कनिमोझी बनाम प्रधान: हिंदी को लेकर संसद में घमासान, क्या है पूरा विवाद?
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लोकसभा में नई शिक्षा नीति पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की टिप्पणी से डीएमके सांसदों का विरोध जारी है।

प्रधान द्वारा टिप्पणी वापस लेने के बावजूद डीएमके सांसद कनिमोझी के नेतृत्व में पार्टी सांसदों ने नई शिक्षा नीति के खिलाफ संसद में प्रदर्शन किया। नई शिक्षा नीति को लेकर केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच तनातनी से लोकसभा का माहौल गर्म है।

डीएमके सांसदों ने प्रधान के उन शब्दों पर कड़ी आपत्ति जताई, जो उन्होंने डीएमके नेताओं के लिए इस्तेमाल किए थे। इससे दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ गया।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने प्रधान को अहंकारी राजा बताया और कहा कि वे अहंकार की भाषा में बात करते हैं।

केंद्र सरकार का कहना है कि डीएमके सरकार नई शिक्षा नीति को लागू न कर तमिलनाडु के विद्यार्थियों के हितों को नुकसान पहुंचा रही है। वहीं तमिलनाडु सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति में तीन भाषा फॉर्मूला लाकर दक्षिणी राज्यों पर हिंदी थोपना चाहती है।

स्टालिन ने घोषणा की है कि उनका राज्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू नहीं करेगा और कोई भी उन्हें इसके लिए बाध्य नहीं कर सकता। उन्होंने केंद्र से तमिलनाडु से इकट्ठा फंड वापस करने की मांग की है।

प्रधान ने सोमवार को कहा था कि तमिलनाडु सरकार ने केंद्र प्रायोजित उस स्कीम को लागू करने पर अपना रुख बदल दिया है, जिसके तहत केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों के स्कूलों को मजबूत किया जाना है। उन्होंने कहा कि संबंधित राज्यों को एक नई शिक्षा नीति 2020 को लागू करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करने होते हैं, जिसके बदले में केंद्र सरकार उन्हें फंड देती है।

कनिमोझी ने प्रधान की टिप्पणी को अपमानजनक और असंसदीय भाषा करार दिया। उन्होंने कहा कि ऐसी टिप्पणियां मंजूर नहीं की जा सकतीं।

कनिमोझी ने कहा कि वे किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हिंदी को थोपने की कोशिश नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह भारत में लोगों के एक हिस्से की ओर से ही बोली जाती है। तमिलनाडु में दो भाषा नीतियों का पालन किया जाता है: अंग्रेजी और तमिल।

विवाद के बाद प्रधान ने अपने शब्द वापस ले लिए, जिसे संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया। हंगामे की वजह से सदन की कार्यवाही आधे घंटे तक के लिए रोक दी गई।

कनिमोझी ने प्रधान पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाया और उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया था।

तमिलनाडु में हिंदी का विरोध डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग द्वारा पेश किए गए त्रिभाषा फॉर्मूले से शुरू हुआ था। इस फॉर्मूले के मुताबिक, उत्तर भारत में हिंदी और अंग्रेजी के अलावा दक्षिण भारत की कोई एक भाषा पढ़ाई जानी थी और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के साथ हिंदी सिखाई जानी थी।

तमिलनाडु सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति के जरिए दक्षिण भारत के राज्यों में हिंदी थोपना चाहती है और फंड रोककर इन राज्यों पर दबाव बनाना चाहती है।

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