वाराणसी गुरुवार को वैश्विक रणनीतिक केंद्र बन गया, जब मॉरीशस के प्रधानमंत्री ने डिएगो गार्सिया सहित चागोस द्वीपसमूह पर अपना पक्ष रखा. अमेरिका और ब्रिटेन से जुड़ा यह विवाद मॉरीशस और भारत दोनों के लिए चिंता का विषय रहा है.
अमेरिका के टैरिफ को लेकर भारत से विवाद के बीच, अमेरिका के अवैध कब्जे को लेकर काशी में उठे सवालों से अमेरिकी रणनीतिकार बेचैन होंगे. चीन की भी इस पर नजर है. भारत को रणनीतिक बढ़त मिलने पर समुद्र में ही नहीं, दुश्मन देशों पर भी बड़ी बढ़त मिलेगी.
मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ. नवीनचंद्र रामगुलाम ने भारत के साथ रणनीतिक संबंधों पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि उन्हें भारत से तकनीकी सहयोग और निगरानी क्षमता की आवश्यकता है.
हमें निगरानी की आवश्यकता है. हमारे पास निगरानी की क्षमता नहीं है. हम डिएगो गार्सिया सहित चागोस का दौरा करके वहां अपने देश का झंडा भी लगाना चाहते हैं. हम एक जहाज चाहते थे. ब्रिटिश ने हमें पेशकश की, लेकिन हमने कहा कि हम भारत से एक लेना पसंद करेंगे क्योंकि प्रतीकात्मक रूप से यह बेहतर होगा.
डिएगो गार्सिया सहित चागोस भारत की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो मॉरीशस का हिस्सा होने के बावजूद ब्रिटेन और अमेरिका के कब्जे में है.
मॉरीशस का दावा है कि ब्रिटेन को चागोस द्वीपसमूह लौटाना है. इसे ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (BIOT) के रूप में यूके ने 1965 में मॉरीशस से अलग किया था. इस द्वीपसमूह के सबसे बड़े द्वीप, डिएगो गार्सिया पर अमेरिका का एक महत्वपूर्ण सैन्य अड्डा है.
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने 2019 में मॉरीशस के दावे को सही ठहराया था. मई 2025 में ब्रिटेन और मॉरीशस ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसमें डिएगो गार्सिया को छोड़कर बाकी सभी द्वीपों पर मॉरीशस की संप्रभुता स्थापित हो जाएगी.
चागोस द्वीपसमूह 1814 से ब्रिटिश नियंत्रण में था. 1965 में मॉरीशस को स्वतंत्रता मिलने से पहले, ब्रिटिश सरकार ने इस द्वीपसमूह को मॉरीशस से अलग कर दिया और इसे ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (BIOT) घोषित किया. 1966 में ब्रिटेन ने डिएगो गार्सिया द्वीप पर संयुक्त राज्य अमेरिका को एक सैन्य अड्डा बनाने की अनुमति दी. इस कारण से, हजारों चागोसियन लोगों को उनके घरों से निकाल दिया गया था. इन द्वीपों के मूल निवासी, चागोसियन, 18वीं शताब्दी के अफ्रीकी दासों के वंशज माने जाते हैं, जिन्हें उनके घरों से जबरन बेदखल किया गया था और वे वापस लौटने के अधिकार के लिए लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे.
2019 में, ICJ ने मॉरीशस के विउपनिवेशीकरण को अवैध माना और ब्रिटेन को जल्द से जल्द चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस को वापस करने की सिफारिश की थी. अक्टूबर 2024 में एक प्रारंभिक सहमति बनी थी, और मई 2025 में ब्रिटेन और मॉरीशस ने डिएगो गार्सिया पर सैन्य अड्डे को छोड़कर, शेष द्वीपसमूह की संप्रभुता मॉरीशस को हस्तांतरित करने के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे.
भारत ने इस समझौते का स्वागत किया है, मॉरीशस के संप्रभुता के दावे का समर्थन किया है, और इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता को मजबूत करने के लिए काम करने की अपनी प्रतिबद्धता जताई है.
*#WATCH | Varanasi, UP: Mauritius PM Dr. Navinchandra Ramgoolam says, ...The issues that we discussed, including the double taxation avoidance treaty, which we think can be improved, but we ll see how things go. Our police do come to India for training, but we want to look at the… pic.twitter.com/NE7v7Adf0X
— ANI (@ANI) September 11, 2025
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