टोपी विवाद: नीतीश कुमार ने मदरसा समारोह में टोपी पहनने से क्यों किया इनकार?
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना में राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के शताब्दी समारोह में उस समय विवादों में घिर गए, जब उन्होंने मंच पर उन्हें पहनाई जा रही टोपी पहनने से मना कर दिया।

अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जामा खान उन्हें टोपी पहनाना चाह रहे थे, लेकिन नीतीश कुमार ने टोपी खुद पहनने के बजाय उसे वापस लेकर जामा खान के सिर पर रख दी। यह वाकया बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के 100 साल पूरे होने के जश्न के दौरान हुआ।

यह घटना कैमरे में कैद हो गई और सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई, जिसके बाद विपक्षी दलों ने नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। राजद प्रवक्ता मृणाल तिवारी ने इस व्यवहार को अनुचित बताया है।

हालांकि, नीतीश कुमार पहले इफ्तार पार्टियों और इस्लामिक आयोजनों में पारंपरिक टोपी पहने हुए दिखाई देते रहे हैं, लेकिन हाल के कुछ कार्यक्रमों में उन्होंने ऐसा करने से परहेज किया है। मार्च 2025 में मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित इफ्तार पार्टी में भी नीतीश कुमार टोपी की जगह गमछा डाले नजर आए थे।

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और मुस्लिम समुदाय राज्य की आबादी का 18% है, जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। नीतीश कुमार के टोपी पहनने से इनकार करने की घटना को इसी चुनावी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है।

नीतीश कुमार को अक्सर पलटू चाचा कहा जाता है, क्योंकि वे कई बार राजनीतिक गठबंधन बदल चुके हैं। इस बार का टोपी न पहनने का फैसला विपक्ष के लिए एक नया हथियार बन गया है, खासकर चुनावी मौसम में।

पिछले साल नीतीश कुमार ने फिर से एनडीए का दामन थाम लिया था। इसके बाद से मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग में नाराजगी देखी जा रही है, खासकर वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने वाले बिल के समर्थन के बाद कई मुस्लिम नेता जेडीयू से इस्तीफा भी दे चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को आंशिक रूप से रोक भी दिया है।

जेडीयू को पहले ही मुस्लिम वोट बैंक से दूरी का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी द्वारा संसद में पारित वक्फ कानून का समर्थन करने के बाद कम से कम पांच मुस्लिम नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी। इसके अलावा, चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर भी मुस्लिम बहुल इलाकों में मताधिकार छिनने का डर जताया जा रहा है।

नीतीश कुमार के इस टोपी-प्रकरण ने बिहार की सियासत में नई बहस छेड़ दी है। विपक्ष इसे धर्मनिरपेक्षता से दूरी बताकर चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश में है, जबकि सत्तापक्ष अभी इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दे रहा। क्या यह सिर्फ एक संयोग था या सोच-समझकर उठाया गया कदम? चुनावी माहौल में इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में और भी अहम हो जाएगा।

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