गडकरी ने खरगे को घेरा, दिया काम का चैलेंज, खोली कर्नाटक कांग्रेस की कलई
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राज्यसभा में बुधवार को कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बीच तीखी बहस देखने को मिली. खरगे ने राजमार्ग परियोजनाओं में कथित देरी को लेकर गडकरी को घेरा, तो मंत्री ने पलटवार करते हुए उन्हें काम का चैलेंज दे डाला और कर्नाटक कांग्रेस में चल रही खींचतान को भी उजागर कर दिया.

खरगे ने राज्यसभा में कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और गडकरी को कई पत्र लिखे हैं, लेकिन गुलबर्गा से बेंगलुरु और सोलापुर से बेंगलुरु जैसे महत्वपूर्ण राजमार्ग परियोजनाओं में कोई प्रगति नहीं हुई है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राजमार्गों के नंबर तय करने के लिए भी प्रधानमंत्री कार्यालय जाना पड़ता है. खरगे ने गडकरी की तारीफ करते हुए यह भी कहा कि वे अपने प्रयासों से धन जुटाते हैं, लेकिन श्रेय प्रधानमंत्री को जाता है.

गडकरी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि राजमार्गों के नंबर तय करने के लिए कोई फाइल प्रधानमंत्री के पास नहीं जाती है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन्हें इस काम के लिए नियुक्त किया है और वे दिए गए आदेश के अनुसार काम करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि धन की कमी राजमार्ग निर्माण में बाधा नहीं है, बल्कि पर्यावरण मंजूरी की कमी, राज्य सरकारों द्वारा भूमि अधिग्रहण में विफलता और अदालती मामले जैसी बाधाएं हैं.

गडकरी ने खरगे को चुनौती देते हुए कहा कि वे उन्हें एक बार बुला लें और रोड का नाम बताएं. उन्होंने कहा कि खरगे का जितना काम है, वे करके देंगे. गडकरी ने यह भी दावा किया कि कर्नाटक राज्य बनने के बाद से जितना काम हुआ है, उससे कई गुना ज्यादा काम 2014 में उनकी सरकार आने के बाद हुआ है.

गडकरी ने खरगे के अपने पार्टी सहयोगियों, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के साथ सहज समीकरण नहीं होने की अटकलों पर भी चुटकी ली. उन्होंने कहा कि खरगे अपने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से पूछ सकते हैं कि पहले से कहीं ज़्यादा काम हुआ है या नहीं, हालांकि उन्हें नहीं पता कि उन्होंने उनके साथ चर्चा की है या नहीं.

गडकरी ने सूरत से सोलापुर और अहमदनगर, हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई होते कन्याकुमारी तक प्रस्तावित नए मार्ग से 340 किलोमीटर दूरी कम होने की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि खरगे का क्षेत्र भी इस मार्ग से कनेक्ट हो रहा है और उसका काम शुरू है. उन्होंने यह भी कहा कि कर्नाटक में अधिकतम मामले जमीन अधिग्रहण और पर्यावरण क्लीयरेंस के फंसे हुए हैं, जिसमें सिराडीगाड का मामला 10 साल से फंसा हुआ है.

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