क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश दे सकता है? उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद 142 को बताया परमाणु मिसाइल
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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को दिए गए निर्देशों पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 142 को लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बताया है, जो न्यायपालिका के पास 24 घंटे उपलब्ध रहती है।

धनखड़ का बयान ऐसे समय में आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई और उसे रोकने की बात कही।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हाल ही में एक निर्णय के माध्यम से राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि देश में क्या हो रहा है और क्या किसी ने लोकतंत्र के लिए इस दिन की उम्मीद की थी।

उन्होंने चिंता व्यक्त की कि ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, कार्यकारी कार्य करेंगे, सुपर-संसद के रूप में कार्य करेंगे, और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।

धनखड़ ने कहा कि ऐसी स्थिति नहीं बनाई जा सकती जहां सुप्रीम कोर्ट भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दे। उन्होंने कहा कि संविधान के तहत उनके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है।

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 145(3) के अनुसार किसी महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर कम-से-कम 5 न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के खिलाफ निर्णय दो न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा दिया गया था, जबकि अब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर 31 हो गई है।

उन्होंने यहां तक कहा कि संविधान पीठ में न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या बढ़ाने के लिए अनुच्छेद 145(3) में संशोधन करने की आवश्यकता है।

उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के छठे बैच को संबोधित करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को बिल पर तीन महीने में निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो संबंधित राज्यपाल द्वारा भेजा गया विधेयक कानून बन जाता है।

न्यायपालिका की वर्तमान स्थिति पर बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने न्यायाधीश यशवंत वर्मा का भी जिक्र किया, जिनके घर पर इस साल होली के दिन नोटों से भरे बोरों में आग लग गई थी। मामले में भारी विवाद के बाद भी सुप्रीम कोर्ट उन्हें दिल्ली से इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया और मामले की जाँच के लिए आंतरिक कमिटी बना दी गई।

धनखड़ ने कहा कि 14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक न्यायाधीश के निवास पर एक घटना घटी और सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं चला। उन्होंने सवाल उठाया कि इसमें हुई देरी को क्या समझा जा सकता है और क्या यह क्षमा योग्य है।

अनुच्छेद 142, जिसे उपराष्ट्रपति ने परमाणु मिसाइल कहा, संविधान में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और डिक्री को देने का अधिकार और उसे लागू करने आदि से संबंधित है।

अनुच्छेद 142 के उपबंध-1 सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार देता है कि उसके पास आए किसी भी मामले में वह न्याय के लिए डिक्री या आदेश पारित कर सकेगा। यह डिक्री या आदेश पूरे भारत में लागू होगा। इसके उपबंध-2 में कहा गया है कि इस संंबंध में संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन रहते हुए सुप्रीम कोर्ट पूरे भारत के किसी भी क्षेत्र के किसी व्यक्ति को हाजिर होने, दस्तावेज प्रस्तुत करने, अवमानना की जाँच करने या दंड देने का समस्त अधिकार उसके पास होगा। इस तरह अनुच्छेद 142 में स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट को संसद द्वारा पारित कानून के दायरे में ही काम करना है।

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में अनुच्छेद 142 की व्याख्या और उसके प्रयोग के विभिन्न उदाहरण पेश किए गए हैं। हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट के पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में निर्णय देकर एक कानूनी ढाँचा विकसित किया।

यह ढाँचा संविधान के अनुच्छेद 142 की व्याख्या और उसके प्रयोग से संबंधित था। इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने एशियन रीसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम सीबीआई के पिछले निर्णय को पलट दिया था। इसमें अनुच्छेद 142 के तहत नए दिशा-निर्देश जारी करने के अलावा अंतरिम आदेशों से संबंधित पहलुओं को भी शामिल किया।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का उपयोग प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को दबाने या वादियों के मूल अधिकारों को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग विवेक से और केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए, ताकि विवादों का निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाधान निकाला जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि अनुच्छेद 142 द्वारा दी गई शक्तियों का उद्देश्यपूर्ण न्याय सुनिश्चित करना है।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च पद है और सुप्रीम कोर्ट भारत के राष्ट्रपति को निर्देश जारी नहीं कर सकता है क्योंकि राष्ट्रपति और राज्यपाल ही ऐसे दो पद हैं, जिनके खिलाफ अदालती कार्रवाई नहीं की जा सकती है। संविधान में अनुच्छेद 361 के तहत इसका प्रावधान किया गया है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और लोकसभा स्पीकर का पद एक समान होता है। दोनों वरीयता क्रम में छठे नंबर पर आते हैं। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और प्रधानमंत्री का पद CJI और लोकसभा स्पीकर से ऊपर होता है।

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