वक़्फ़ संशोधन विधेयक अब कानून बन चुका है, जिस पर संसद में ज़ोरदार बहस हुई। यह बहस इतनी तीव्र थी कि इसने राजनीति में दिलचस्पी न रखने वालों का भी ध्यान खींचा।
केंद्र सरकार की इस पहल का विरोध करने वालों ने इसे मुसलमानों की संपत्ति पर सरकार का दखल बताया, वहीं समर्थकों ने कहा कि ऐसा न करने पर उनकी ज़मीनें वक़्फ़ बोर्डों के हाथों चली जातीं।
बीजेपी सांसद संबित पात्रा ने संसद में कई इस्लामी देशों के नाम लेकर दावा किया कि वहां वक़्फ़ नहीं होता। उन्होंने कहा कि तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक़ में वक़्फ़ का कोई वजूद नहीं है, जबकि भारत में इसे कानूनी सुरक्षा दी गई है।
हालांकि, वास्तविकता यह है कि दुनिया के हर इस्लामी देश में वक़्फ़ जैसी संस्थाएं मौजूद हैं, भले ही उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता हो। तुर्की में फ़ाउंडेशन का एक महानिदेशालय है, जबकि मिस्र में औक़ाफ़ मंत्रालय है, जो ट्रस्ट के कानून की तरह काम करता है और ज़मीन, बाज़ार और अस्पताल जैसी संपत्तियों का प्रबंधन करता है। सूडान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक़ जैसे देशों में वक़्फ़ विभाग धार्मिक मामलों के मंत्रालय के तहत काम करते हैं।
केरल विश्वविद्यालय में इस्लाम का इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर असरफ़ कडक्कल के अनुसार, अधिकांश इस्लामी देशों में औक़ाफ़ मंत्रालय होते हैं जो वक़्फ़ की देखभाल करते हैं और इस्लामी न्यायशास्त्र का पालन करते हैं।
जामिया मिल्लिया में इस्लामिक स्टडीज के प्रोफ़ेसर अख़्तरुल वासे बताते हैं कि वक़्फ़ की शुरुआत पैग़म्बर मोहम्मद के चचेरे भाई उस्मान इब्न अफ़्फ़ान ने की थी, जब उन्होंने रेगिस्तानी क्षेत्र में पानी की कमी को देखते हुए अल्लाह के नाम पर पानी की सुविधा खरीदी थी।
क़ानूनी विशेषज्ञों ने भारत में वक़्फ़ की तुलना इस्लामी देशों से करने पर आपत्ति जताई है। चाणक्य विधि विश्वविद्यालय के कुलपति फ़ैज़ान मुस्तफ़ा कहते हैं कि भारत को इस्लामी देशों से तुलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह एक धर्म तंत्र नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता शाहरुख़ आलम का कहना है कि हर देश की अपनी व्यवस्था होती है और इस्लामी राष्ट्र से तुलना करना उचित नहीं है।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने दावा किया था कि तमिलनाडु में हज़ारों एकड़ ज़मीन वक़्फ़ घोषित कर दी गई, जिसे सांसद ए. राजा ने बेबुनियाद कहानी क़रार दिया। उन्होंने कहा कि संसद में कानून पेश करने से पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने एक जांच की थी, जिसमें ऐसा कुछ नहीं पाया गया।
क़ानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि वक़्फ़ बोर्ड एक सरकारी निकाय है और यह मनमानी नहीं कर सकता। किसी भी भूमि को वक़्फ़ संपत्ति घोषित करने से पहले तीन स्तर पर जांच की जाती है।
ब्रांड गुरु हरीश बिजूर कहते हैं कि वक़्फ़ एक विचार है और धारणा सच्चाई से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो सकती है। मीडिया की भी इस विचार को पुष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका है, भले ही यह वास्तविकता से बहुत दूर हो।
कई इस्लामिक देशों में वक़्फ़ का वजूद नहीं जबकि भारत में वक़्फ़ बोर्ड को क़ानूनी मान्यता प्राप्त है, उसके बाद भी हंगामा क्यों बरपा हुआ है? #WaqfAmendmentBill pic.twitter.com/3DxJasCnR8
— Sambit Patra (@sambitswaraj) April 2, 2025
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