मैथिली ठाकुर जीतेंगी या नहीं? अलीनगर के चुनावी समीकरणों का विश्लेषण
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मशहूर लोक गायिका मैथिली ठाकुर का राजनीतिक पदार्पण बिहार चुनावों में नया रोमांच ला सकता है। भाजपा ने उन्हें अलीनगर विधानसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किया है, लेकिन क्या वे चुनाव जीत पाएंगी? आईये जानते हैं समीकरण क्या कहते हैं।

अलीनगर सीट पर मैथिली की जीत-हार को लेकर अटकलें तेज हैं। कुछ का मानना है कि अलीनगर राजद का गढ़ है। 2010 और 2015 में यहां से राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी विधायक बने थे। हालांकि, 2020 में वीआईपी के मिश्री लाल यादव जीते, लेकिन उनकी विधायकी छिन गई थी।

अलीनगर में लगभग 15-20% ब्राह्मण, 20-25% यादव और 25-30% मुस्लिम मतदाता हैं। ब्राह्मणों और मुस्लिमों का गठजोड़ और यादव वोटों का ध्रुवीकरण जीत में अहम भूमिका निभाता है। अगर मैथिली ब्राह्मण और मुस्लिम वोट हासिल कर लेती हैं, तो जीत संभव है। अन्यथा, राजद की मजबूत पकड़ कड़ी टक्कर देगी और मैथिली को हार का सामना करना पड़ सकता है, जो एनडीए के लिए झटका होगा।

भाजपा ने मैथिली ठाकुर पर दांव क्यों खेला? अलीनगर से भाजपा में आए मिश्री लाल यादव की विधायकी छिन गई थी, जिससे भाजपा की छवि थोड़ी धूमिल हुई। भाजपा को एक मजबूत और साफ छवि वाला उम्मीदवार चाहिए था। मैथिली बिहार में मशहूर हैं और एक नया युवा चेहरा हैं।

2020 के चुनाव में ब्राह्मण वोट राजद के साथ चला गया था और मिश्री लाल यादव विधायक बन गए थे। भाजपा इस बार अलीनगर से ब्राह्मण उम्मीदवार पर दांव खेलना चाहती थी। मैथिली ब्राह्मण हैं और लोकगायिका होने के नाते हर वर्ग में लोकप्रिय हैं।

मैथिली के सामने चुनौतियां भी हैं। पहली चुनौती राजद उम्मीदवार से है, क्योंकि राजद 2010 और 2015 में लगातार दो बार इस सीट से चुनाव जीत चुकी है। अलीनगर का मुस्लिम-यादव गठजोड़ राजद के पक्ष में जाता है।

दूसरी चुनौती आंतरिक विरोध है। अलीनगर के भाजपा नेताओं ने मैथिली को बाहरी बताते हुए विरोध किया है। नया चेहरा और राजनीतिक अनुभव की कमी भी एक चुनौती हो सकती है।

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