रूस से तेल खरीद पर भारत का कड़ा रुख, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति हुए हैरान!
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भारतीय तेल रिफाइनरियां अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखे हुए हैं। भारतीय कंपनियों ने रूसी कंपनियों से तेल का आयात पहले की तरह जारी रखा है।

देश की प्रमुख तेल कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल, मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकैमिकल्स लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, अभी भी रूस से तेल आयात कर रही हैं।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने पहले दावा किया था कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है, लेकिन भारतीय कंपनियों ने इस बात का खंडन किया है। सरकार ने रूसी तेल के आयात को जारी रखकर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति को चौंका दिया है।

भारत का रूसी तेल खरीदने का निर्णय कीमत, कच्चे तेल की गुणवत्ता, स्टॉक, लॉजिस्टिक्स और अन्य आर्थिक कारकों पर आधारित है। रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादक है, जो प्रतिदिन लगभग 9.5 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है और 4.5 मिलियन बैरल कच्चा तेल और 2.3 मिलियन बैरल रिफाइंड प्रोडक्ट्स का निर्यात करता है।

मार्च 2022 में रूसी तेल के बाजार से बाहर होने के डर से ब्रेंट क्रूड की कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं। ऐसे समय में भारत ने समझदारी से अपने स्रोतों को अनुकूलित किया ताकि सस्ती ऊर्जा मिल सके, वह भी अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए।

पहले, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया था कि भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर सकता है और इसे अच्छा कदम बताया। लेकिन भारत ने अपने राष्ट्रीय हित के आधार पर ऊर्जा नीति बनाने के अपने अधिकार का बचाव किया।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूसी तेल पर कभी प्रतिबंध (ban) नहीं लगा है। बल्कि इसे G7/EU के प्राइस-कैप मैकेनिज्म के तहत रखा गया, ताकि रूस का राजस्व सीमित हो और वैश्विक आपूर्ति चलती रहे। भारत ने एक जिम्मेदार वैश्विक खिलाड़ी की तरह काम किया, बाजार को स्थिर और कीमतों को नियंत्रण में रखा।

अगर भारत ने रियायती रूसी तेल नहीं लिया होता, जब ओपेक प्लस ने रोजाना 5.86 मिलियन बैरल की कटौती की थी, तो तेल की कीमतें मार्च 2022 के 137 डॉलर प्रति बैरल से भी ज़्यादा बढ़ सकती थीं, जिससे पूरी दुनिया में महंगाई का दबाव बढ़ जाता।

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि रूसी तेल पर कभी प्रतिबंध नहीं लगा और न ही अमेरिका या यूरोपीय संघ ने इसे अब तक प्रतिबंधित किया है। भारतीय तेल विपणन कंपनियां ईरान या वेनेजुएला से तेल नहीं खरीद रही हैं, जिन पर अमेरिका ने वास्तव में प्रतिबंध लगाया है।

भारतीय कंपनियां हमेशा अमेरिका की सुझाई 60 डॉलर की प्राइस कैप का पालन करती हैं। हाल ही में यूरोपीय संघ ने रूसी कच्चे तेल के लिए 47.6 डॉलर की प्राइस कैप सुझाई है, जो सितंबर से लागू होगी।

रूसी तरलीकृत प्राकृतिक गैस (Liquified Natural Gas) के आयात पर बात करते हुए सूत्रों ने कहा कि इस दौरान यूरोपीय संघ रूस के एलएनजी का सबसे बड़ा खरीदार था, जो रूस के 51% एलएनजी एक्सपोर्ट्स खरीद रहा था। इसके बाद चीन (21%) और जापान (18%) थे। पाइपलाइन गैस के लिए भी यूरोपीय संघ 37% हिस्सेदारी के साथ टॉप बायर रहा, उसके बाद चीन (30%) और तुर्की (27%) का नंबर आता है।

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