सुप्रीम कोर्ट में वक्फ बोर्ड पर याचिका स्वीकार न होने पर सवाल उठ रहे हैं। क्या कश्मीर से हिंदुओं को भगा दिया गया, तो उनकी संपत्तियाँ वक़्फ़ बाय यूजर हो गईं? कल को मुर्शिदाबाद में भी यही होगा। सुप्रीम कोर्ट हिन्दुओं के मामले में क्यों कागज़ मांगता है?
उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की गिरती हुई साख की बात करते हुए कहा है कि वो सुपर संसद बनकर कानून नहीं बना सकती, ये काम उस संसद का है जो जनता के प्रति जवाबदेह है।
हाल ही में संसद के दोनों सदनों से पारित होकर और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद वक़्फ़ संशोधन अधिनियम कानून बना। अब सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ कई याचिकाएँ पहुँच गईं। इस पर सुनवाई चल रही है, और कानून के कई प्रावधानों पर अगली सुनवाई तक रोक लग गई है। सरकार को सुप्रीम कोर्ट में सवालों के जवाब देने पड़ रहे हैं।
आलोचकों का कहना है कि मोदी सरकार के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट की थकाऊ न्यायिक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जैसे अनुच्छेद 370 और 35A निरस्त करने का मामला हो या चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया।
वक्फ संशोधन कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हैरान करने वाली है। इस बिल को पास कराया जाना लोकतंत्र में एक उदाहरण होना चाहिए था क्योंकि इसे संसद में पेश किए जाने के बाद संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया। इसमें शामिल पक्ष-विपक्ष के 31 सांसदों ने 36 बैठकें कीं, 10 शहरों में जाकर ग्राउंड की स्थिति देखी, 284 हितधारकों से सुझाव लिए गए और 25 राज्यों के वक्फ बोर्ड्स के प्रतिनिधियों से सुझाव लिए गए। लोकसभा में 12 घंटे की चर्चा के बाद यह बिल पारित हुआ।
काशी-मथुरा से लेकर हिन्दुओं से जुड़े तमाम विषयों पर अदालतों में हिन्दुओं का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट के इस दोहरे रवैये पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने बताया है कि वक़्फ़ बोर्ड को लेकर जब वो सुप्रीम कोर्ट में याचिका लेकर गए थे, तब उनसे हाई कोर्ट जाने के लिए कहा गया था, जबकि 140 से अधिक याचिकाओं के साथ समाज 7 साल से संघर्ष कर रहा है और कोई अंतरिम राहत नहीं मिली।
विष्णु शंकर जैन ने पूछा कि एक पक्ष सुप्रीम कोर्ट जाता है तो तुरंत उसकी याचिका स्वीकार हो जाती है और अंतरिम राहत की बात भी होती है, जबकि दूसरे पक्ष के लिए ये कानून लागू नहीं होता। उन्होंने कहा कि 13 वर्षों से 4 राज्यों में एंडोमेंट एक्ट के जरिए मंदिरों पर कब्ज़ा किए जाने के विरुद्ध सुनवाई चल रही है, और हाल ही में सारे मुद्दों को हाई कोर्ट में भेज दिया गया है।
विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले मीडिया के समक्ष ये तर्क दिए थे। उन्होंने सलाह दी कि सभी मामलों को एक हाई कोर्ट में भेजकर संवैधानिक पीठ बनाई जाए और सुनवाई हो। उनका सवाल है कि AIMIM, अमानतुल्लाह ख़ान, जमीयत और कई विपक्षी दलों की याचिकाएँ सीधे सुप्रीम कोर्ट में कैसे स्वीकार हो जाती हैं, जबकि हिन्दुओं को अयोध्या से लेकर काशी-मथुरा तक के लिए जिले की कचहरी से होकर गुजरना पड़ता है और सदियों लग जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने कहा कि अगली सुनवाई तक सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल और राज्यों के वक़्फ़ बोर्ड्स में नई नियुक्तियाँ नहीं होंगी। नए कानून में गैर-मुस्लिमों की नियुक्तियों का भी प्रावधान है, जिस पर स्वतः ही रोक लग गई। साथ ही वक़्फ़ बाय यूजर सहित अन्य वक़्फ़ संपत्तियों को भी अगली सुनवाई तक नहीं छुआ जाएगा। केंद्र सरकार एक सप्ताह बाद रिपोर्ट दाखिल करेगी।
तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के जजों से कहा कि वे प्रावधानों पर रोक लगाकर कठिन कदम उठा रहे हैं। CJI संजीव खन्ना ने कहा कि सुनवाई तक इन प्रावधानों के अनुसार फैसले नहीं होने चाहिए, ताकि लोगों के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
दाउदी बोहरा समाज के मुस्लिम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर इस कानून के लिए धन्यवाद दे रहे थे, और सुप्रीम कोर्ट अधिकारों के उल्लंघन की बात कर रहा था। अब 5 मई को सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई करेगा।
वक्फ के मामले में CJI संजीव खन्ना कहते हैं कि कई ऐसी मस्जिदें हैं जो 14वीं-15वीं शताब्दी में बनी हुई हैं, ऐसे में वे दस्तावेज कहां से दिखाएंगे क्योंकि अंग्रेजी राज से पहले रजिस्ट्रेशन की कोई प्रक्रिया ही नहीं थी। अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर के लिए हिन्दुओं को 134 वर्षों तक कोर्ट में लड़ाई लड़नी पड़ी, कागज़ दिखाने और स्वामित्व साबित करने की लड़ाई थी। क्या अब काशी, मथुरा, भद्रकाली, भोजशाला और अटाला पर भी सुप्रीम कोर्ट कागज़ नहीं मांगेगा क्योंकि उस समय रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं थी?
सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर सुनवाई के बिना ही रोक लगा दी थी और इस बार, केंद्र सरकार ने खुद कदम पीछे खींच लिए। वक़्फ़ बाय यूजर एक विवादित प्रावधान है, जहाँ कोई संपत्ति सिर्फ इसलिए वक़्फ़ की हो जाती है क्योंकि उसका इस्तेमाल इस्लाम के लिए हो रहा है।
आलोचक पूछते हैं कि एक तरफ राम मंदिर के लिए सबूत मांगा जाता है, और दूसरी तरफ वक़्फ़ के लिए कहा जाता है कि वे कागज़ कहां से दिखाएंगे - यह दोहरा रवैया कैसे चल सकता है? अगर वक़्फ़ बाय यूजर नामक कोई प्रावधान हो सकता है, तो मंदिर बाय यूजर और गुरुद्वारा बाय यूजर जैसा कोई प्रावधान क्यों नहीं हो सकता? कल को गाँव के गाँव वक़्फ़ बाय यूजर हो जाएंगे, क्योंकि कश्मीर में हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर किया गया और वहां कौन देखने गया किसकी संपत्ति का क्या इस्तेमाल हुआ? पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में भी आज वही हो रहा है।
एक तरफ एक गिरोह को सड़क पर दंगे करने से लेकर संपत्ति को अपना बताने तक के अधिकार हैं, वहीं दूसरी तरफ अपने आराध्यों के मंदिर में पूजा के अधिकार के लिए एक वर्ग दशकों तक कोर्ट में दौड़ता है। एक तरफ फंडिंग और रसूख है, दूसरी तरफ इस देश को अपना मानने वाले लोग हैं जो संविधान से ऊपर शरीयत को नहीं रखते।
अब समय आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट हिन्दुओं की भी सुने, उन्हें हाई कोर्ट जाने न बोले और मंदिरों से कागज़ मांगना बंद करे।
*जब हमने वक्फ बोर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, तो कोर्ट ने हमसे पूछा था कि हम सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आए और सुझाव दिया था कि हमें हाई कोर्ट जाना चाहिए, और हमें कोई अंतरिम राहत नहीं मिली, जबकि अलग-अलग हाई कोर्ट में 140 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई हैं। अब क्या… pic.twitter.com/771skMh5Zn
— Vishnu Shankar Jain (@Vishnu_Jain1) April 17, 2025
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