क्या वक्फ संशोधन बिल अब पास नहीं होगा? क्या मोदी को लाडले सीएम से मिलेगा धोखा?
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वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक को लेकर राष्ट्रीय राजनीति में सरगर्मी बढ़ गई है। खासकर बिहार में विपक्ष इसे मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है।

पिछले दिनों रमजान के दौरान भी विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें लालू प्रसाद यादव ने भी हिस्सा लिया था। नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी में कई मुस्लिम संगठन शामिल नहीं हुए, क्योंकि उनकी पार्टी इस विधेयक का खुलकर विरोध नहीं कर रही है।

संसद की कार्यवाही शुरू होते ही एनडीए के सहयोगी दल जेडीयू और टीडीपी का रुख चर्चा का विषय बन गया है। जेडीयू ने स्पष्ट किया है कि उसकी नजर विधेयक के अंतिम स्वरूप पर टिकी है, जबकि टीडीपी भी इस मामले में सतर्कता बरत रही है।

जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि उनकी पार्टी ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में वक्फ विधेयक को लेकर अपनी आशंकाएं जाहिर की थीं। उन्हें उम्मीद है कि इन सुझावों को विधेयक में शामिल किया जाएगा। JDU नेता ने यह भी याद दिलाया कि वक्फ बिल में पहले भी संशोधन हुए हैं और उनकी पार्टी शुरू से ही इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाती रही है।

जेडीयू नेता ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुस्लिम संगठनों और वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी। इन चर्चाओं के बाद पार्टी ने अल्पसंख्यक समुदाय की चिंताओं को जेपीसी के समक्ष रखा था। अब जेडीयू बिल के अंतिम मसौदे का इंतजार कर रही है, जिसके बाद वह इस पर अंतिम फैसला लेगी।

जेडीयू के ललन सिंह ने कहा कि वे संसद में इस बिल पर अपना रुख साफ करेंगे। वहीं, संजय झा ने कहा कि नीतीश कुमार की राजनीति जब तक है तब तक लोगों के हितों की रक्षा की जाएगी। माना जा रहा है कि अमित शाह इन दोनों नेताओं के साथ बैठक कर सकते हैं।

उधर, टीडीपी भी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। पिछले साल अगस्त में टीडीपी ने लोकसभा में बिल को जेपीसी के पास भेजने का समर्थन किया था। टीडीपी के वरिष्ठ नेता नवाब जान ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू कभी भी ऐसा बिल पारित नहीं होने देंगे जिससे मुस्लिम हितों को नुकसान पहुंचे। फिलहाल, पार्टी ने खुलकर विरोध या समर्थन का ऐलान नहीं किया है।

विपक्षी दल वक्फ बिल को मुस्लिम विरोधी और संविधान के खिलाफ बता रहे हैं। कांग्रेस, सपा और एआईएमआईएम जैसी पार्टियों ने इसका कड़ा विरोध किया है। वहीं, सरकार का कहना है कि यह बिल वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता लाने और महिलाओं व पिछड़े मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए है।

जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट में 14 संशोधन सुझाए हैं, जिन्हें केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। अब इस बिल के बजट सत्र में पेश होने की उम्मीद है। जेडीयू और टीडीपी की भूमिका इसलिए अहम है क्योंकि बीजेपी के पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं है। उसे अपने सहयोगी दलों के वोटों की जरूरत होगी। जेडीयू के 12 और टीडीपी के 16 सांसद बिल के पक्ष या विपक्ष में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। दोनों ही पार्टियां अपने-अपने राज्यों में मुस्लिम वोटों पर भी निर्भर हैं, जिसके चलते वे सतर्कता बरत रही हैं। इन पार्टियों का अगला कदम क्या होगा, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।

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