क्या फ़िलिस्तीनियों के हाथ से जाने वाला है ग़ज़ा? इज़रायल के इरादे क्या हैं?
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इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू 15 अप्रैल को सैनिक की वेशभूषा में ग़ज़ा पहुंचे थे, अपनी सेना का हौसला बढ़ाने. उन्होंने वहां से एक वीडियो संदेश जारी किया और कहा कि हमास को एक के बाद एक झटके लगेंगे और वे अपने सभी मकसद पूरा करके ही दम लेंगे.

लेकिन ये मकसद क्या हैं? इज़रायली रक्षा मंत्री इज़रायल काट्ज़ ने 16 अप्रैल को एक्स पर एक पोस्ट में इसका जवाब दिया. उन्होंने लिखा कि इज़रायल ग़ज़ा में अपने बफ़र ज़ोन खाली नहीं करेगा, बल्कि वहां स्थायी या अस्थायी रूप से रहेगा, जैसे लेबनान और सीरिया में करता है.

रिपोर्ट्स का कहना है कि ग़ज़ा की लगभग 50 फ़ीसद ज़मीन अब इज़रायल के कब्जे में है. उसने अलग-अलग इलाकों में कॉरिडोर बना लिए हैं और बफ़र ज़ोन बढ़ाता जा रहा है.

ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि ग़ज़ा का भविष्य क्या होने वाला है? इज़रायल का अगला प्लान क्या है? क्या ग़ज़ा से इज़रायली सैन्य मौजूदगी कभी नहीं हट सकेगी? और, ऐसे में ग़ज़ा के लोगों का क्या होगा? कहीं ग़ज़ा पर भी इज़रायल कब्जा तो नहीं कर लेगा?

19वीं सदी के आख़िरी दशक में, उस्मानी सल्तनत के नक़्शे में एक छोटा सा हिस्सा था: ग़ज़ा. तब ग़ज़ा पट्टी में सिर्फ दो ही शहरी केंद्र थे: ग़ज़ा शहर और ख़ान यूनुस. उस दौरान बाक़ी की आबादी छोटे और मंझोले गांवों में बसी थी.

ये गांव मिस्र और फ़िलिस्तीन को जोड़ने वाले कोस्टल रोड के दोनों तरफ़ फैले हुए थे. इनमें जबालिया, दैर अल-बलाह, बनी सुहैला, अबासान और रफ़ा सबसे बड़े थे. ये गांव, ग़ज़ा और ख़ान यूनुस के बीच संतुलन का काम करते थे.

ब्रिटिश शासन के दौरान ग़ज़ा में सिर्फ दो शहरी केंद्र थे. लेकिन कुछ ही समय में यूरोपीय औपनिवेशिक ताक़तों की दिलचस्पी बढ़ने लगी. दो दशक के भीतर पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ. तब उस इलाक़े में अरब आबादी सबसे ज़्यादा थी और महज़ 6 फीसद यहूदी रहते थे.

फिर 1917 में ब्रिटिश फ़ौज उस्मानी साम्राज्य को पछाड़ कर फ़िलिस्तीन में दाख़िल हुईं. ग़ज़ा ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया और फिर आया बैलफोर डिक्लेरेशन , जिसने यहूदी राष्ट्रवाद के लिए ज़मीन पैदा की.

इसी दौरान दुनिया भर से यहूदी आकर इस इलाक़े में बसना शुरू हुए. फ़िलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक नेशनल होम की स्थापना करने की बात चली. 1920 और 1940 के दशक में यहूदी भारी संख्या में यहां आकर बसे.

1947 तक फिलिस्तीन में यहूदियों की आबादी 6 फ़ीसदी से बढ़कर 33 फीसदी हो गई थी. इससे अरब और यहूदी आबादी के बीच तनाव बढ़ गया. इसके चलते UN ने 1947 में फिलिस्तीन का बंटवारा कर दिया.

अंग्रेज़ों के जाते ही, 1948 में इज़रायल की स्थापना हुई. इसके तुरंत बाद अरब देशों ने इज़रायल के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी. और इसी जंग में, ग़ज़ा पट्टी मिस्र के नियंत्रण में आ गई.

इस जंग में लाखों फ़िलिस्तीनी विस्थापित हुए. ग़ज़ा, जो कभी एक सीमांत इलाक़ा था, वो शरणार्थियों से पट गया. रिफ्यूज़ी कैम्पों की बुनियाद पड़ गई.

इज़रायल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बिन-गुरियन ने 1955 में ग़ज़ा पर कब्ज़ा करने का प्रस्ताव रखा. मगर न पहले ये हो सका, न 1956 के सिनाई युद्ध के बाद.

फिर आया साल 1967. इज़रायल और अरब देशों में सिक्स-डे वॉर हुई. इज़रायल ने जॉर्डन के हाथ से ईस्ट जेरूसलम और वेस्ट बैंक छीन लिया और ग़ज़ा पर क़ब्ज़ा कर लिया.

इज़रायली क़ब्ज़े के बाद ग़ज़ा में इज़रायली बस्तियां बसाईं गईं. यहीं से शुरू होती है प्रतिरोध की राजनीति और हमास जैसे संगठन जन्मे. 1987 में पहला इंतिफ़ादा हुआ, जिसका मकसद था, वेस्ट बैंक, ग़ज़ा और पूर्वी जेरुसलम को इज़रायली क़ब्ज़े से मुक्त करवाना.

2004 तक, लगभग सात हज़ार इज़रायली ग़ज़ा में रह रहे थे. फिर आया एरियल शैरोन का डिसएंगेजमेंट प्लान . सैनिक हटाए गए, इमारतें खाली की गईं और धीरे-धीरे ग़ज़ा में इज़रायल की स्थायी मौजूदगी खत्म हो गई, सिवाय फिलाडेल्फी कॉरिडोर के.

मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति में वेस्ट बैंक पर फ़िलिस्तीन अथॉरिटी का शासन चलता है, जबकि ग़ज़ा पट्टी का कंट्रोल हमास के पास है.

7 अक्टूबर, 2023 को हमास और दूसरे फ़िलिस्तीनी गुटों ने इज़रायल पर आतंकी हमला किया. हमास के हमले के बाद इज़रायल ने ग़ज़ा में युद्ध का ए लान कर दिया.

15 महीनों की लड़ाई के बाद दोनों पक्ष तीन चरणों में युद्धविराम लागू करने के लिए तैयार हुए थे, लेकिन दूसरे चरण पर बात बन नहीं पाई. इज़रायल बार-बार ये कहता रहा है कि वो हमास के ख़ात्मे के बग़ैर जंग ख़त्म नहीं करेगा.

युद्धविराम आगे नहीं बढ़ा और इज़रायल ने ग़ज़ा में पहुंचने वाली मानवीय मदद पर रोक लगा दी. 18 मार्च को इज़रायल ने युद्धविराम भंग कर दिया और फिर से हवाई हमले शुरू कर दिए.

इज़रायली सेना का दावा है कि 18 मार्च के बाद से अब तक उसने सैकड़ों हमास लड़ाकों को मार गिराया है, जबकि ग़ज़ा के हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक़ 18 मार्च से अब तक 1600 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इसी बीच चार लाख से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी एक बार फिर अपने घरों से बेघर हो चुके हैं.

इसी बीच इज़रायली सेना ने ग़ज़ा में कॉरिडोर्स पर भी क़ब्ज़ा जमा लिया है. पहला है, नेटज़रिम कॉरिडोर, जो ग़ज़ा के उत्तरी एक तिहाई भाग को दक्षिणी भाग से अलग करता है. दूसरा है, फ़िलाडेल्फ़ी कॉरिडोर, जो ईजिप्ट और ग़ज़ा की सीमा पर बना हुआ है.

2 अप्रैल को बेंजामिन नेतन्याहू के एलान के बाद मोराग कॉरिडोर बनाया गया. मोराग कॉरिडोर रफ़ा और ख़ान यूनुस के बीच ग़ज़ा को काटता है, और सीधे मिस्र की सीमा से लगे फिलाडेल्फ़ी रूट से जुड़ जाता है.

अब ग़ज़ा के भीतर तीन प्रमुख कॉरिडोर बन चुके हैं. और, इनके साथ-साथ जो बफर ज़ोन बनाया गया है, अगर सब मिला दें तो 50% से ज़्यादा ग़ज़ा की ज़मीन इज़रायली सैन्य नियंत्रण में आ चुकी है.

एक इज़रायली सैनिकों की संस्था ब्रेकिंग द साइलेंस की रिपोर्ट कहती है कि युद्ध के पहले चरण में सेना ने सीमा से लगे फ़िलिस्तीनी गांवों को खाली कराया, ज़मीन को समतल किया गया और मकानों को उड़ाया गया.

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इज़रायल की योजना क्या है? वो कॉरिडोर्स और बफ़र ज़ोन बढाकर क्या हासिल करना चाहता है?

ज़मीनी हकीकत अब ये है कि ग़ज़ा का एक बड़ा हिस्सा IDF के स्थायी सैन्य नियंत्रण में तब्दील हो चुका है और इसमें कोई बदलाव आने की संभावना भी 16 अप्रैल को खत्म हुई, जब इज़रायली रक्षा मंत्री इज़रायल काट्ज़ ने एक्स पर पोस्ट किया.

काट्ज़ ने कहा कि IDF अब कब्ज़ा किए गए इलाकों को खाली नहीं करेगा, बल्कि वहां स्थायी रूप से रहेगा, जैसे लेबनान और सीरिया में करता है. ऐसे में इज़रायल और हमास के बीच युद्धविराम की बची खुची संभावना पर भी सवाल उठने लगे हैं.

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