एशियाई क्रिकेट परिषद (ACC) ने भारत की मेजबानी में खेले जाने वाले एशिया कप 2025 का शेड्यूल जारी कर दिया है। टूर्नामेंट यूएई में 9 से 28 सितंबर के बीच होगा। इसमें आठ टीमें भाग लेंगी, जिन्हें दो ग्रुप में बांटा गया है।
जब भी एशिया कप होता है, लाखों दर्शक भारत के मैच देखते हैं और भारी विज्ञापन से खूब कमाई होती है। फिर भी बीसीसीआई को इस टूर्नामेंट से आर्थिक लाभ क्यों नहीं होता?
एशिया कप का आयोजन एशियाई क्रिकेट परिषद (ACC) करती है, न कि किसी एक देश का बोर्ड। ACC एक स्वतंत्र संगठन है जो एशिया में क्रिकेट को बढ़ावा देता है। इसमें भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और कुछ अन्य सदस्य देश शामिल हैं। इसका मुख्यालय श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में है।
एशियन क्रिकेट काउंसिल ही एशिया कप के प्रसारण अधिकार बेचता है, प्रायोजकों से डील करता है, और उससे होने वाली कमाई को सदस्यों में बराबर बांटता है। लेकिन बीसीसीआई इस हिस्सेदारी से खुद को अलग रखता है।
पूर्व क्रिकेटर आकाश चोपड़ा ने 2023 में दावा किया था कि बीसीसीआई एशिया कप की कमाई से एक भी रुपया नहीं लेता। उनके अनुसार, बीसीसीआई पहले से ही आईसीसी और अन्य द्विपक्षीय सीरीज से भरपूर कमाई करता है और उसकी आर्थिक स्थिति बाकी एशियाई देशों से कहीं मजबूत है। वह दूसरे देशों की मदद कर बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहता है।
चोपड़ा ने कहा था कि बीसीसीआई कभी भी एशिया कप से अपना हिस्सा नहीं लेता, बल्कि उन देशों को सौंप देता है, जहाँ क्रिकेट के विकास की आवश्यकता होती है।
हालांकि, बीसीसीआई ने न तो इस दावे पर हामी भरी है और न ही इसे नकारा है।
एशियन क्रिकेट काउंसिल का गठन ही एशियाई महाद्वीप में क्रिकेट का प्रचार करने और स्तर में सुधार के लिए किया गया था। बीसीसीआई ने शुरुआत से ही बाकी देशों की मदद की है।
बोर्ड ने अफगानिस्तान की टीम को बनाने में मदद की है और ट्रेनिंग की सुविधा दी है। भारत ने नेपाल की टीम को भी टी20 वर्ल्ड कप क्वालिफायर से पहले सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में ट्रेनिंग करने का मौका दिया।
एशिया कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में मेजबान देश को टिकट की बिक्री से लेकर ब्रॉडकास्टिंग राइट्स तक में अतिरिक्त कमाई होती है। भारत ने केवल एक बार इसकी मेजबानी की है, ताकि श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों को मेजबानी से फायदा हो।
भारत 2025 में दूसरी बार मेजबानी कर रहा है, लेकिन पाकिस्तान के साथ विवाद के चलते मैचों को यूएई में शिफ्ट करने को मान गया ताकि टूर्नामेंट हो सके और छोटी टीमों को बड़ी टीमों के साथ खेलकर फायदा हो।
बीसीसीआई को यह भी अहसास है कि अगर वह एशिया कप से कमाई में हिस्सा लेने लगा, तो बाकी देशों को क्रिकेट के विकास के बजट में कटौती करनी पड़ सकती है, जिससे क्षेत्र में क्रिकेट का विस्तार रुक सकता है। यही कारण है कि बीसीसीआई एशिया कप की आय को अन्य देशों के लिए छोड़ देता है, ताकि अफगानिस्तान और ओमान जैसे बोर्ड अपनी वित्तीय स्थिति सुधार सकें।
एशिया कप से बीसीसीआई द्वारा कोई कमाई न लेना एक रणनीतिक और दूरदर्शी फैसला है। यह दिखाता है कि भारतीय बोर्ड केवल आर्थिक लाभ पर नहीं, बल्कि क्रिकेट के क्षेत्रीय विकास, सहयोग और नेतृत्व पर भी ध्यान देता है। इसी वजह से एशिया में भारत का क्रिकेटिंग दबदबा बना हुआ है और बीसीसीआई बाकी देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा शक्तिशाली संस्था बनी हुई है।
यह न केवल क्रिकेट के हित में है, बल्कि बीसीसीआई की सॉफ्ट पावर को भी मजबूत करता है, जो आने वाले समय में और भी असरदार साबित हो सकती है।
एशिया कप से होने वाली कमाई का समान बंटवारा एशियन क्रिकेट काउंसिल करती है, जिसमें बीसीसीआई का भी हिस्सा है। हालांकि, आकाश चोपड़ा के दावों के अनुसार, बीसीसीआई अपना हिस्सा किसी और गरीब बोर्ड को दे देता है। लेकिन, न तो बीसीसीआई ने और न ही इसका फायदा पाने वाले बोर्ड ने आधिकारिक तौर पर कोई चर्चा की है। नए स्पोर्ट्स बिल के तहत बीसीसीआई भी अब आरटीआई के तहत आने वाला है, जिसके बाद इस दावे का सच पता चल सकता है।
The Asian Cricket Council charts the Future of Asian Cricket at the Annual General Meeting in Dhaka!
— AsianCricketCouncil (@ACCMedia1) July 24, 2025
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