अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को मिसाइल देने के समझौते के बाद भारत ने एक ऐसा कदम उठाया है जिससे अमेरिका का बगराम एयरबेस पर दोबारा कब्जा करने का सपना टूट सकता है। आखिर इस एयरबेस के पीछे अमेरिका क्यों पड़ा हुआ है?
ट्रंप अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस दोबारा लेना चाहते हैं। उनकी इस ख्वाहिश के कारण भारत, चीन और रूस जैसी बड़ी शक्तियां एक मंच पर आ गई हैं।
ट्रंप की योजना का विरोध करते हुए रूस की राजधानी मॉस्को में एक बैठक हुई थी। रूस, चीन, भारत और मध्य एशियाई देशों ने बगराम में अमेरिकी मौजूदगी का विरोध किया। सभी देशों ने ट्रंप के इस प्लान को मध्य और दक्षिण एशिया में अस्थिरता लाने वाला बताया और अमेरिकी दबाव के सामने अफगानिस्तान को मदद का आश्वासन दिया।
ट्रंप को अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस क्यों चाहिए और क्यों इसका विरोध हो रहा है, यह हम आपको आगे बताएंगे। मॉस्को में हुई मीटिंग में पाकिस्तान भी मौजूद था और उसने भी साझा बयान पर दस्तखत किए।
पाकिस्तान कभी भी पलट सकता है, इसलिए ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ सामरिक डील में ऐसे प्रावधान जोड़े हैं जो पाकिस्तान को अपने मौजूदा रुख से पलटने का मौका देंगे और ट्रंप के बगराम प्लान को भी आगे बढ़ाएंगे। डील के प्रावधानों में एक यह भी है कि अमेरिका से मिलने वाली सामरिक मदद का इस्तेमाल अफगानिस्तान में स्थिरता कायम रखने के लिए भी किया जाएगा। इन हथियारों का इस्तेमाल अफगानिस्तान में छिपे आतंकियों को टारगेट करने के लिए भी किया जाएगा।
इसका मतलब है कि पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखकर ट्रंप अब अफगानिस्तान को धमकाना चाहते हैं ताकि बगराम एयरबेस उनकी मुट्ठी में आ सके।
बगराम को लेने के लिए ट्रंप इतने बेताब क्यों हैं? इसका पहला जवाब है, बगराम का क्षेत्रफल और उसकी क्षमता। बगराम एयरबेस अफगानिस्तान के परवान प्रांत में है और लगभग 5 हजार एकड़ में फैला है। इस एयरबेस पर C-130 HERCULES और C-17 GLOBEMASTER जैसे बड़े विमान तैनात किए जा सकते हैं। 3 बड़े हैंगर हैं, जहां चिनूक और अपाचे जैसे अटैक और सप्लाई हेलीकॉप्टर तैनात किए जा सकते हैं। बगराम एयरबेस का रनवे 11800 फीट लंबा है, जिसकी वजह से एक के बाद एक फाइटर जेट यहां से उड़ान भर सकते हैं। इस बेस पर लगभग 40 हजार सैनिक रह सकते हैं। यानी अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस किसी किले से कम नहीं है।
बगराम की लोकेशन भी महत्वपूर्ण है। अमेरिका का दावा है कि अफगानिस्तान में आतंक के खिलाफ युद्ध के दौरान अमेरिका ने बगराम एयरबेस को विकसित किया था और इसीलिए बगराम उसे वापस मिलना चाहिए।
बगराम एयरबेस का निर्माण 1957 में सोवियत संघ ने किया था। वर्ष 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया, तब इस एयरबेस को अपग्रेड किया गया था। वर्ष 2006 में जब नाटो की फौज इस बेस पर पहुंची तो यहां सैनिकों के रहने के लिए तंबू और पिज्जा जैसी फास्ट फूड बेचने के लिए कुछ दुकानें बनाई गई थीं।
बगराम के जरिए अमेरिका और नाटो क्या हासिल कर सकते हैं? बगराम एयरबेस से चीन के परमाणु संयंत्र सिर्फ 800 किलोमीटर दूर हैं। यानी बगराम के जरिए चीन के परमाणु संयंत्रों की निगरानी की जा सकती है। बगराम एयरबेस किर्गिस्तान और कजाकिस्तान जैसे मध्य एशियाई देशों के भी नजदीक है। इसके साथ ही बगराम से ईरान के बॉर्डर की दूरी भी सिर्फ 650 किलोमीटर है। यानी बगराम के जरिए ट्रंप ईरान पर भी दबाव बनाकर रख सकते हैं।
ट्रंप का प्लान बगराम अमेरिका की हर सामरिक जरूरत को पूरा कर सकता है। तालिबान ने संकेत दे दिया है कि उसे बगराम में अमेरिकी मौजूदगी कबूल नहीं है।
विदेश मंत्री का सख्त बयान और भारत समेत रूस जैसे देशों का विरोध इस बात का संकेत है कि ट्रंप चाहे जितनी ताकत दिखा लें या पाकिस्तान के जरिए डराने की कोशिश करें, उनका बगराम वाला ख्वाब फिलहाल पूरा होता नहीं दिख रहा है।
#DNAWithRahulSinha | तालिबान के एयरबेस पर भारत Vs अमेरिका, ट्रंप का कब्जा ..हिंदुस्तान नहीं होने देगा!
— Zee News (@ZeeNews) October 8, 2025
बगराम में ट्रंप को कौनसा खजाना दिखा है ?#DNA #DonaldTrump #UnitedStates #Taliban #Airbase @RahulSinhaTV pic.twitter.com/pcNKiMjMkz
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