नीतीश के बेटे निशांत कुमार राजनीति में: किसके इशारे पर?
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बिहार में इन दिनों दो तस्वीरें चर्चा का विषय बनी हुई हैं: 15 मार्च को मुख्यमंत्री आवास से होली मिलन की तस्वीर और उसके अगले दिन जदयू कार्यालय के बाहर लगा एक पोस्टर। दोनों में एक समानता है – दोनों के तार निशांत कुमार से जुड़े हैं, जिनकी सियासी लॉन्चिंग अब तय मानी जा रही है।

15 मार्च को मुख्यमंत्री आवास में नीतीश कुमार ने होली मिलन समारोह रखा था। इस समारोह में निशांत कुमार, नीतीश कुमार की कोर टीम के सदस्यों के साथ गलबहियां करते दिखे। निशांत के हाथ विजय कुमार चौधरी और संजय कुमार झा के कंधे पर थे। कहा जा रहा है कि यह होली मिलन निशांत की लॉन्चिंग के लिए ही रखा गया था।

बीते 20 सालों में पहली बार सीएम आवास में इस स्तर का होली मिलन कार्यक्रम मनाया गया, जिसमें प्रदेश भर से एक हजार से ज्यादा जदयू के नेता और कार्यकर्ता जुटे थे। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इस जुटान के जरिए अपने समर्थकों तक यह संदेश पहुंचा दिया है कि जदयू का भविष्य अब निशांत होंगे।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल बताते हैं कि इस होली मिलन समारोह में उन लोगों को बुलाया गया था जो पिछले 25-30 सालों से नीतीश कुमार से जुड़े हैं। यह नीतीश कुमार के लोग हैं और इनकी निष्ठा इस हद तक है कि नीतीश अगर कह दें कि सूरज पश्चिम से उगता है तो उनके लिए यही सच होगा। उस कैडर को बुलाकर यह संदेश दिया गया कि जदयू का भविष्य अब निशांत कुमार हैं।

होली मिलन समारोह के अगले दिन जदयू कार्यालय के बाहर एक पोस्टर चस्पा किया गया, जिस पर लिखा था, बिहार की मांग सुन लिए निशांत, बहुत-बहुत धन्यवाद। इससे पहले भी निशांत के पॉलिटिकल डेब्यू की मांग करने वाले पोस्टर्स लगे थे।

जदयू के रणनीतिकार और नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले पूर्व मंत्री जय कुमार सिंह ने दावा किया कि निशांत की एंट्री हो गई है, बस अब औपचारिक ऐलान शेष है। मंत्री लेसी सिंह ने भी निशांत के साथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की है।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल बताते हैं कि अब तक जदयू नेताओं में निशांत के साथ तस्वीर शेयर करने की होड़ नहीं थी और न ही निशांत कभी जदयू नेताओं के साथ नजर आते थे। लेकिन पहली बार निशांत आकर्षण का केंद्र बने थे और लोग उनके साथ तस्वीर खिंचाने को लेकर बेताब दिख रहे थे।

बिहार की सभी पार्टियों में सेकेंड जेनरेशन ने कमान संभाल ली है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष भले लालू यादव हों, लेकिन तेजस्वी को सारे फैसले लेने के अधिकार दे दिए गए हैं। चिराग पासवान ने अपने पिता की विरासत को संभाल लिया है। जीतन राम मांझी भी अब अपने बेटे संतोष सुमन को आगे कर रहे हैं। बीजेपी सम्राट चौधरी को प्रोजेक्ट कर रही है।

ऐसे में जदयू को भी उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाले लीडर की तलाश है। विजय कुमार चौधरी और संजय कुमार झा जैसे नेता जदयू की विरासत को आगे नहीं ले जा सकते। जदयू नीतीश कुमार की पार्टी है और उनका कोर वोटर लव-कुश किसी दूसरी जाति के नेता के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेगा।

नीतीश कुमार ने नेतृत्व को लेकर पहले कई प्रयोग किए, लेकिन उन्होंने जिन पर भरोसा जताया, वे पार्टी में एक पैरलल पावर सेंटर बनाने में जुट गए और उन्हें पार्टी के बाहर जाना पड़ा। नीतीश कुमार के आसपास के लोग उन पर निशांत को लॉन्च करने का दबाव बना रहे हैं।

नीतीश कुमार परिवारवाद को लेकर राजद पर निशाना साधते रहे हैं। ऐसे में अब यह सवाल नीतीश कुमार पर भी उठेंगे अगर निशांत कुमार राजनीति में आते हैं। निशांत कुमार को पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाती है या उन्हें चुनाव लड़ाया जाता है तो नीतीश कुमार पर परिवारवाद का आरोप लगेगा।

कयास लगाए जा रहे हैं कि निशांत चुनाव तक बिना किसी पद के पार्टी के लिए काम करेंगे, पार्टी के प्रवक्ताओं से संवाद करेंगे, पार्टी की कोर ग्रुप से तालमेल बिठाएंगे, वॉर रूम की मॉनिटरिंग करेंगे और चुनाव लड़ने के लिए बनने वाली रणनीतियों को समझेंगे।

अगर अभी निशांत को पार्टी या सरकार में कोई बड़ी भूमिका दी जाएगी तो उनकी तुलना तेजस्वी यादव से होगी। फिर नीतीश बनाम तेजस्वी न होकर लड़ाई तेजस्वी बनाम निशांत हो जाएगी। कुछ सियासी विश्लेषकों का मानना है कि अगर निशांत को चुनाव लड़ाया जाता है तो इस बात को बल मिल जाएगा कि नीतीश कुमार पूरी तरह से फिट नहीं हैं।

फिलहाल ऐसा लग रहा है कि निशांत पॉलिटिक्स में आ गए हैं और बैकडोर से पार्टी और संगठन का काम देखेंगे।

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