के अलावा द्विपक्षीय व्यापार, निवेश और आपसी सहयोग पर भी चर्चा हुई. पाकिस्तान को इस समय जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है, वह है अंतरराष्ट्रीय निवेश और आर्थिक मदद. ऐसे में ब्रिटेन जैसे देशों को खुश करना उसकी कूटनीतिक प्राथमिकता बन गया है.

लेकिन सवाल ये भी है कि क्या दुनिया पाकिस्तान की इस अचानक बदली हुई शांति नीति पर भरोसा करेगी? क्या ब्रिटेन जैसे देश इस बार पाकिस्तान की नीयत को संदेह से नहीं देखेंगे?

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