पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। भारत ने कड़े कदम उठाते हुए सिंधु जल नदी समझौता रद्द किया है और पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए हैं। पाकिस्तान ने भी शिमला समझौता रद्द करने की घोषणा की है। अब चर्चा है कि पाकिस्तान 1966 में हुए ताशकंद समझौते को रद्द कर सकता है। ऐसा करने से भारत पर क्या असर होगा, आइए जानते हैं।
ताशकंद समझौता एक शांति संधि है, जिस पर भारत और पाकिस्तान ने 10 जनवरी 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में हस्ताक्षर किए थे। यह 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को रोकने के लिए सोवियत संघ के प्रीमियर अलेक्सी कोसिगिन की मध्यस्थता में हुआ था। इस पर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इसमें कश्मीर को लेकर शांति बहाल करने और दोनों देशों के बीच अच्छे पड़ोसी संबंध बनाए रखने पर सहमति बनी थी। लोगों के हित में शांति बनाए रखने पर भी सहमति हुई थी।
समझौते के तहत 25 फरवरी 1966 तक दोनों देशों की सेनाएं अपने-अपने इलाकों में वापस चली जाएंगी और 5 अगस्त 1965 से पहले की स्थिति मानी जाएगी। दोनों देश एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे और एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार नहीं करेंगे। दोनों देश 1961 के वियना सम्मेलन के अनुसार राजनयिक संबंधों को सामान्य करेंगे। दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंध बनेंगे, इस पर भी सहमति हुई थी।
इस समझौते के अगले दिन लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था। उनकी मौत का आधिकारिक कारण दिल का दौरा बताया गया, लेकिन कई सवाल भी उठे थे। उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं करवाया गया था। इस समझौते के विरोध में केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी ने इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने हाजी पीर जैसे इलाके को लौटाने का विरोध किया था।
अगर यह समझौता रद्द होता है, तो भारत एलओसी पर आक्रामक कार्रवाई कर सकता है। रद्द होने के बाद भारत पर एलओसी को स्थायी सीमा मानने का दबाव नहीं रहेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत पीओके में घुसकर आतंकियों पर कार्रवाई कर सकता है।
समझौता रद्द होने के बाद भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर के मुद्दे को जोरशोर से उठा सकता है। भारत यह दावा कर सकता है कि पाकिस्तान कश्मीर में शांति का इच्छुक नहीं है। भारत पर कश्मीर को लेकर स्थिर रहने का दबाव नहीं रहेगा। भारत पर पाकिस्तान के साथ आर्थिक और व्यापारिक सहयोग बंद करने का पूरा मौका होगा।
भारत से संबंध टूटने का असर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। ताशकंद समझौता सोवियत संघ (मौजूदा रूस) की मौजूदगी में हुआ था। इससे पाकिस्तान और रूस के संबंध भी प्रभावित होंगे। पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं। वैश्विक मंच पर पाकिस्तान अलग-थलग पड़ सकता है।
दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता प्रभावित होगी। भारत के पास क्षेत्रीय ताकत के तौर पर खुद को पेश करने का मौका होगा। इस स्थिति में भारत के बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत होंगे। पाकिस्तान भारत में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है। इससे भारत के सामने आंतरिक सुरक्षा को संभालना चुनौती होगी। युद्ध का खतरा भी पैदा हो सकता है।
*Pakistan Considering Withdrawal from Tashkent Agreement Post-Shimla Agreementhttps://t.co/MZAHBLJ8lC pic.twitter.com/VxQeAqrxpH
— idrw (@idrwalerts) April 25, 2025
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