वक्फ संशोधन के बाद यूसीसी पर सरकार की नजर? मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता!
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वक्फ संशोधन अधिनियम लागू होने के बाद अब मोदी सरकार समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। यह अब सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल है।

उत्तराखंड में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करने के लिए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू कर दी गई है। यूसीसी लागू होने के बाद उत्तराखंड स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा करने वाला पहला राज्य बन गया है।

गुजरात की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने राज्य में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता का आकलन करने और विधेयक तैयार करने के लिए उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंड को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने के लिए बधाई दी है। उन्होंने कहा कि यह कानून खेल भावना की तरह है, जहां किसी से कोई भेदभाव नहीं है, सब बराबर हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य बना है जिसने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू की है।

प्रधानमंत्री ने यूसीसी को सेक्युलर सिविल कोड की संज्ञा दी और कहा कि यह कानून बेटियों, माताओं, बहनों के गरिमापूर्ण जीवन का आधार बनेगी। संविधान की भावना भी मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि हर जीत, हर मेडल के पीछे मंत्र होता है सबका प्रयास। खेलों से हमें टीम भावना के साथ खेलने की प्रेरणा मिलती है। यही भावना यूसीसी की भी है- किसी से भेदभाव नहीं, हर कोई बराबर।

भाजपा ने सोमवार को संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य, वक्फ संशोधन अधिनियम को लागू करने से इनकार नहीं कर सकते। भाजपा ने इस कानून का लगातार विरोध करने के लिए कांग्रेस और इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के अन्य घटकों की आलोचना की।

भाजपा का यह बयान झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के विधायक और झारखंड के मंत्री हफीजुल हसन के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि उनके लिए शरिया पहले है और उसके बाद संविधान। कर्नाटक के मंत्री बी.जेड. जमीर अहमद खान ने दावा किया था कि राज्य में यह कानून लागू नहीं किया जाएगा।

शनिवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा था कि यह अधिनियम पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा। टिप्पणी के लिए पूछे जाने पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने इस मुद्दे पर उनके रुख को गंभीर चिंता का विषय बताया और कहा कि उन्होंने अपनी टिप्पणी से यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि उनकी पार्टियां सत्ता में बनी रहीं, तो संविधान खतरे में पड़ जाएगा।

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