क्या काली और लाल फाइलों में लिखा है पाकिस्तान का भविष्य? इस मीटिंग के गहरे मायने
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत की रणनीति को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह बैठक परशुराम नीति का संकेत है, जिसका अर्थ है दुश्मन को उसके घर में घुसकर मारना?

प्रधानमंत्री आवास पर हुई इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) अनिल चौहान और तीनों सेनाओं के प्रमुख शामिल हुए। बैठक में चार महत्वपूर्ण बातें सामने आईं:

सेना को खुली छूट देने का मतलब है कि पाकिस्तान पर हमले का तरीका, टारगेट और टाइम अब सेना ही तय करेगी। राजनीतिक नेतृत्व ने सेना को पूरी स्वतंत्रता दे दी है। अब सेना को सरकार से किसी भी प्रकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। सेना अपनी मर्जी के मुताबिक कहीं भी सैन्य ऑपरेशन करने के लिए स्वतंत्र है, चाहे वह देश के अंदर हो या सीमा के बाहर।

सेना को सैनिकों को तैयार करके तैनात करने की भी छूट मिल गई है। वे अपनी ऑपरेशन की जरूरतों के हिसाब से किसी भी हथियार का इस्तेमाल कर सकते हैं, चाहे वो फाइटर जेट हो, मिसाइलें हों या बम से हमला करने का फैसला हो। पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन कब और कहां लॉन्च होगा, इसका फैसला तीनों सेनाओं के चीफ करेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में जब भी सेना को खुली छूट दी गई है, सेना ने बदला जरूर लिया है। उदाहरण के तौर पर, 2016 में उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक इसके प्रमाण हैं।

इस बैठक के दौरान लिए गए निर्णयों से संबंधित एक वीडियो में सीडीएस अनिल चौहान के बगल में दो लाल रंग की फाइलें और आर्मी चीफ अनिल द्विवेदी के बगल में एक काले रंग की फाइल दिखाई दे रही हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को छोड़कर सबके सामने टेबल पर काफी कागज हैं। एनएसए अजीत डोभाल लगातार प्रधानमंत्री को जानकारी दे रहे हैं, और प्रधानमंत्री जरूरी जानकारी लिख रहे हैं।

बुधवार को इस सिलसिले में और भी महत्वपूर्ण बैठकें होने वाली हैं। सबसे पहले सुबह 11 बजे कैबिनेट सुरक्षा कमेटी (सीसीएस) की बैठक होगी, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री मोदी करेंगे। इसके बाद कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (सीसीपीए) और कैबिनेट की बैठकें भी होंगी।

इन बैठकों की अहमियत को 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान हुई बैठकों से समझा जा सकता है, जिनमें बॉर्डर पर सेना भेजने और हवाई शक्ति का इस्तेमाल करने जैसे महत्वपूर्ण फैसले लिए गए थे। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भी साउथ ब्लॉक में सीसीएस की बैठक बुलाई गई थी, जिसके बाद युद्ध विराम का ऐलान किया गया था।

इन घटनाक्रमों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक कार्रवाई करने के लिए तैयार है, और सेना को पूरी छूट देकर सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है।

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