पुणे में दरगाह के नीचे सुरंग मिलने से विवाद, मंदिर होने का दावा!
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पुणे के मंचर इलाके में एक दरगाह के नीचे सुरंग मिलने से विवाद खड़ा हो गया है। हिंदू और मुस्लिम पक्ष आमने-सामने आ गए हैं, हिंदू संगठनों का दावा है कि यह दरगाह नहीं, बल्कि एक मंदिर है।

दरगाह के मरम्मत कार्य के दौरान दो खंभे गिरने से नीचे एक प्राचीन देवली (छोटा हिंदू मंदिर) का ढांचा सामने आया है। हिंदू संगठनों का कहना है कि उनके बुजुर्ग पहले से ही इस स्थान पर मंदिर होने की बात करते थे।

वहीं, दरगाह ट्रस्ट के सदस्य राजू इनामदार का कहना है कि यह सुरंग नहीं, बल्कि सूफी संत मोहम्मद मदनी साहब की कब्र है। उन्होंने कहा कि यह 400 साल पुरानी दरगाह है और इसे सुरंग बताकर विवाद खड़ा किया जा रहा है। इनामदार ने यह भी कहा कि यह दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है और स्थानीय हिंदू यहां मन्नत मांगने आते हैं।

विवाद तब शुरू हुआ जब हिंदू संगठनों ने मलबा हटाने की मांग की, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इसे अपनी आस्था का प्रश्न बताकर इनकार कर दिया। इसके बाद प्रशासन ने इलाके में धारा 144 लगा दी है।

हिंदू पक्ष का दावा है कि यह पूरा मंचर क्षेत्र 2000 साल पुराने सातवाहन काल का है और दरगाह के नीचे 100% हिंदू मंदिर का ढांचा है। उन्होंने वक्फ बोर्ड पर सैकड़ों एकड़ जमीन पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है और कोर्ट में याचिका दायर कर जांच की मांग करने की बात कही है।

एनडीटीवी की पड़ताल में सामने आया है कि मंचर का यह प्राचीन कस्बा धार्मिक विवाद की वजह से सुर्खियों में है। यह विवाद सिर्फ धार्मिक भावनाओं का टकराव नहीं है, बल्कि इतिहास, परंपरा और सामाजिक सौहार्द की जटिल परतों से जुड़ा हुआ है।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस दरगाह पर चादर चढ़ाने का अधिकार गांव के महाजन उपनाम वाले एक हिंदू परिवार के पास है। यह परंपरा हिंदू-मुस्लिम एकता की एक मिसाल है, जो आज के विवाद में सोचने पर मजबूर करती है।

नगर पंचायत ने हाल ही में दरगाह के सौंदर्यीकरण के लिए 70 लाख रुपये मंजूर किए थे। इसी काम के दौरान दीवार का बड़ा हिस्सा गिर गया, जिसके बाद हिंदू संगठनों ने मंदिर होने का दावा किया।

मंचर निजामशाही काल में एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। यहां के शिलालेखों में मणीचर नाम से गांव का उल्लेख है, जिसमें विश्वकर्मा द्वारा बसाए गए नगर का वर्णन है।

मंचर में पहले भी धार्मिक तनाव के मामले सामने आए हैं, जिसके कारण इसे संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है।

फिलहाल इस मामले में आगे की सही दिशा यह है कि विवाद को अदालत पर छोड़कर समाज को शांत रखना जरूरी है। दरगाह या मंदिर, इसका फैसला अदालत करेगी।

मंचर दरगाह विवाद केवल धार्मिक संघर्ष नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा इतिहास और साझी परंपराएं हैं। सदियों पुराने सौहार्द को बचाना प्रशासन और समाज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।

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