शिमला के हलोग धामी में दिवाली के दूसरे दिन एक अनोखी परंपरा निभाई गई, जहां स्थानीय लोग एक दूसरे पर पत्थरों की बारिश करते नजर आए. यह पत्थरबाजी लगभग 40 मिनट तक चली.
यह परंपरा तब तक जारी रहती है जब तक किसी को चोट लगने से खून न बहने लगे. इस साल कटेड़ू टोली के सुभाष को पत्थर लगने से हाथ में चोट आई और खून बहने लगा.
मान्यता के अनुसार, इसी खून से मां भद्रकाली का तिलक किया गया. तिलक होते ही यह खेल समाप्त हो गया. इस मेले में दर्शक तो आते हैं, पर वे पत्थर नहीं फेंक सकते.
धामी में पत्थर मेले का आयोजन राजपरिवार की ओर से तुनड़ू, जठौती और कटेड़ू परिवार की टोली और जमोगी खानदान की टोली के बीच होता है. इस बार जमोगी टोली विजयी रही.
सुभाष, जिनके हाथ से खून बहा, ने खुद को भाग्यशाली बताया. उन्होंने कहा कि यह आयोजन उनकी आस्था और परंपरा का प्रतीक है और वे खून निकलने की परवाह नहीं करते. उनका मानना है कि भगवान उनकी सुरक्षा करते हैं.
मेला कमेटी के महासचिव रणजीत सिंह कंवर के अनुसार, यह मेला सदियों से दिवाली के अगले दिन आयोजित होता आ रहा है. राजपरिवार के जगदीप सिंह ने इस आयोजन की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता पर प्रकाश डाला.
कहा जाता है कि पहले यहां नरबलि दी जाती थी. धामी रियासत की रानी ने सती होने से पहले नरबलि बंद करने का आदेश दिया. इसके बाद पशुबलि शुरू हुई, जो कुछ दशक पहले बंद कर दी गई. इसके बाद पत्थर मेला शुरू हुआ.
रक्त से तिलक भद्रकाली की कृपा का प्रतीक माना जाता है. पत्थर मेला स्थानीय लोगों के उत्साह, साहस और सामूहिक भागीदारी का प्रतीक बन चुका है. धामी शिमला शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर है.
*शिमला के हलोग धामी में मंगलवार को दिवाली के दूसरे दिन स्थानीय लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते नजर आए। करीब 40 मिनट तक दोनों पक्षों के बीच जमकर पत्थरबाजी हुई। इसमें एक शख्स के हाथ में पत्थर लगने से खून बहा जिससे मां भद्रकाली का तिलक किया गया। pic.twitter.com/dineEL0TaS
— ujwal sharma (@ujualsharma13) October 21, 2025
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