बिहार की राजनीति में एक बार फिर कुशवाहा वोट बैंक चर्चा का विषय बना हुआ है. यह समुदाय प्रदेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता रहा है, और इसीलिए राजद नेता तेजस्वी यादव और RLSP प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा दोनों इस पर अपनी-अपनी पकड़ मजबूत करने में लगे हैं.
तेजस्वी यादव लगातार सामाजिक समीकरणों को साधने में जुटे हैं. उन्होंने हाल ही में कुशवाहा समाज से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं से संवाद तेज किया है, ताकि राजद का समर्थन आधार और व्यापक हो सके.
दूसरी ओर, उपेंद्र कुशवाहा खुद को कुशवाहा समाज का असली नेता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं. वह अलग-अलग जिलों में कार्यक्रम कर समुदाय को यह संदेश देने की रणनीति अपना रहे हैं कि उनका सियासी भविष्य सुरक्षित रखने के लिए वे ही सबसे मजबूत विकल्प हैं.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आगामी चुनावों में कुशवाहा वोट बैंक का झुकाव किस ओर होगा, यह कई सीटों पर जीत-हार तय कर सकता है. यही कारण है कि दोनों नेताओं की नजर इस वोट बैंक पर टिकी है.
तेजस्वी यादव ने सासाराम में बाबू जगदेव प्रसाद की शहादत दिवस रैली में कुशवाहा वोट बैंक को साधने की कोशिश की. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस रैली का आयोजन विशेष रूप से उसी समुदाय को आकर्षित करने के उद्देश्य से किया गया था.
RJD नेता तेजस्वी यादव ने पटना में पार्टी विधायकों को निर्देश दिए हैं कि वे चुनाव पूर्व अपनी-अपनी विधानसभा क्षेत्रों में जाकर वोटर लिस्ट की गड़बड़ियों का समाधान करें, क्योंकि ऐसी त्रुटियाँ चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं.
उपेंद्र कुशवाहा ने परिसीमन सुधार की रैली की घोषणा की. उनका दावा है कि बिहार को न्यायोचित संसदीय प्रतिनिधित्व नहीं मिला और राज्य को कम से कम 20 लोकसभा सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. यह मुद्दा आगामी चुनावों में बड़ा राजनीतिक दांव साबित हो सकता है.
बिहार में कुशवाहा (कोयरी) समाज का हिस्सा लगभग 6-7% है, जो 35-40 विधानसभा सीटों पर निर्णायक प्रभाव रखता है. एनडीए, महागठबंधन और उपेंद्र जैसे क्षेत्रीय दल सभी इस वोट बैंक को साधने में सक्रिय हैं. कुशवाहा (कोयरी) समुदाय की मौजूदगी 35-40 विधानसभा सीटों पर निर्णायक होती है, साथ ही कई अन्य सीटों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव भी होता है. इस समाज की ऐतिहासिक झुकाव बदलने की क्षमता बिहार की सत्ता के समीकरण पर भारी असर डाल सकती है, और उसे साइलेंट गेमचेंजर कहा जाता रहा है.
हाल में संपन्न वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी, तेजस्वी यादव सहित विपक्ष के अन्य नेता शामिल रहे, जो चुनावी कैंपेन का केंद्रशक्ति था. कुशवाहा वोट बैक पर अब तक का माहौल स्पष्ट नहीं है - एनडीए, महागठबंधन और उपेंद्र खुद सभी इसमें अपनी पकड़ मजबूत करने में लगे हैं. विधानसभा चुनावों में सीट शेयरिंग की बातचीत में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLM भी माँग कर रही है, और सीट शेयरिंग पर NDA में कड़ा सौदेबाजी चल रही है.
बिहार की 2025 की राजनीति में कुशवाहा वोट बैंक एक निर्णायक तत्व है. तेजस्वी यादव सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्ग के एजेंडे के ज़रिए इसकी ओर आकर्षण बढ़ा रहे हैं, जबकि उपेंद्र कुशवाहा सीमांकन सुधार, गठबंधन सहयोग और नेतृत्व पर सवाल उठाकर अपनी वैधता मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.
जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आएगा, यह देखा जाना बाकी है कि यह वोट बैंक किस तरफ झुकता है - एनडीए या INDIA? इससे कई सीटों पर सत्ता का असली रंग तय हो सकता है.
*बिहार लेनिन जगदेव बाबू जी के शहादत दिवस पर आज सासाराम में आयोजित राजनीतिक एकजुटता रैली में उमड़े जनसैलाब से संवाद किया।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) September 5, 2025
बिहार बदलाव को लेकर बेचैन है। 20 वर्षों की डबल इंजन एनडीए सरकार ने बिहार को गरीबी, बेरोजगारी, पलायन, अशिक्षा, अपराध और पिछड़ेपन का केंद्र बना दिया है। हर… pic.twitter.com/fMosr3plrF
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