दोषी वह पेड़ नहीं, हम हैं... कंक्रीट में कैद होकर घुट रहा पेड़ों का दम
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दुनिया को जीवन देने वाले पेड़ अब खुद के लिए सांसें मांग रहे हैं। अपनी खोखली होती जड़ों को सहारा देने की मूक गुहार लगा रहे हैं। गुरुवार को कालकाजी इलाके में सड़क किनारे लगा एक विशालकाय नीम का पेड़ गिर गया। इस हादसे में बाइक सवार 50 वर्षीय शख्स की मौत हो गई और उनकी 22 वर्षीय बेटी गंभीर रूप से घायल हो गई। उसी दिन दिल्ली में भारी बारिश और जलभराव से 25 से ज्यादा पेड़ उखड़ गए।

इस दर्दनाक घटना ने कंक्रीट की कैद में हांफते पेड़ों के मुद्दे को उजागर किया है। अक्सर देखा जाता है कि फुटपाथ और सड़क किनारे बने पेड़ों को कंक्रीट से इस कदर घेर दिया जाता है कि उनकी जड़ों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है। इससे जड़ें कमजोर हो जाती हैं और विशाल पेड़ों का बोझ नहीं झेल पातीं। कमजोर जड़ों पर खड़े ये पेड़ बारिश या आंधी में खुद को संभाल नहीं पाते और जान-माल के लिए खतरा बन जाते हैं। मई में भी तेज आंधी में दिल्ली में सैकड़ों पेड़ उखड़ गए थे या क्षतिग्रस्त हो गए थे। एक अनुमान के मुताबिक, अकेले मई में ही 10 हजार से ज्यादा पेड़ टूटे या क्षतिग्रस्त हो गए थे।

पेड़ों की रक्षा के लिए नियम-कानून बरसों पहले से मौजूद हैं। दिल्ली में पेड़ों की सुरक्षा के लिए 31 साल पहले दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 बनाया गया था। इसका मकसद पेड़ों को गैरकानूनी तरीके से काटने, हटाने से रोकना और नुकसान से बचाना है। नियम है कि पेड़ों के इर्दगिर्द एक मीटर तक का क्षेत्र खुला रखा जाना चाहिए ताकि उन्हें पर्याप्त पानी और पोषण मिल सके। बिना इजाजत पेड़ काटने या हटाने पर जेल और जुर्माने का भी नियम है।

1994 में बने DPTA कानून में पेड़ों की गैरकानूनी कटाई, छंटाई या कंक्रीट से चोक करने जैसे मामलों में सख्त सजा का प्रावधान है। इस कानून की धारा 8 में कहा गया है कि बिना इजाजत पेड़ हटाने पर एक साल की कैद या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों हो सकेंगे। काटे जाने वाले हर पेड़ के बदले 10 पौधे लगाने होंगे। इसी कानून की वजह से दिल्ली में हरियाली बढ़ी है। 1994 में दिल्ली में 22 वर्ग किमी का हरित क्षेत्र था, जो 2021 में बढ़कर 342 वर्ग किमी हो गया।

एनजीटी ने 2013 के आदेश में अधिकारियों को पेड़ों के चारों ओर एक मीटर के दायरे से कंक्रीट हटाने का निर्देश दिया था, लेकिन एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इसका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाया है। जून 2019 में भी एनजीटी ने सख्त निर्देश जारी किए थे कि पेड़ों पर किसी तरह के साइन बोर्ड, नेम प्लेट, विज्ञापन या बिजली के तार आदि नहीं लगाए जा सकते।

मई 2024 में दिल्ली नगर निगम ने 13 हजार से ज्यादा ऐसी जगहों की पहचान की थी, जहां पेड़ों की जड़ों पर कंक्रीट जमा हुआ था। क्रंक्रीट हटाने का अभियान भी चलाया गया था, लेकिन अब भी तमाम जगहें ऐसी हैं जहां पेड़ कंक्रीट की कैद में नजर आ जाएंगे।

पर्यावरणविदों का कहना है कि पेड़ों के कमजोर होकर गिरने के पीछे बड़ा कारण उनके इर्द-गिर्द कंक्रीट का इस्तेमाल किया जाना है। फुटपाथ और सड़क के बीच लगे पेड़ों को नीचे से कंक्रीट से सील कर दिया जाता है। ऐसा साफ-सफाई और टिकाऊपन बढ़ाने के लिए किया जाता है, लेकिन इससे पेड़ों को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिल पाते और वे समय के साथ कमजोर हो जाते हैं।

सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार अलेडिया ने कहा कि पेड़ों के बार-बार उखड़ने के पीछे मुख्य कारण इनके इर्द-गिर्द कंक्रीट का इस्तेमाल है। ग्रीनपीस इंडिया के जलवायु एवं ऊर्जा अभियानकर्ता आकिज फारूक ने कहा कि पेड़ों को काटे बिना, उनके इर्द-गिर्द कंक्रीट भरकर उन्हें धीरे-धीरे नष्ट किया जा रहा है।

दिल्ली के रिज एरिया में 2024 में एक हजार से अधिक पेड़ गैरकानूनी तरीके से काट दिए गए थे। सुप्रीम कोर्ट में एमसीडी ने बताया था कि 2019, 2020 और 2021 में सभी श्रेणियों के 1,33,117 पेड़ काटे या हटाए गए थे। मतलब हर साल औसतन 44 हजार से ज्यादा पेड़ और हर घंटे पांच पेड़ शहर में काटे गए।

सुप्रीम कोर्ट के कहने पर दिसंबर 2023 में एमसीडी ने राजधानी में पहली बार पेड़ों की जनगणना का काम शुरू किया था। अप्रैल 2024 तक 12 जोन में करीब दो लाख पेड़ों की गिनती कर ली गई थी। देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (FRI) ने मार्च 2025 में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि दिल्ली में ग्रीन कवर को 33 फीसदी तक बढ़ाने में कम से कम चार साल का वक्त लग सकता है।

गुरुवार की घटना के बाद मुख्यमंत्री ने सड़कों पर लगे खतरनाक पेड़ों की पहचान करने और जरूरी होने पर उन्हें हटाने के निर्देश दिए हैं।

भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने 1901 में ही वैज्ञानिक रूप से साबित कर दिया था कि पेड़ों में भी जान होती है, वह भी मनुष्यों और जानवरों की तरह दर्द, खुशी, थकान आदि का अनुभव करते हैं।

पेड़ हमारे लिए जरूरी ऑक्सीजन पैदा करते हैं और जानलेवा कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखते हैं। एक बड़ा बरगद का पेड़ एक दिन में 1,000 लीटर से ज़्यादा ऑक्सीजन पैदा कर सकता है। एक परिपक्व पेड़ एक साल में लगभग 10 से 20 किलो कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है। एक पेड़ अपने पूरे जीवनकाल में लगभग एक टन कार्बन डाइऑक्साइड सोख सकता है।

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