ट्रंप को नहीं मिला नोबेल शांति पुरस्कार, वेनेजुएला की मारिया मचाडो को मिला सम्मान
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नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने आठ युद्ध रुकवाने का दावा किया था, को यह पुरस्कार नहीं मिला है।

वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को यह सम्मान दिया गया है। ट्रंप पिछले कई दिनों से इस पुरस्कार को पाने की चाहत जाहिर कर रहे थे और इसे अमेरिका के सम्मान से जोड़ रहे थे।

यह दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान है, जो शांति, भाईचारा और दुनिया को बेहतर बनाने वालों को मिलता है। ट्रंप खुद को इस मामले में इतिहास पुरुष मानते हैं, लेकिन जूरी को ऐसा नहीं लगता।

मारिया मचाडो वेनेजुएला की नेता प्रतिपक्ष हैं। उन्होंने वहां लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने और तानाशाही से लोकतंत्र की ओर देश को ले जाने के लिए संघर्ष किया है। वह पेशे से इंजीनियर हैं।

2025 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन 2024 के सितंबर से शुरू हो गए थे। कोई भी बड़ा प्रोफेसर, पूर्व राष्ट्रपति, या शांति संगठन वाला शख्स किसी को नामित कर सकता है। इसके लिए एक ऑनलाइन फॉर्म भरना होता है, जिसमें बताना होता है कि वह शख्स शांति के लिए क्या कर रहा है। खुद को नामांकन देने की इजाजत नहीं है।

नामांकन की आखिरी तारीख 31 जनवरी होती है। इस बार 2025 के लिए 338 लोग या संगठन इस अवार्ड के लिए नामित हुए हैं, जिनमें 244 लोग और 94 संगठन हैं। इन सभी नामों को 50 साल तक गुप्त रखा जाएगा।

31 जनवरी के बाद नोबेल संस्थान सारे नामांकन चेक करता है। जो फर्जी या गलत होते हैं, हटा दिए जाते हैं। फिर फरवरी के मध्य में ये लिस्ट नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी को दे दी जाती है। इस कमेटी में पांच लोग होते हैं, जिन्हें नॉर्वे की संसद चुनती है।

कमेटी लिस्ट देखती है और एक छोटी लिस्ट बनाती है, जिसमें कुछ खास लोग या संगठन होते हैं, जिन्हें फिर और जांचना होता है। अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के हिसाब से शांति के लिए बड़ा योगदान चाहिए।

लिस्ट छोटी होने के बाद कमेटी सलाहकारों और विशेषज्ञों से मदद लेती है। ये लोग नामांकित लोगों पर रिपोर्ट बनाते हैं। अप्रैल तक पहली रिपोर्ट तैयार हो जाती है, जिसमें बताया जाता है कि फलां शख्स ने शांति के लिए क्या किया। कमेटी इन रिपोर्टों को पढ़ती है और जरूरत पड़ने पर और जानकारी मांगती है। ये सब गोपनीय होता है।

फरवरी से सितंबर तक कमेटी बार-बार मिलती है। वो हर नामांकित शख्स पर गहराई से बात करते हैं और धीरे-धीरे लिस्ट को और छोटा करते हैं। गर्मियों में और रिपोर्टें आती हैं, जिससे काम आसान हो जाता है। कमेटी का सचिवालय इस दौरान उनकी मदद करता है। ये सारी बातें गुप्त रहती हैं, ताकि कोई दबाव न डाल सके।

अक्टूबर की शुरुआत तक, यानी ज़्यादा से ज़्यादा 1 अक्टूबर तक, कमेटी वोटिंग करती है। बहुमत से फैसला होता है कि कौन जीतेगा। यह फैसला पक्का होता है, कोई अपील नहीं कर सकता। विजेता का नाम तब तक गुप्त रहता है, जब तक घोषणा न हो।

विजेता का नाम अक्टूबर के पहले पूरे हफ्ते के शुक्रवार को ओस्लो में बताया जाता है। इस बार 2025 में यह 10 अक्टूबर को सुबह 11 बजे (सीईएसटी) होगा। प्रेस कॉन्फ्रेंस होती है, जिसे पूरी दुनिया देखती है।

10 दिसंबर को ओस्लो सिटी हॉल में बड़ा समारोह होता है। विजेता नोबेल लेक्चर देता है, मेडल, डिप्लोमा और करीब 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (भारतीय रुपयों में अभी करीब 10 करोड़ रुपए) की राशि लेता है। ये सब टीवी पर दिखाया जाता है।

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