नेपाल में नई सरकार: लोकतंत्र की लहर या गहराता संकट?
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नेपाल में नई अंतरिम सरकार का गठन हो चुका है, जिसका नेतृत्व सुशीला कार्की कर रही हैं. इस सरकार के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं, खासकर Gen Z के विरोध प्रदर्शन के बाद. क्या यह नई सरकार नेपाल में लोकतंत्र की नई लहर लाएगी या राजनीतिक संकट और गहराएगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा.

नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक मंदी और भ्रष्टाचार है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लोगों को अंतरिम सरकार से काफी उम्मीदें हैं. यदि यह सरकार सफल रही तो नेपाल में लोकतंत्र की नई लहर आएगी और भविष्य की सरकारों पर भी इसका असर दिखाई देगा. लेकिन अगर यह सरकार असफल रही तो देश आर्थिक मंदी की ओर बढ़ सकता है. यह पहली बार है जब नेपाल में कोई महिला प्रधानमंत्री बनने जा रही है.

नेपाल के इतिहास में 2008 के बाद कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी है. पिछले 17 सालों में 13 बार अलग-अलग सरकारें बनीं, लेकिन कोई भी पार्टी सरकार में 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. हालिया हिंसा में 51 लोगों की मौत हो चुकी है.

प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली का घर और उनकी पार्टी सीपीएन-यूएमएल का हेडक्वार्टर जला दिया था. भ्रष्टाचार की जांच के चलते ओली का राजनीतिक सफर खतरे में है. वहीं, नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा का राजनीतिक सफर भी खत्म होता दिख रहा है. उनके आवास पर हमले ने उनकी छवि को धूमिल कर दिया है. पुष्प कमल दाहाल (प्रचंड) की सीपीएन-एमसी को युवाओं का साथ खोना पड़ सकता है क्योंकि युवाओं ने इस आंदोलन में उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नेपाल की नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश में आर्थिक मंदी है. देश को आर्थिक संकट से निकालना चुनौतीपूर्ण होगा. युवाओं के पास रोजगार नहीं है और अंतरिम सरकार के पास सीमित अधिकार हैं, जिससे संवैधानिक उलझनें पैदा हो सकती हैं. अगले चुनाव छह महीने में कराने होंगे, वहीं इस बीच आंदोलन होने का डर भी बना हुआ है.

हालिया विरोध प्रदर्शन में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है. पूर्व सरकार के मंत्रियों की अवैध संपत्ति की जांच और नई सरकार को स्वतंत्र जांच करने का अधिकार देना एक चुनौती होगी. फिलहाल देश में सेना तैनात है, लेकिन सेना के हटने के बाद सुरक्षा व्यवस्था बहाल करना सरकार के लिए एक बड़ा काम होगा. इसके अलावा देश की राजनीति में क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखना भी एक नई परेशानी बनकर सामने आ सकती है.

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