बिहार चुनाव 2025: प्रशांत किशोर नहीं लड़ेंगे चुनाव, तेजस्वी को चुनौती देने वाले PK क्यों बदले अपना फैसला?
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प्रशांत किशोर (पीके) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में खुद चुनाव न लड़ने का बड़ा ऐलान किया है। कुछ दिन पहले ही उन्होंने तेजस्वी यादव को राघोपुर से सीधी टक्कर देने की चुनौती दी थी।

11 अक्टूबर को राघोपुर में एक सभा के दौरान प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव पर हमला बोला था। उन्होंने कहा था कि अगर तेजस्वी राघोपुर छोड़कर कहीं और से चुनाव लड़ते हैं तो इसका मतलब है कि वे पहले ही हार मान चुके हैं। इस बयान के बाद चर्चा तेज हो गई थी कि पीके तेजस्वी के खिलाफ राघोपुर से चुनाव लड़ सकते हैं।

15 अक्टूबर को प्रशांत किशोर ने कहा कि पार्टी सदस्यों ने तय किया है कि उन्हें उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए। इसलिए वे खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। वे जनसुराज के संगठन को मजबूत करने और बाकी उम्मीदवारों के प्रचार पर ध्यान देंगे।

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि प्रशांत किशोर ने रणनीतिक कदम उठाया है। जनसुराज पार्टी का जनाधार अभी बन रहा है, और संगठन मजबूत हुए बिना खुद मैदान में उतरना जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए उन्होंने पहले पार्टी को एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

प्रशांत किशोर ने एनडीए पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता जानती है कि ये लोग सत्ता में हिस्सेदारी नहीं, बल्कि लूट में हिस्सेदारी के लिए लड़ रहे हैं। एनडीए और महागठबंधन दोनों की सोच एक जैसी है।

राघोपुर सीट का सामाजिक समीकरण हमेशा से दिलचस्प रहा है। यहां लगभग 30% यादव वोटर हैं, जो आरजेडी का पारंपरिक वोट बैंक हैं। इसके अलावा भूमिहार और पासवान वोटर्स भी यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

प्रशांत किशोर का चुनाव न लड़ने का फैसला एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है, न कि हार। वो जानते हैं कि 2025 में जनसुराज पहली बार मैदान में उतर रही है, और संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने में अभी वक्त लगेगा।

प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में अब एक सीरियस खिलाड़ी बन चुके हैं। वो भले ही इस बार मैदान में न हों, लेकिन उनकी रणनीति, बयानबाजी और संगठन दोनों ही एनडीए और महागठबंधन के लिए चुनौती बने हुए हैं।

तेजस्वी यादव को चुनौती देने के बाद प्रशांत किशोर का चुनाव न लड़ना पहली नजर में पीछे हटना लग सकता है, लेकिन असल में यह लंबी लड़ाई की तैयारी है। पीके जानते हैं कि बिहार की राजनीति में जीत सिर्फ सीट से नहीं, बल्कि सोच बदलने से मिलती है।

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