राजशाही से संविधान तक: नेपाल के अशांत इतिहास में हिंसा के 5 मोड़
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नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के विरोध में युवाओं का आक्रोश सड़कों पर उतर आया है। हजारों छात्र सरकार के इस कदम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, उनका आरोप है कि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन है।

विरोध प्रदर्शनों में अब तक 16 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 100 से अधिक घायल हैं। राजधानी काठमांडू के कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है और प्रदर्शनकारियों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए हैं।

हालांकि, नेपाल में हिंसा का यह कोई नया मामला नहीं है। पिछले एक दशक में ही ऐसे कई अवसर आए हैं जब यह शांत देश अशांति से हिल उठा।

नया संविधान: विवाद और हिंसा

सितंबर 2015 में, नेपाल ने बहुप्रतीक्षित लोकतांत्रिक संविधान को अपनाया। हालांकि, मधेसी और थारू समुदायों ने इस संविधान को भेदभावपूर्ण बताया, खासकर प्रतिनिधित्व और नागरिकता के मुद्दों पर। इसके विरोध में भारत-नेपाल सीमा पर नाकेबंदी की गई, जिससे देश में ईंधन, दवाइयों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई। इस आंदोलन में 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जिससे यह एक मानवीय संकट में बदल गया।

टीकापुर नरसंहार

उसी वर्ष, कैलाली जिले के टीकापुर में थारू समुदाय और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें 6 पुलिसकर्मी और एक दो वर्षीय बच्चे की जान चली गई। इस घटना ने नेपाल की जातीय राजनीति में गहरी दरार उजागर कर दी।

राजशाही की वापसी की मांग

2008 में राजशाही के अंत के बाद भी, नेपाल में राजतंत्र समर्थक विचार पूरी तरह से समाप्त नहीं हुए हैं। नवंबर 2023 में, हजारों लोग सड़कों पर उतर आए, जिन्होंने राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग की। इन प्रदर्शनों को नागरिक अभियान का समर्थन मिला, लेकिन पुलिस ने 200 से अधिक प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया। यह विरोध प्रदर्शन अप्रैल 2024 तक जारी रहा।

राजशाही बनाम लोकतंत्र आंदोलन

मार्च 2025 में, काठमांडू में एक ही दिन दो अलग-अलग प्रदर्शन हुए: एक राजशाही के समर्थन में और दूसरा लोकतंत्र के समर्थन में। तनाव बढ़ने पर कर्फ्यू लगाया गया और सेना को तैनात करना पड़ा। इन प्रदर्शनों ने नेपाल में बढ़ते राजनीतिक ध्रुवीकरण को उजागर किया।

शिक्षक संघ की देशव्यापी हड़ताल

नेपाल शिक्षक महासंघ (NTF) ने स्कूल शिक्षा विधेयक (School Education Bill) के विरोध में देशभर में शिक्षकों की हड़ताल का आह्वान किया। उनकी मुख्य मांगें नौकरी की सुरक्षा, समान वेतन और शिक्षक प्रबंधन के अधिकार स्थानीय सरकारों को न देना थीं। आंदोलन के दौरान उग्र प्रदर्शन हुए, जिसके परिणामस्वरूप एक मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और वार्षिक परीक्षाएं स्थगित कर दी गईं। अंततः सरकार और शिक्षक संघ के बीच 9 सूत्रीय समझौता हुआ और आंदोलन समाप्त हो गया।

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