फतेहपुर मकबरा विवाद: सपा से मुस्लिम समाज नाराज, कहा - वोट के सब साथी...विपद में कोई नहीं आया
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फतेहपुर, उत्तर प्रदेश में 200 साल पुराने मकबरे को लेकर सोमवार को भारी बवाल हुआ। हिंदू पक्ष ने उसे मंदिर बताकर भगवा झंडा फहरा दिया, जिसके बाद मुस्लिम पक्ष ने पत्थरबाजी शुरू कर दी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रण में किया। इस घटना के बाद मुस्लिम समुदाय में आक्रोश है, और उनकी नाराजगी समाजवादी पार्टी (सपा) से है, जिसे वे मुस्लिमों का हिमायती मानते हैं।

स्थानीय मुस्लिमों में सपा के प्रति इतना गुस्सा है कि उन्होंने पार्टी का बहिष्कार कर दिया है। उनका कहना है कि इस पूरे मामले में सपा बराबर की दोषी है। उन्होंने सांसद, विधायक और चेयरमैन के पदों पर सपा को जिताया, लेकिन विवाद के समय कोई भी सपा नेता उनका साथ देने नहीं आया।

मुस्लिम समाज के लोगों का कहना है कि गंगा और यमुना के बीच बसे फतेहपुर जिले में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच गंगा-जमुनी तहजीब है, लेकिन कुछ लोग इसे खत्म करना चाहते हैं। नाराज मुसलमानों ने सोशल मीडिया पर सामूहिक रूप से समाजवादी पार्टी का बहिष्कार किया है।

उन्होंने इलाके के विधायक चंद्रप्रकाश लोधी, जो समाजवादी पार्टी के नेता हैं, पर आरोप लगाया कि उन्होंने मकबरे पर हुए हमले पर कोई बात नहीं की। स्थानीय मुस्लिम समुदाय खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। उन्होंने समाजवादी पार्टी के कई बड़े नेताओं, जैसे कानपुर के विधायक और समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन किसी भी समाजवादी नेता ने उनकी मदद नहीं की।

उनका कहना है कि वे पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को वोट देते आए हैं और उसका समर्थन किया है, लेकिन अब वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। फतेहपुर के मुस्लिम युवाओं का दावा है कि जब उपद्रवी सदियों पुराने मकबरे को तोड़ने के लिए इकट्ठा हुए, तो उन्होंने फतेहपुर से जीते हुए सपा जनप्रतिनिधियों को फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

कांग्रेस के होने से मुस्लिम मतों को लेकर सपा पर दबाव

कांग्रेस पार्टी अखिलेश यादव की राह में एक बड़ी बाधा है। सपा ने 2017 में सत्ता में रहते हुए मुस्लिम मतों को विभाजित होने से बचाने के लिए ही कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया था। इस गठबंधन के तहत सपा ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस पार्टी 114 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। कुछ सीटों पर दोनों दलों का दोस्ताना संघर्ष भी देखने को मिला था।

हालांकि, जनता ने दोनों दलों को करारा जवाब दिया। सपा अपने स्थापना काल के न्यूनतम 47 सीटों पर आ गई, वहीं कांग्रेस पार्टी भी उत्तर प्रदेश में अपनी न्यूनतम 7 सीटों पर सिमट गई।

आगामी विधानसभा चुनाव 2027 के मद्देनजर सपा को पता है कि कांग्रेस पार्टी से गठबंधन आसान नहीं होगा। कांग्रेस पार्टी अपनी ब्लैकमेल नीति का उपयोग करते हुए अपनी क्षमता से कई गुनी सीटों की मांग करेगी। अखिलेश यादव के समक्ष 2017 में कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन का भी अनुभव है।

ऐसे में अखिलेश यादव 2027 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी से अलग होकर छोटे दलों के सहयोग से ही चुनावी वैतरणी पार करने का प्रयास करेंगे। उस स्थिति में अखिलेश यादव को मुस्लिम मतों की बड़े पैमाने पर जरूरत पड़ेगी। इस स्थिति से निपटने के लिए अखिलेश यादव अभी से मुस्लिम वर्ग को अपने पाले में करने का प्रयास कर रहे हैं।

अखिलेश यादव को यह भी पता है कि मायावती और अन्य छोटे दल भी मुस्लिम मतों को आकर्षित करने के लिए अन्य हथकंडे अपनाएंगे। अखिलेश यादव के इस कदम के बाद अब अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल कांग्रेस पार्टी और बसपा भी इसी तरह के कई कदम उठाएंगी। इन तमाम धर्मनिर्पक्ष दलों की सबसे बड़ी समस्या मुस्लिम मतदाताओं के बदलते रुख का कारण है।

फतेहपुर मकबरा मामले के बाद अब साफ हो गया है कि मुसलमानों के साथ न कांग्रेस ने न्याय किया, न समाजवादी पार्टी ने। दोनों ने हमेशा मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन उनके हक, तरक्की और सुरक्षा की कभी फिक्र नहीं की।

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