पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकी हमले के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सऊदी अरब का दौरा बीच में ही छोड़कर लौटना पड़ा. लेकिन इस संक्षिप्त यात्रा के दौरान भी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ उनकी मुलाकातों में भारत-सऊदी अरब रणनीतिक सहयोग को मजबूती मिली और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की कड़े शब्दों में निंदा की गई.
सऊदी अरब का समर्थन केवल प्रतीकात्मक नहीं था. मुस्लिम जगत का एक प्रमुख मुल्क आतंकवाद से लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के साथ मजबूती से जुड़ रहा है. सऊदी-अरब-भारत के संयुक्त बयान में आतंकवाद को मानवता के लिए सबसे गंभीर खतरा बताया गया और कहा गया कि किसी भी कारण से किसी आतंकवादी गतिविधि को उचित नहीं ठहराया जा सकता. किसी बड़े मुस्लिम मुल्क द्वारा आतंकवाद की यह सबसे कड़ी निंदा है.
पाकिस्तान के मामले में मुस्लिम जगत की कसौटी बदल रही है. खाड़ी के कुछ देशों की विदेश नीति अब रणनीति, सुरक्षा और वैश्विक प्राथमिकताओं के आधार पर तय हो रही है, न कि मजहबी और सैद्धांतिक रुझानों के आधार पर. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस नयी पीढ़ी के सुधारवादी हैं, जो कट्टरपंथी विचारधारा के सख्त खिलाफ हैं. यह पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी है, जो कश्मीर जैसे मसले पर अपने तर्कों की गूंज मजहबी नारों में सुनता रहा है.
1990 और 2000 के दशकों में पाकिस्तान कश्मीर को एक ऐसे मसले के रूप में पेश करता था जिस पर उसे मुस्लिम जगत का व्यापक समर्थन हासिल था. लेकिन अब अधिकांश मुस्लिम मुल्कों का रुख बदल गया है और वे खुद को उग्रवादी तर्कों से अलग कर रहे हैं, जबकि पाकिस्तान इन बदलावों को कबूल करने से पिछड़ रहा है.
हाल ही में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने कश्मीर को पाकिस्तान के गले की नस बताया और भारत से बदला लेने की बात दोहराई. जनरल मुनीर ने यह भी दावा किया कि पाकिस्तान कलमा के आधार पर बना दूसरा मुल्क है. यह मुश्किल है कि मुस्लिम जगत के कितने देश पाकिस्तान की स्थापना के इस बयान से राब्ता रखते हैं.
मलेशिया, तुर्किए और अजरबैजान जैसे कुछ मुट्ठी भर देश ही कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का समर्थन कर रहे हैं. भारत और मुस्लिम बहुल देशों के बीच बढ़ते संपर्क, व्यापार, सुरक्षा, विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में सहयोग ने पाकिस्तान के प्रति उनके समर्थन को कमजोर किया है.
2020 में पाकिस्तान सऊदी अरब के नेतृत्व वाले इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) से इसलिए नाराज हो गया था क्योंकि उसने कश्मीर मसले पर बैठक बुलाने के प्रति अनिच्छा दिखाई थी.
पाकिस्तान इस मुगालते में रह सकता है कि कश्मीर मसला पूरे मुस्लिम जगत को भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है, लेकिन भू-राजनीतिक समीकरणों में जो बदलाव आया है उसे पाकिस्तान समझना नहीं चाहता. आज खाड़ी क्षेत्र आर्थिक और कूटनीतिक मामलों में न केवल अमेरिका और पश्चिमी देशों के, बल्कि भारत के भी करीब आ रहा है. भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरीडोर (आइएमईसी) में खाड़ी देश प्रमुख हिस्सेदार हैं.
खाड़ी देशों से पाकिस्तान में निवेश आये भी तो वहां राजनीतिक अस्थिरता और बलूचिस्तान में बगावत निवेशकों में लाभ को लेकर संदेह पैदा करती है. पाकिस्तान ने चीन के साथ अपनी नज़दीकियां बढ़ाकर और इस क्षेत्र में चीन-रूस गठजोड़ के साथ जुड़कर अपनी स्थिति और जटिल बना ली है. चीन पर बढ़ती निर्भरता के साथ यह शर्त जुड़ी है कि पाकिस्तान अपने यहां, खासकर बलूचिस्तान में चीनी हितों को सुरक्षा प्रदान करे.
मुस्लिम जगत में पाकिस्तान के पारंपरिक सहयोगी भी अब बिना शर्त समर्थन नहीं दे रहे हैं. वर्ल्ड मुस्लिम लीग और पाकिस्तान के करीबी मुस्लिम पड़ोसी ईरान और तालिबान तक ने भारत की कश्मीर घाटी में बर्बर हमले की निंदा की है.
भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है, और मांग कर रहा है कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना बंद करे. पाकिस्तान के डीप स्टेट को मुस्लिम जगत से मिल रहे समर्थन की विश्वसनीयता पर पुनर्विचार करना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि उसने जो नई रणनीतिक दोस्ती बनाई है उससे क्या वह हमेशा बिनाशर्त समर्थन पाने का भरोसा कर सकता है?
*Statement from the #MuslimWorldLeague: pic.twitter.com/M7TiUvrULA
— Muslim World League (@MWLOrg_en) April 23, 2025
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